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वोट की चमक में हम भूल रहे अपना सांस्कृतिक-राजनीतिक कल्चर : दिनेश शर्मा

यूपी के डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि एक बार उनसे पूछा गया कि बाबर क्या था, तब मैंने कहा कि बाबर एक आक्रांता थे।

tiwarishalini
Published on: 23 Sep 2017 12:18 PM GMT
वोट की चमक में हम भूल रहे अपना सांस्कृतिक-राजनीतिक कल्चर : दिनेश शर्मा
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वोट की चमक में हम भूल रहे अपना सांस्कृतिक-राजनीतिक कल्चर : दिनेश शर्मा

लखनऊ: यूपी के डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि एक बार उनसे पूछा गया कि बाबर क्या था, तब मैंने कहा कि बाबर एक आक्रांता थे। वह हिंदुस्तान में लूट पाट करने आए था। दूसरे दिन बड़े-बड़े अखबारों में आया कि बाबर लूटेरा था। हम यह कैसे भूल जाएं कि शाहजहां ने ताजमहल बनाने वाले मजदूरों के हाथ काट दिए थे। शाहजहां ने औरंगजेब से कहा था कि हिंदुओं से सीख लो कि वह मरने के बाद भी अपने पितरों का सम्मान करते हैं। पर वोट के चमक की आड़ में हम अपनी राजनीतिक-सांस्कृतिक कल्चर को भूल रहे हैं।

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डॉ. दिनेश शर्मा शनिवार को राजधानी लखनऊ में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मशताब्दी समारोह की क्षेत्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने पंडित दीनदयाल के राजनीतिक जीवन के एक प्रसंग का जिक्र करते हुए कहा कि जौनपुर की एक चुनावी सभा में काफी संख्या में ब्राहमण शामिल हुए थे। वहां के राजा ने पंडितजी को कहलवाया कि वह एक बार मंच से खड़े होकर सभा में मौजूद लोगों से कह दें कि उनका अपना आदमी ही चुनाव में खड़ा है। पर दीनदयाल ने ऐसा नहीं किया बल्कि वह सभी छोड़कर चले गएं। फिलहाल कुछ हजार वोटों से उनकी हार हो गई तो उनके सहयोगियों ने कहा कि चुनाव में आप नहीं बल्कि आपकी जिद्द हार गई। दीनदयाल ने जवाब दिया कि यदि मैं सभा में खड़ा होकर अपने ब्राहमण होने की बात बोल देता तो दीनदयाल तो जीत जाता पर आरएसएस के विचार हार जाते।



डिप्टी सीएम ने कहा कि जनसंघ की शुरूआत 10 से भी कम लोगों ने की थी। उस समय किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि भाजपा इतनी बड़ी पार्टी बनेगी। पर आज भाजपा के 11 करोड़ 27 लाख सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि साम्यवादी और पाश्चात्य विचारधार एक जैसी ही है। साम्यवादी विचार धारा कहती है कि जो जिएगा, वह कमाएगा ओर जो कमाएगा वह खाएगा। जबकि हमारी विचारधारा है कि जो जिएगा, वह कमाएगा और जो कमाएगा वह सबको खिलाएगा।

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डॉ. शर्मा ने एक प्रसंग का जिक्र करते हुए कहा कि जो मंच के नीचे होता है वह ज्यादा श्रेष्ठ है क्योंकि जो मंच पर होता है। उसको लेकर लोगों के अंदर आशंका होती है पर जो मंच के नीचे होता वह खुद को परिष्कृत करते हुए आगे बढ सकता है। पर जो मंच पर है जरा सी गड़बड़ी पर नीचे आ जाता है। नेताओं के लिए यह उदाहरण बिल्कुल सटीक है। नेता जरा सी गड़बड़ी करने पर नीचे आ जाते हैं और फिर उन्हें पूछने वाला भी कोई नहीं होता है।

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