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क्यों मुलायम, आज़म खान से ये नहीं कह पाते की आप चुप रहिये !

Rishi
Published on: 13 Dec 2016 11:42 PM GMT
क्यों मुलायम, आज़म खान से ये नहीं कह पाते की आप चुप रहिये !
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लखनऊ : यूपी की सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव हो, या फिर देश के सबसे बड़े सूबे के सीएम अखिलेश हो, लेकिन यहां की सत्ता में एक ही नाम है जिसका रुतबा इन दोनों से ऊपर है, वो है आज़म खान। यूपी के कैबिनेट मंत्री आजम खान सिर्फ नाम ही नहीं बल्कि स्वयं में एक चलती फिरती सरकार हैं, जिसके आगे प्रदेश का सबसे ताकतवर राजनैतिक परिवार आए दिन नतमस्तक नजर आता है।

आज़म जो चाहते हैं वही होता है। पार्टी में ऐसा कोई नेता नहीं है जो उनके आगे खड़ा होने की हिम्मत रखता हो। आज़म जैसा चाहें मुलायम वैसा ही फैसला लेते हैं। आज़म के कहने पर ही मुलायम ने न केवल कल्याण सिंह से रिश्ते समाप्त कर लिए बल्कि जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी से अपने सम्बन्ध तोड़ लिए। इतना ही नहीं मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के बाद आजम का नाम विवाद में आया तो पूरा सपाई कुनबा उनके बचाव में उतर आया।

ऐसे में ये सवाल उठाना लाजमी है कि आखिर ऐसा क्या है आज़म में, जो मुलायम को उनके आगे बौना साबित करता है। क्यों मुलायम, खान से ये नहीं कह पाते की आप चुप रहिये। क्यों मुलायम, आज़म की हर जायज नाजायज बात को आसानी से मान लेते हैं। मुलायम आखिर क्यों आज़म से ये नहीं कहते कि तुम्हारी वजह से सरकार की छवि ख़राब होगी। क्यों नहीं कहते कि सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी के लिए मै एक विशेष समुदाय से बेरुखी नहीं ले सकता।

आखिर आज़म के आगे क्यों बेबस हो जाते हैं। मुलायम ये राज जानने के लिए हमें उन पन्नों से धूल की चादर हटानी होगी जिस पर लिखी है इस राज की इबारत।

साल 1985 में आज़म पहली बार मुलायम के नजदीक आये। उस समय आज़म विधायक हुआ करते थे और मुलायम एमएलसी। ये दोनों ही लोकदल के सक्रिय सदस्य थे। पहले मुलाकातें कभी कभी होती थीं। इसी बीच जब 29 मई, 1987 को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की मृत्यु हुई तो लोकदल में विभाजन हुआ और आज़म मुलायम के नेतृत्व वाले लोकदल के साथ हो लिए। मुलायम की नज़र में आज़म एक ऐसे व्यक्ति थे जो उनकी मुख्यमंत्री बनने की चाहत को पूरा करने में सहयोगी साबित हो सकता है, इसलिए मुलायम ने आज़म को अपना पूरा संरक्षण दिया।

ये वो दौर था, जब सूबे की राजनीति में मुलायम एक नयी इबारत लिखने के लिए कुलबुला रहे थे। 4 अक्तूबर, 1992 को गठित हुई नई नवेली समाजवादी पार्टी को कुछ लोग आज़म के दिमाग की उपज मानते हैं। एक बार रामपुर सदर से चुनाव हारने वाले आज़म अभीतक 7 बार विधायक रह चुके हैं।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के समय सपा नेता अमर सिंह से इनका विवाद हो गया और 21 मई, 2009 को मुलायम ने आज़म को बाहर का रास्ता दिखा दिया। लेकिन जल्द ही मुलायम को ये महसूस हो गया था कि आज़म के बिना वो अपने कई सपनों को पूरा नहीं कर सकते और 4 दिसंबर, 2010 को आज़म एक बार फिर न सिर्फ सपा में शामिल हुए। बल्कि मुलायम ने भरी सभा में रोते हुए उनको गले लगाया। तब से लेकर आजतक आज़म जो कहते हैं जो करते हैं उसपर मुलायम की मौन सहमति होती हैं।

इसका बड़ा कारण ये है कि भले ही मुलायम इस समय सूबे के सबसे बड़े मुस्लिम नेता हो लेकिन उनको भी मुस्लिमों तक अपनी बात पहुचने के लिए एक जरिया चाहिए, जो उनकी नज़र में आज़म ही है। ऐसे में होता ये है कि जब जब आज़म नाराज होते हैं तो अखिलेश यादव को प्रोटोकाल दरकिनार करते हुए आज़म के दरबार में हाजरी देने जाना पड़ता है।

विवादित होने के बाद भी आज़म मुलायम के चहेते हैं। वर्ष 1980 के चर्चित मुरादाबाद दंगों से लेकर मुजफ्फरनगर दंगों तक यूपी के ये मुगले आज़म चर्चा में रहते आये हैं। ये चर्चा कभी भी अच्छी बातों को लेकर नहीं हुई बल्कि उनकी दंगों में कथित भूमिका को लेकर रही है। लेकिन मुलायम ने हमेशा आज़म का साथ दिया। कारण ये रहा कि इसके ज़रिये मुलायम ने मुस्लिम बिरादरी में अपनी पकड़ मजबूत की और पहले से अधिक मजबूत होकर उभरे। मुजफ्फरनगर दंगों में आज़म की कथित संलिप्तता को लेकर काफी कुछ कहा सुना गया। लेकिन अखिलेश ने सबको चुप करा दिया।

आज सपा की नज़र में आज़म राज्य में मुस्लिमों के सबसे बड़े नेता हैं, और उनकी बात का इस बिरादरी में काफी मान है। ऐसे में सपा का सोचना है कि आजम को नजरअंदाज कर मुस्लिम वोट तो हाथ से जायेगा ही, साथ ही मुलायम का प्रधानमंत्री बनने का सपना भी टूट जायेगा। सपा में इस समय 42 मुस्लिम विधायक हैं, लेकिन रसूख के मामले में कोई भी उनके सामने कुछ भी नहीं।

ये तो रही मुलायम की बात लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है। वर्ष 2012 के विधान सभा चुनाव में आजम ने 9 टिकट बांटे इसमें से सिर्फ 3 विधायक ही जीत सके। जबकि सूबे में सपा की प्रचंड लहर चल रही थी| अपने घर रामपुर में ही सिर्फ आज़म ही जीत का चेहरा देख सके थे|

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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