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दयाशंकर प्रकरण में जो हुआ वैसा शायद पहली बार UP के इतिहास में दिखा

Newstrack
Published on: 29 July 2016 10:02 AM GMT
दयाशंकर प्रकरण में जो हुआ वैसा शायद पहली बार UP के इतिहास में दिखा
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लखनऊ: बसपा प्रमुख मायावती पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के बाद बीजेपी से निकाले गए इयाशंकर सिंह प्रकरण पर दो बातें सामने आईं। दयाशंकर का समर्थन करने पर एक तो बसपा के दो विधायकों का पार्टी से निलंबन और दूसरा अदालत का आदेश, जिसमें संवेदनशीलता दिखाते हुए दो वकीलों की नियुक्ति।

दो वरिष्ठ वकीलों की नियुक्ति

संभवत:यूपी के न्यायिक इतिहास में ये पहली बार हुआ होगा। जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच ने दो वरिष्ठ वकीलों की नियुक्ति उनकी राय जानने के लिए की। बेंच में एक वकील की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि बसपा के बिना इजाजत प्रदर्शन के दौरान कार्यकर्ता दयाशंकर की पत्नी, बेटी के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाते रहे और पुलिस मूक दर्शक बनी रही। याचिका में ऐसे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई जो घटनास्थल पर मौजूद थे।

थर्ड पार्टी की बात

अदालत ने इस मामले में माना कि ऐसे लोग जिनका इस प्रदर्शन से कोई लेना देना नहीं था वो आहत हुए। ऐसे लोग प्रदर्शन के वक्त रास्ते से गुजर रहे थे। कोर्ट ने उन्हें थर्ड पार्टी माना है। कोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया ओर दो वरिष्ठ वकीलों की नियुक्ति उनकी राय जानने के लिए कर दी। दोनों वकीलों को कहा गया है कि वो इस मामले में अन्य वकीलों की राय भी ले सकते हैं।

संभवत अदालत ये मानती है कि उसके इस कदम से गाली-गलौज की भाषा पर कुछ हद तक लगाम लगाया जा सकता है। अदालत मानती है कि थर्ड पार्टी की भी भावनाएं हैं जो नारों और गाली गलौज से आहत हो सकती हैं। अदालत मानती है कि ऐसे मामलों में थर्ड पार्टी को कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का अधिकार है।

दयाशंकर का समर्थन करने वाले सस्पेंड

दयाशंकर का समर्थन करने पर मायावती ने अपने दो विधायक रोमी और बृजेश वर्मा को निलंबित कर दिया। दोनों विधायकों का कहना था कि बसपा के नारे पहले से लिखे हुए होते हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं ने दयाशंकर की पत्नी ओर बेटी के लिए जो कुछ भी कहा उसे कोई भी गलत कहेगा। उनका कहना था कि आपत्तिजनक बातें दयाशंकर ने कहीं थी। इसमें उनकी पत्नी और 12 साल की बच्ची का कोई दोष नहीं था। इसी बात पर मायावती ने दोनों विधायकों को निष्कासित कर दिया।

बीएसपी ने की थी शुरुआत

ये सच है कि दयाशंकर ने मायावती के खिलाफ जो कहा उसे लिखा नहीं जा सकता। किसी सभ्य समाज में ऐसी भाषा नहीं बोली जा सकती। लेकिन बदले में बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जो किया और कहा उसकी आलोचना भी जरूरी है।

दयाशंकर की अश्लील टिप्पणी और बसपा कार्यकर्ताओं के गंदे नारे और बयानबाजी की जंग में कौन जीता ओर कौन हारा इसका सवाल अभी नहीं। ये ऐसा खेल था जिसमें न तो कोई जीता और न कोई हारा। यदि एक गलत था तो दूसरा भी सही नहीं था। दरअसल इसकी शुरुआत बसपा की ओर से ही की गई थी जब ये नारा लगा कि तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार। तिलक से मतलब ब्राहम्ण, तराजू से बनिया और तलवार से मतलब राजपूत से था।

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