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Babu Singh Kushwaha Wikipedia: बाबू सिंह कुशवाहा: बसपा के रणनीतिकार से सपा सांसद तक: एक लोकप्रिय नेता की बदलती पहचान
Politician Babu Singh Kushwaha: उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाबू सिंह कुशवाहा एक ऐसा ही नाम है जिन्हें बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के एक प्रभावशाली नेता और सपा के शक्तिशाली नेताओं में गिना जाता है।
Politician Babu Singh Kushwaha (Image Credit-Social Media)
Babu Singh Kushwaha Wikipedia: उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई ऐसे नेता हुए हैं जिनका प्रभाव सत्ता के गलियारों से लेकर गांवों की चौपालों तक महसूस किया गया है। बाबू सिंह कुशवाहा एक ऐसा ही नाम है जो कभी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सबसे शक्तिशाली नेताओं में गिने जाते थे और अब समाजवादी पार्टी (सपा) के बैनर तले लोकसभा में प्रवेश कर चुके हैं। 27 वर्षों तक बसपा की राजनीति में सक्रिय रहने वाले कुशवाहा ने परिवार कल्याण मंत्री के रूप में शासन प्रशासन की जटिलताओं को नजदीक से समझा और अनुभव किया। हालांकि उनकी राजनीतिक यात्रा उतार-चढ़ावों से भरी रही, जिसमें एनआरएचएम घोटाले जैसे विवाद और भाजपा में विवादास्पद प्रवेश भी शामिल हैं। 2024 में जौनपुर से सांसद बनने के साथ उन्होंने राजनीतिक पुनरागमन किया है, जो न केवल उनके जमीनी पकड़ को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि वे अभी भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक प्रभावशाली नाम हैं।
जन्म, प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बाबू सिंह कुशवाहा का जन्म 7 मई,1966 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के एक साधारण परिवार में हुआ। उनका जन्म ऐसे समय और परिवेश में हुआ जब सामाजिक विषमता और जातीय भेदभाव अपने चरम पर था। कुशवाहा ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव से प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए बांदा और कानपुर जैसे शहरों की ओर रुख किया। उन्होंने 1985 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वे प्रारंभ से ही समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों और न्याय के लिए चिंतित रहे। यही चिंता उनके सामाजिक और बाद में राजनैतिक सक्रियता का मूल आधार बनी।
राजनीति में प्रवेश और बसपा का उदय
बाबू सिंह कुशवाहा की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से हुई, जो डॉ. भीमराव अंबेडकर और कांशीराम के विचारों से प्रेरित एक सामाजिक न्याय आधारित दल था। वे 27 वर्षों तक बसपा से जुड़े रहे और धीरे-धीरे पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में शामिल हो गए। मायावती के नेतृत्व में उन्होंने पार्टी के संगठन को मजबूत करने और दलित-पिछड़ा वर्ग को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बसपा सरकार में वे दो बार कैबिनेट मंत्री बने और उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। परिवार कल्याण, पंचायती राज, खनन, बाल विकास और कई अन्य विभागों की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने प्रदेश स्तर पर अपनी कार्यक्षमता का लोहा मनवाया।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) घोटाले का खुलासा
लखनऊ में दो चिकित्सा अधिकारियों की हत्या के बाद उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार उजागर हुआ। इस घोटाले में बाबू सिंह कुशवाहा का नाम प्रमुखता से उभरा। उन पर आरोप लगे और उन्होंने स्वयं को निर्दोष बताते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। यही वह मोड़ था जहां से उनके और बसपा नेतृत्व के बीच मतभेद गहराने लगे।
भाजपा में शामिल होने की कोशिश और प्रतिक्रिया
कुछ समय बाद कुशवाहा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामा। वरिष्ठ नेता विनय कटियार और सूर्य प्रताप शाही की मौजूदगी में वे पार्टी में शामिल हुए, लेकिन उनकी सदस्यता ने पार्टी में हलचल मचा दी। पार्टी के भीतर असंतोष के स्वर उठने लगे, जिससे दबाव में आकर उन्होंने भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष नितिन गडकरी को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि जब तक वे कानूनी रूप से निर्दोष साबित न हो जाएं, उनकी सदस्यता को निलंबित रखा जाए। यह कदम उनकी पारदर्शिता और आत्ममंथन की भावना को दर्शाता है।
जन अधिकार पार्टी का गठन
2016 में बाबू सिंह कुशवाहा ने अपने राजनीतिक अनुभव और जनाधार को एक नए प्लेटफॉर्म पर लाकर "जन अधिकार पार्टी" का गठन किया। इस दल का उद्देश्य सामाजिक न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य और युवाओं को राजनीति में भागीदारी दिलाना रहा है। यह पार्टी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग के उत्थान के लिए एक समर्पित मंच बन गई।
2024 का लोकसभा चुनाव और ऐतिहासिक जीत
2024 के भारतीय आम चुनाव में बाबू सिंह कुशवाहा ने समाजवादी पार्टी के प्रतीक पर जौनपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। यह चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा, क्योंकि यह पहला अवसर था जब वे लोकसभा में प्रवेश कर पाए। उन्होंने भारी मतों से जीत दर्ज की और एक नई राजनीतिक पहचान स्थापित की। उनकी जीत को पिछड़ा वर्ग और दलितों के बीच उनकी लोकप्रियता का प्रमाण माना जा रहा है।
