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मोदी पर लोगों का भरोसा अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी: अरविंद मोहन

suman
Published on: 27 May 2017 7:47 AM GMT
मोदी पर लोगों का भरोसा अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी: अरविंद मोहन
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अनुराग शुक्ला anurag shukla

लखनऊ: केन्द्र की सत्ता में तीन साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए राहत की बात यह है कि देश की जनता के साथ ही बुद्धिजीवी भी उनकी सरकार को सही दिशा में चल रहा मान रहे हैं। देश के सबसे बड़े राज्य और राजनीतिक तौर पर भाजपा के शक्ति प्रदेश उत्तर प्रदेश के मशहूर अर्थशास्त्री अरविंद मोहन ने दो टूक कहा कि मोदी सरकार के फैसलों से देश आर्थिक स्तर पर बहुत आगे निकल आया है। उन्होंने जीएसटी को देश को एक करने वाला कदम बताया। वैसे उनका यह भी मानना है कि महंगाई से निजात दिलाने और बेरोजगारी दूर करने के मोर्चे पर अभी सरकार का किया काम नहीं दिख रहा है। पेश है अपना भारत और newstrack.com से अर्थशास्त्री अरविंद मोहन की एक्सक्लूसिव बातचीत के प्रमुख अंश।

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सवाल: मोदी सरकार के तीन साल यानी 2014 की अपेक्षा आज देश की आर्थिक स्थिति कैसी है?

अरविंद मोहन: मनमोहन सरकार में निवेश का माहौल, उपभोक्ता का विश्वास हिला हुआ था। यही वजह थी कि देश में निवेश की स्थिति, औद्योगिक माहौल और आॢथक वातारवरण बेहद नीचे की तरफ जा रहा था। मोदी के पद संभालने के बाद लोगों में आत्मविश्वास बढ़ा है। इसके अलावा कंज्यूमर कांफिडेंस भी जबर्दस्त ढंग से वापस आया है। देश में व्यापार का माहौल भी जबर्दस्त ढंग से सुधरा है।

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सवाल: अगर मानकों की बात करें तो क्या आपके हिसाब से देश की आॢथक स्थिति अब सही ट्रैक पर है?

अरविंद मोहन: इतना तो तय है कि देश आर्थिक मामलों में 2014 से बहुत आगे निकल चुका है। मोदी ने न सिर्फ कई बेहद अच्छी योजनाएं चलाईं बल्कि मनमोहन सरकार की बहुत से योजनाओं को कारगर ढंग से आगे बढ़ाया है। मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप जैसी योजना का देश की आॢथक स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कुछ मंत्रालयों ने बहुत अच्छा काम किया है। खासकर सडक़ों के लिहाज से नितिन गडकरी के मंत्रालय ने बेहतरीन काम किया है। कोयला आवंटन में जिस तरह पारदर्शिता और साफगोई से काम किया गया उसे तो हम आमूल चूल परिवर्तन कह सकते हैं। पावर सेक्टर में बहुत अच्छा काम हुआ है। यह सब आधारभूत संरचना के सेक्टर हैं। ऐसे में आर्थिक स्थिति सही ट्रैक पर दिख रही है।

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सवाल: क्या कुछ ऐसे भी सेक्टर हैं जहां अभी उम्मीद जितना काम नहीं हो सका है?

अरविंद मोहन: बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां अभी तक स्लोगन के स्तर तक ही काम है। अभी काम दिख नहीं रहा है। हो सकता है अंदरखाने काम हो रहा हो पर अभी जनता को इसके परिणामों का इंतजार है। मसलन महंगाई और बेरोजगारी। हमें महंगाई में फिलहाल जो भी राहत मिली है वह अंतरराष्ट्रीय वजहों से मिली है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत कम है, ग्लोबल कमोडिटी प्राइज भी गिरे हुए हैं। अभी महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जनता को राहत की दरकार है। हो सकता है काम हो रहा हो पर नतीजों के बिना सब सूना है।

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सवाल: देश की अर्थव्यवस्था के सामने क्या चुनौतियां हैं और किन चीजों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए?

अरविंद मोहन: देश में वेयर हाउसिंग की कमी है। इसके अलावा लाजिस्टिक लाइन और कोल्ड चेन की जबर्दस्त कमी है। अगर सरल भाषा में कहा जाय तो अनाज रखने व उसे सही ढंग से इस्तेमाल करने की आधारभूत संरचना बहुत कम है। नतीजतन देश में एक लाख करोड़ का खाद्यान्न सड़ जाता है। महंगाई हमारे देश में सेक्टोरल होती है। देश में कृषि क्षेत्र की महंगाई को नियंत्रित करने के लिए इन्हीं तीन चीजों को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। अगर इन्हें नियंत्रित नहीं किया गया तो महंगाई को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। अब मोदी सरकार के दो साल बचे हैं। ऐसे में अब लोगों को इंपैक्ट का इंतजार है। मोदी सरकार में लोगों का विश्वास लगातार कायम है पर उन्हें अब नतीजे देखने हैं। यही एहसास करना एक बड़ी चुनौतियों में से एक है।

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सवाल: जीएसटी को देश के लिए कैसा मानते हैं?

अरविंद मोहन: यह बहुत बड़ा रिफार्म है। मेरा मानना है कि यह जीडीपी में दो फीसदी तक बढ़त ला सकता है। अलबत्ता एक मुश्किल सॢवस टैक्स की दर का मुद्दा है। सेवा सेक्टर में अगर दामों को बांधा जा सका तो यह बेहतर परिणाम देगा। वैसे इतना तो तय है कि जीएसटी लागू होने से पूरे देश में व्यापार के लिए बनाए गए कृत्रिम अवरोध खत्म हो गये। जैसे हर राज्य का अलग टैक्स, हर राज्य का अलग स्लैब। अब पूरा देश एक है यानी हम यह कह सकते हैं कि अब पूरा देश सही मायने में एक हो गया है।

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सवाल: नोटबंदी सरकार का एक बड़ा कदम था। इस निर्णय को आप कैसे देख रहे हैं?

अरविंद मोहन: नोटबंदी के आॢथक असर पर बोलना अभी थोड़ी जल्दबाजी होगी क्योंकि इससे जुड़े पूरे आंकड़े अभी सार्वजनिक नहीं हुए हैं। लेकिन इतना तो तय है कि यह जानसमझ कर किया गया निर्णय था। सरकार को पता था कि इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा मगर यदि आर्थिक मामलों से थोड़ा हटकर बात करें तो देश में नेतृत्व के प्रति विश्वास निखरकर सामने आया है। इसी विश्वास का असर है कि देश इतने बड़े फैसले से बाहर आ गया। यह भी साबित होता है कि अगर नेतृत्व पर विश्वास है तो अर्थव्यवस्था बड़े से बड़े संकट से बाहर निकल जाएगी। यह भारतीय अर्थव्यवस्था और वर्तमान नेतृत्व दोनों की सामयिकता प्रमाणित करता है। इसी विश्वास का असर था कि नोटबंदी के असर से अर्थव्यवस्था का रिवाइवल उम्मीद से कहीं ज्यादा तेजी से हुआ है। राजनीतिक नेतृत्व पर जनता का यह विश्वास देश की आर्थिक व्यवस्था के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा।

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