×

गोरे रंग को इतनी तवज्जो क्यों?

ऐसा नहीं है कि काले और सांवले रंग को भारतीय समाज पूरी तरह से नकार ही देता है, हां प्राथमिकता हमेशा गोरे रंग को ही दी जाती है। खासकर ऐसी जगह जहां प्रदर्शन होता है उदाहरण के रूप में सिनेमा जगत, मीडिया।

Newstrack
Published on: 21 March 2021 5:57 PM IST
गोरे रंग को इतनी तवज्जो क्यों?
X
गोरे रंग को इतनी तवज्जो क्यों?

Daksham Dwivedi

दक्षम द्विवेदी

(Daksham Dwivedi)

एक आम धारणा यह बनी है कि रंगभेद से जुड़ी समस्या अफ्रीका के देशों में ही है पर ये सिर्फ उन्हीं देशों में है ऐसा नहीं है, भारत में भी रंगभेद अप्रत्यक्ष रूप से व्याप्त है। इस विषय को गहराई से समझने के लिए हमें ये जानना जरूरी है कि हमारे समाज ने सुंदरता के जो मानक तय किए हैं वही गलत है। जिसमें गोरे रंग को सुंदर होने का पैमाना मान लिया गया है।

भारतीय संदर्भ में विवाह के समय आज भी रंग एक बड़ा कारक

ऐसा नहीं है कि काले और सांवले रंग को भारतीय समाज पूरी तरह से नकार ही देता है, हां प्राथमिकता हमेशा गोरे रंग को ही दी जाती है। खासकर ऐसी जगह जहां प्रदर्शन होता है उदाहरण के रूप में सिनेमा जगत, मीडिया। अगर बॉलीवुड की बात की जाए तो यहां भी गिनी चुनी अभिनेत्रियों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर गोरी ही अभिनेत्रियां देखने को मिलेंगी।

अभिनेत्रियों का ज़िक्र इसलिए किया क्योंकि रंगभेद का शिकार लड़को की तुलना में लड़कियां ज्यादा होती हैं खासकर भारतीय संदर्भ में विवाह के समय आज भी रंग एक बड़ा कारक है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर नजर दौड़ाएं तो आप देखेंगे शायद ही कोई एंकर सांवला या काला दिखे जबकि गोरे एंकरों की लंबी फेहरिस्त है। क्या जो गोरा नहीं है वो कैमरे का सामना नहीं कर सकता या वो अच्छा नहीं बोल पाता? बचपन से ही हमारे दिमाग में गोरे रंग का बीज इस प्रकार डाल दिया जाता है जिससे हम ताउम्र बाहर नहीं निकल पाते।

Fair complexion

गोरा करने वाली क्रीम का बढ़ता बाजार

गोरा करने वाली क्रीम का बढ़ता बाजार इस बात को और पुष्ट करता है। इन क्रीमों के विज्ञापन में ये दर्शाया जाता है कि गोरे होने से ही आत्मविश्वास बढ़ता है और काले या सांवले रंग वाले को हीनता बोध से ग्रसित दिखाया जाता है। प्रसिद्ध अमेरिकी लेखिका नाओमी वोल्फ़ ने सौंदर्यबोध पर लिखी अपनी पुस्तक 'द ब्यूटी मिथ' पर इसका विस्तृत विश्लेषण किया है कि किस प्रकार सुंदरता को ये समाज गढ़ता है और एक विशेष रंग को बढ़ावा दिया जाता है।प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी और लेखिका व उदयोगपति प्रभा खेतान की आत्मकथाएं ये बताती हैं कि सांवले रंग की वजह से उन्होंने बचपन में कितनी परेशानी झेलनी पड़ी थी जिसका प्रभाव उनके पूरे व्यक्तित्व पर जिंदगी भर रहा।

ये भी देखें: Morning Walk बेहद जरूरीः 30 मिनट में होगा जादू, दिखने लगेंगे इतने फायदे

गोरा करने वाली क्रीम का बढ़ता बाजार

क्रिकेटर अभिनव मुकुंद ने भी इस विषय पर ट्वीट किया था और लिखा था गोरा करने वाली क्रीम का बढ़ता बाजार । हमारे समाज के युवाओं पर सिनेमा का बड़ा गहरा प्रभाव रहता है वो उसकी कॉपी भी करने की कोशिश करता है इसी बॉलीवुड के कुछ गानों पर एक नजर डालना जरूरी है जैसे- 'गोरी है कलाइयां, 'गोरे-गोरे मुखड़े पर काला-काला चश्मा'' गोरी तेरी आंखे कहे', ये गोरे गोरे से छोरे आदि ऐसे तमाम गाने हैं जो गोरे रंग पर ही केंद्रित हैं।

गोरा रंग की सनक

सबसे बड़ी और ध्यान देने योग्य बात ये है कि भूमंडलीकरण इस भेद को और बढ़ा रहा है क्योंकि इस संस्कृति में जो दिखता है वो बिकता का नियम लागू होता है।अब तो पुरुषों पर भी इसका असर तेजी से देखा जाने लगा है मेंस क्रीम की बिक्री भी पिछले एक दशक से काफी तेजी से बढ़ी है। गोरा रंग की सनक कुछ ऐसी हो गई है कि इसके लिए ऐसी क्रीम को तेजी से स्वीकार किया जा रहा है जो वास्तव में त्वचा को नुकसान पहुंचाती है।

Dusky actresses

ये भी देखें: CM योगी का बड़ा एलान, अगले सप्ताह खुल जाएगा गोरखपुर का चिड़ियाघर

यह अच्छे समाज की निशानी नहीं

ये एक साधारण सी समझने वाली बात है कि प्रकृति ने किसी को गोरा बनाया है किसी को काला तो किसी को सांवला।इसमें कोई रंग अपने में श्रेष्ठ है ऐसा कुछ नहीं होता रंग तो भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। हमारे समाज को इस समस्या पर गंभीर चिंतन करके लोगों को जागरूक करना होगा। क्योंकि किसी के रूप और रंग के आधार पर किसी के अंदर छुपे गुणों को दरकिनार करना एक अच्छे समाज की निशानी तो कभी नहीं हो सकती।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

दोस्तों देश दुनिया की और को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Newstrack

Newstrack

Next Story