परिवारिक जीवन और राजनीतिक साझेदारी
बाबू सिंह कुशवाहा के परिवार में भी राजनीति में सक्रियता दिखाई देती है। उनकी पत्नी शिवकन्या कुशवाहा ने 2014 में समाजवादी पार्टी से गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और उन्हें 27.82% वोट मिले। यह इस बात का संकेत था कि कुशवाहा परिवार समाज सेवा और राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
संसदीय गतिविधियां और मुद्दों की पैरवी
बाबू सिंह कुशवाहा ने 2025 में लोकसभा में विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर सवाल उठाए, जिनमें शामिल हैं-
एलपीजी कनेक्शन-प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन की स्थिति पर प्रश्न उठाया।
कृषि और जलवायु
जलवायु-लचीला कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार की आवश्यकता पर ध्यान दिलाया। इन्होंने नई शिक्षा नीति के तहत बच्चों के सर्वांगीण विकास पर सवाल उठाया। सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य अवसंरचना की स्थिति और दवाओं की गुणवत्ता पर प्रश्न किए।
रोजगार
एमएसएमई के माध्यम से रोजगार सृजन की संभावनाओं पर चर्चा की। रेलवे परियोजनाओं की स्थिति और तेल एवं गैस उत्पादन में सुधार पर सवाल उठाए। इसके अलावा, उन्होंने जौनपुर क्षेत्र के गांवों को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत मुख्य सड़कों से जोड़ने, किसानों को डीएपी उर्वरक की आपूर्ति सुनिश्चित करने, और खेतासराय रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों के ठहराव की आवश्यकता जैसे स्थानीय मुद्दों को भी संसद में उठाया।
सामाजिक न्याय और जाति व्यवस्था पर मुखर रुख
अक्टूबर 2024 में भदोही में मौर्य विकास समिति के 26वें वार्षिक समारोह में, बाबू सिंह कुशवाहा ने जाति व्यवस्था को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने संविधान में सामाजिक आधार पर आरक्षण की बात कही थी और आर्थिक आधार पर आरक्षण को असंवैधानिक बताया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आगामी विधानसभा उपचुनावों के लिए भाजपा सरकार ने बीएलओ समेत सभी अधिकारियों को हटाकर एक खास जाति के लोगों को नियुक्त कर दिया है।
शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की पहल
उसी समारोह में, बाबू सिंह कुशवाहा ने 10वीं और 12वीं की 380 मेधावी छात्राओं को साइकिल, टैबलेट, बुद्ध जी की प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। इसके साथ ही 6 शिक्षकों को भी सम्मानित किया गया। उन्होंने वोट के अधिकार के महत्व पर भी प्रकाश डाला और कहा कि चुनाव में हमारा वोट लेकर लोग जीत जाते हैं और मालिक बन जाते हैं, लेकिन जो हमारा हक है वह हमें नहीं देते।
कानूनी चुनौतियां और ईडी की कार्रवाई
अगस्त 2024 में, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बाबू सिंह कुशवाहा की लखनऊ स्थित करोड़ों रुपये की संपत्ति जब्त की और अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाया। यह कार्रवाई राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले के सिलसिले में की गई, जिसमें वे पहले से ही आरोपी हैं। इस मामले में वे चार साल तक जेल में भी रह चुके हैं।
2025 में बाबू सिंह कुशवाहा ने अपने संसदीय कार्यों, सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की पहल, और कानूनी चुनौतियों के बावजूद सक्रिय भूमिका निभाई। उनकी राजनीतिक यात्रा संघर्षों और उपलब्धियों से भरपूर रही है, जो उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण नेता बनाती है।
सामाजिक सरोकार और जनप्रतिनिधित्व
कुशवाहा की राजनीति का आधार केवल सत्ता नहीं रहा, बल्कि वे समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश में लगे रहे। स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाना, शिक्षा को प्राथमिकता देना और रोजगार सृजन के प्रयासों में वे लगातार लगे रहे। उनकी जन अधिकार पार्टी ग्रामीण भारत की आवाज बनने की दिशा में प्रयासरत रही है।
राजनीतिक छवि और आलोचनाएं
जहां एक ओर बाबू सिंह कुशवाहा को एक जमीनी नेता और कुशल संगठक के रूप में देखा जाता है, वहीं दूसरी ओर उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनके राजनीतिक जीवन में धुंध भी डाली। परंतु, उन्होंने इन आरोपों का साहस के साथ सामना किया और अदालत में न्यायिक प्रक्रिया के प्रति पूर्ण आस्था दिखाई। उनके आलोचक भी यह मानते हैं कि वे प्रशासनिक दक्षता और जमीनी पकड़ वाले नेता हैं। बाबू सिंह कुशवाहा का राजनैतिक जीवन संघर्ष, उत्थान, विवाद और पुनरुत्थान की मिसाल है। वे उत्तर प्रदेश की राजनीति में सामाजिक न्याय की सोच को जीवित रखने वाले प्रमुख नेताओं में से एक हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, यदि संकल्प मजबूत हो तो हर बाधा को पार किया जा सकता है। लोकसभा में उनकी उपस्थिति आने वाले समय में देश की राजनीति में एक नया विमर्श पैदा कर सकती है, जिसमें सामाजिक न्याय, पारदर्शिता और जनप्रतिनिधित्व की भावना प्रमुख होगी।
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