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माया को ये बात पसंद नहीं: राहुल की फिसली जुबान, बबुआ के सामने बुआ की कर गए तारीफ
मायावती और कांशीराम का मैं बहुत सम्मान करता हूं। मायावती की विचारधारा से देश को खतरा नहीं हैं, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी की विचारधारा से देश को खतरा है। ये थे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बोल जो उन्होंने 29 जनवरी को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और सीएम अखिलेश यादव के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही। हालांकि मायावती को राहुल की ये तारीफ पसंद नहीं आई।
Vinod Kapoor
लखनऊ: मायावती और कांशीराम का मैं बहुत सम्मान करता हूं। मायावती की विचारधारा से देश को खतरा नहीं हैं, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी की विचारधारा से देश को खतरा है। ये थे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बोल जो उन्होंने 29 जनवरी को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और सीएम अखिलेश यादव के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही। हालांकि मायावती को राहुल की ये तारीफ पसंद नहीं आई।
राहुल के इस बयान से अखिलेश असहज नजर आए। उनके शरीर की भाषा ये बता रही थी कि बयान उन्हें पसंद नहीं आया है। बात को उन्होंने थोडा संभाला और पूरी बात को मजाक के मूड में ले आए। जिससे ये लगे कि इस बयान का कोई मतलब नहीं है।
अखिलेश ने कहा कि बहुत दिन से मायावती को बुआ नहीं कहा। उनका चुनाव चिन्ह हाथी है जो ज्यादा जगह घेरता है। जबकि साइकिल और हाथ छोटे हैं। साइकिल और हाथ के बीच हाथी एडजस्ट नहीं कर सकता।
कहा जाता है कि राजनीति में कोई बात बिना वजह या मतलब के नहीं कही जाती। राजनीतिज्ञ कोई भी बात आमतौर पर ऐसे ही नहीं कहते। उनके राजनीतिक निहितार्थ होते हैं। लिहाजा राहुल के मायावती के प्रति अतिसम्मान के बयान का राजनीतिक मतलब नहीं निकले ये हो नहीं सकता ।
'यूपी को ये साथ पसंद है' के नारे के साथ रविवार (29 जनवरी) को अखिलेश और राहुल राजधानी में रोड शो पर निकले। आमतौर पर रोड शो को जैसा रिस्पांस मिलता रहा है वैसा ही मिला, लेकिन मायावती को न तो ये साथ पसंद आया और न राहुल गांधी का दिया अति सम्मान। वो पहले की तरह ही कांग्रेस पर आक्रामक रहीं, जैसा पहले रहती थीं।
मायावती ने सपा-कांग्रेस गठबंधन को नापाक करार देते हुए कहा है कि यह अप्रत्यक्ष तौर पर बीजेपी को ही फायदा पहुंचाने की एक साजिश है, जो बसपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए किया गया है। इससे जनता को सतर्क रहने की जरूरत है।
इस नुमाइशी गठबंधन को बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए उठाए गए कदम के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, पर यह पूरी तरह से छलावा है। सपा का नेतृत्व सीबीआई के मार्फत बीजेपी के शिकंजे में है। जिसे मुलायम बार-बार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं।
राज्य में सपा सरकार में काम कम और अपराध व साम्प्रदायिक दंगे ही ज़्यादा बोलते रहे हैं। फिर भी कांग्रेस पार्टी मुंह की खाने को तैयार है तो इसे अवसरवाद की राजनीति नहीं तो और क्या कहा जाए?
अब कांग्रेस जंगलराज और अराजकता वाली पार्टी व उसके दागी चेहरे को अपना चेहरा बनाकर उसके आगे घुटने टेक कर गठबंधन करके यहां विधानसभा का चुनाव लड़ रही है। ऐसा करके कांग्रेस ने उसके अपने शासनकाल में हुए भीषण मुरादाबाद और मेरठ के हाशिमपुरा-मलियाना आदि दंगों की भी याद लोगों के ज़ेहन में ताजा कर दी है।
दरअसल इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अभी तक बसपा या मायावती पर आक्रामक नहीं रही है । कांग्रेस ने हमेशा बीजेपी पर ही आक्रामण किया है, लेकिन मायावती कांग्रेस और बीजेपी को अपना एक समान राजनीतिक दुश्मन मानती हैं ।
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार, चुनाव के बाद कांग्रेस मायावती के साथ भी अपना विकल्प खुला रखना चाहती है। यदि मायावती हल्का इशारा भी कर देतीं तो कांग्रेस उनके साथ तालमेल या गठजोड़ के लिए तुरंत राजी हो जातीं, लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन के यज्ञ में मायावती अपना हाथ जला चुकी हैं ।
बसपा और कांग्रेस के बीच 1996 में गठबंधन हुआ था। जिसमें बसपा ने 67 ओर कांग्रेस ने 33 सीटें जीती थी। बसपा के वोट तो कांग्रेस प्रत्याशी को ट्रासंफर हो गए थे, लेकिन कांग्रेस समर्थकों ने बसपा को वोट नहीं दिया।
उसके बाद से ही मायावती ने कांग्रेस के साथ किसी चुनावी तालमेल से तौबा कर ली। अब तो चुनाव का परिणाम ही बताएगा कि कांग्रेस-सपा गठबंधन को मायावती की जरूरत होगी या मायावती को कांग्रेस की।