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Russia Ukraine War : पतन के कगार पर यूक्रेन
Russia Ukraine War: यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने नाटो की नपुंसकता पर पहली बार बोला है। यह उनकी अपरिपक्वता ही है कि उन्होंने नाटो पर अंधविश्वास किया।
Russia Ukraine War: यूक्रेन की राजधानी कीव के गिरने में अब ज्यादा देर नहीं लगेगी। बस, एक-दो दिन की बात है। कीव पर कब्जा होते ही यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अर्न्तध्यान हो जाएंगे। नाटो और अमेरिका अपना जबानी जमा-खर्च करते रह जाएंगे। नाटो के महासचिव ने तो साफ-साफ कह दिया है कि वे रूस के साथ युद्ध नहीं लड़ना चाहते हैं। फ्रांस और जर्मनी की भी बोलती बंद है।
जेलेंस्की ने नाटो की नपुंसकता पर पहली बार मुंह खोला है। यह उनकी अपरिपक्वता ही है कि उन्होंने नाटो पर अंधविश्वास किया और उसके उकसावे में आकर रूसी हमला अपने पर करवा लिया। अमेरिका ने रूस पर चार-पांच नए प्रतिबंध भी घोषित कर दिए हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों में चल रहे रूसी सेठों के करोड़ों डाॅलरों के खातों को जब्त कर लिया गया है।
जो बाइडन से कोई पूछे कि क्या इसके डर के मारे पूतिन अपना हमला रोक देंगे? क्या रूसी फौजें कीव के दरवाजे से वापस लौट जाएंगी? यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए भेजी गई झेलेंस्की की औपचारिक अर्जी को आए हुए तीन-चार दिन हो गए। अभी तक उस पर यूरोपीय संघ खर्राटे क्यों खींचे हुआ है? यूरोपीय राष्ट्रों ने यूक्रेन के परमाणु संयंत्र पर रूसी हमले की खबर को बढ़ा-चढ़ाकर इतना फैलाया कि सारी दुनिया में सनसनी फैल गई लेकिन अभी तक कोई परमाणु प्रदूषण नहीं फैला।
1986 में चेर्नोबिल की तरह मौत की कोई लहर नहीं उठी। मास्को ने स्पष्ट किया कि नाटो ने यह झूठी खबर इसलिए फैला दी थी कि रूस को फिजूल बदनाम किया जाए। रूस ने झापोरीझजिया के परमाणु संयंत्र पर कब्जा जरुर कर लिया है। यह असंभव नहीं कि वह यूक्रेन में बिजली की सप्लाय पर रोक लगाकर सारे देश में अंधेरा फैला दे। अफवाहें ये भी हैं कि झेलेंस्की अमेरिका राजदूतावास में जाकर छिप गए हैं। अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार परिषद में फिर से रूस की भर्त्सना का प्रस्ताव पारित हो गया है।
भारत ने फिर परिवर्जन (एब्सटेन) किया है लेकिन सिर्फ तटस्थ रहना काफी नहीं है। तटस्थ तो तुर्की भी है लेकिन वह मध्यस्थता की कोशिश भी कर रहा है। मध्यस्थता तो बहुत अच्छा बहाना भी है, अपनी तटस्थता को सही सिद्ध करने के लिए। यदि हम सिर्फ तटस्थ रहते हैं और साथ में निष्क्रिय भी रहते हैं तो यह तो घोर स्वार्थी और डरपोक राष्ट्र होने का प्रमाण-पत्र भी अपने आप बन जाएगा। भारत की कूटनीति में भव्यता और गरिमा का समावेश होना बहुत जरुरी है।