बनारस का नाम क्यों पड़ा वाराणसी, क्या है काशी की कहानी

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गंगा किनारे बसा पुरातन संस्कृति की कहानी वाला शहर बनारस, वाराणसी और काशी के नाम से भी प्रसिद्ध है.
मुगलकाल और अंग्रेजी शासन के दौरान उत्तर प्रदेश के इस शहर का आधिकारिक नाम बनारस ही था.
1956 को इस शहर का आधिकारिक नाम वाराणसी हुआ. कुर्मा पुराण और लोगों के मत अनुसार यहां एक ओर वरुणा नदी है और दूसरी ओर अस्सी नदी.
इन नदियों के बीच होने के कारण बनारस को वाराणसी के नाम से पुकारा जाने लगा.
पौराणिक कथा के अनुसार, बनारस का नाम काशी प्रचीनकाल के एक राजा काशा के नाम पर पड़ा, करीब 3000 बरसों से बनारस को काशी बोला जा रहा है.
काशी शब्द का अर्थ उज्वल है. भगवान शिव की नगरी हमेशा चमकती रहती है जिसे रौशनी का शहर भी कहा जाता था. जिससे इसका नाम भी काशी हो गया.
काशी में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मौजूद है. यहां शिव जी पत्नी पार्वती संग राज राजेश्वर स्वरूप में विद्यमान हैं.
पुराणों के अनुसार काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है. कैलाश के बाद शिव का निवास स्थान काशी ही माना जाता है.
काशी के कण-कण में शिव वास करते हैं. यहीं जीवन का प्रारंभ और अंत भी होता है. हिंदू, जैन, बुद्ध धर्म के लोगों के लिए तीर्थ स्थल है.