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कोरोना के संक्रमण में बाजार

रोजमर्रा की जिंदगी का शायद ही कोई ऐसा पहलू हो जहाँ कोरोना का दखल नहीं हुआ है। वर्क फ्रॉम होम हो या फिर चिकित्सकों की ओपीडी।

Roshni Khan
Published on: 5 Jun 2020 12:15 PM GMT
कोरोना के संक्रमण में बाजार
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: रोजमर्रा की जिंदगी का शायद ही कोई ऐसा पहलू हो जहाँ कोरोना का दखल नहीं हुआ है। वर्क फ्रॉम होम हो या फिर चिकित्सकों की ओपीडी। बस सेवा हो या फिर ट्रेन और हवाई सेवायें। सरकारी से लेकर निजी कार्यालयों में वर्क कल्चर में बदलाव दिख रहा है। कोरोना के खतरों के बीच सर्वाधिक असर बाजार पर दिख रहा है। दुकानों के खुलने का समय, सोशल डिस्टेंसिंग या फिर नये उत्पाद। सब कुछ बदला बदला नजर आ रहा है। दुकानों पर उन्हीं उत्पादों की डिमांड है, जो कहीं न कहीं कोरोना से जुड़े हुए हैं। खानपान में जहां प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले उत्पाद की बिक्री बढ़ी है तो वहीं गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) में कई फैक्ट्रियां कोरोना से लड़ाई को लेकर उत्पाद बनाने लगी हैं।

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लकड़ी से बने सेफ़्टी आइटम्स

मैनेजमेंट की पढ़ाई कर गीडा में फर्नीचर का अत्याधुनिक प्लांट लगाने वाले डॉ.आरिफ साबिर वैवाहिक सीजन में लोगों की डिमांड पूरी नहीं कर पाते हैं। यहां बने लकड़ी के दरवाजों की डिमांड आस्ट्रेलिया से लेकर खाड़ी के देशों में है। कोरोना ने फैक्ट्री के उत्पादों को बदल दिया है। फैक्ट्री में अब लकड़ी का ऐसा सैनिटाइजर बनाया जा रहा है जिसमें हाथ लगाने की जरूरत नहीं होती है। 1000 से 1200 रुपये में बिक रहे इस उत्पाद की मांग देश के विभिन्न महानगरों में है। अब फैक्ट्री डिमांड पूरी नहीं कर पा रही है। इसी तरह कैश काउंटर पर दुकानदार सीधे ग्राहक के कॉन्टेक्ट में नहीं आये इसे लेकर भी बने उत्पाद खूब पसंद किए जा रहे हैं।

फैक्ट्री ने एक ऐसा उत्पाद बनाया है जिससे किसी भी दरवाजे को खोलने के लिए हाथ की जरूरत नहीं होगी। कोल्डड्रिंक ओपनर जैसा यह उत्पाद मार्केट में आ चुका है। उद्यमी आरिफ साबिर बताते हैं कि वैवाहिक सीजन गुजर चुका है। ऐसे में सोफा, बेड, आलमारी आदि की डिमांड है नहीं। लोग लग्जरी आइटम खरीदने से बच भी रहे हैं। इसलिए ऐसा उत्पाद बनाया है जो लोगों को कोरोना से जंग में मदद करेगा। इनकी कीमत भी काफी कम रखी गई है। हमारा लक्ष्य लोगों को सुरक्षित करना है। मुनाफा कमाना नहीं।

शराब की जगह सैनिटाइजर

इसी तरह गीडा की शराब और केमिकल बनाने वाली फैक्ट्रियों की तस्वीर भी पूरी तरह बदल चुकी है। पूर्वांचल में शराब बनाने वाली आईजीएल फैक्ट्री में अब बड़े पैमाने पर सैनिटाइजेर का उत्पादन किया जा रहा है। शुरूआत में शराब का बॉटल में ही इसकी पैकिंग हो रही थी, लेकिन अब इसकी पैकिंग को बेहतर कर दूसरे राज्यों में भेजा जा रहा है। वर्तमान में यहां 30 हजार बॉटल सैनिटाइजर का उत्पादन प्रतिदिन किया जा रहा है। इसी तरह मेडिकल ऑक्सीजन सप्लायर मोदी केमिकल भी सैनिटाइजर का उत्पादन कर रही है। इसके मालिक प्रवीण मोदी का कहना है कि सैनिटाइजर में खुशबू आदि की बजाय क्वालिटी पर जोर है। इसीलिए इसकी डिमांड बाहर से भी आ रही है।

बन रहे पीपीई किट

गीडा में रेडिमेड कपड़ा बनाने वाली फैक्ट्रियों ने भी उत्पादों में बदलाव कर दिया है। गीडा में उद्यमी गौरव अग्रवाल की रेडिमेड गारमेंट की फैक्ट्री है। कोरोना के चलते उनकी फैक्ट्री में मजदूर पर्याप्त नहीं है। पिछले दिनों उन्हें पीपीई किट बनाने का ऑफर मिला तो वह उत्साहित हो गए। लखनऊ की एक फर्म को अंडमान निकोबार सरकार से जैम पोर्टल पर एक लाख पीपीई किट का आर्डर मिला है। जिसे देखते हुए फर्म ने पीपीई किट का उत्पादन शुरू किया है। इसके साथ ही बल्क में मास्क का भी उत्पादन किया जा रहा है।

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दुकानों का हुलिया बदला

दुकानों का स्वरूप भी कोरोना ने बदल दिया है। गोरखपुर में इलेक्ट्रिकल उत्पादों के बड़े कारोबारी आनंद रूंगटा ने बेटे शाश्वत के लिए क्राकरी का एक शो-रूम आठ महीने पहले खोला था। क्राकरी की बिक्री पर ग्रहण लगा तो अब यहां सैनिटाइजर, पीपीई किट जैसी कोरोना से बचाव को लेकर उत्पाद ही रखे जा रहे हैं। आनंद रूंगटा कहते हैं कि बाजार में बिक्री और डिमांड के साथ बदलाव करना कारोबारी मजबूरी है।

इम्यूनिटी बूस्टर की मांग

पूर्वांचल की सबसे बड़ी भालोटिया दवा मंडी में पहली बार ऐसा हो रहा है कि गर्मी के मौसम में थोक कारोबारी च्यवनप्राश की डिमांड फैक्ट्रियों को भेज रहे हैं। थोक कारोबारी दिलीप सिंह का कहना है कि च्यवनप्राश की डिमांड नवम्बर से फरवरी महीने के बीच ही रहती है, लेकिन आयुष मंत्रालय की गाइड लाइन के बाद लोगों में च्वयनप्राश की मांग बढ़ गई है। इसी तरह विटामिन सी और डी की वाली दवाओं की मांग भी तेजी से बढ़ी है। जबकि चिकित्सक डॉ.रजनीकांत श्रीवास्तव कहते हैं कि बिना चिकित्सक के सलाह के किसी प्रकार की दवा का सेवन घातक हो सकता है। दवा कारोबारी प्रवीन अग्रवाल बताते हैं कि लॉकडाउन में एंटीबायोटिक दवाओं की भी मांग घट गई है।

आयुर्वेदिक चीजों पर खर्च कर दिये 400 करोड़

लोग लग्जरी आईटम खरीदने से भले ही परहेज कर रहे हों लेकिन प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने को लेकर किसी प्रकार की कंजूसी नहीं कर रहे। बाजार के जानकारों के मुताबिक पिछले 60 दिनों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए गोरखपुरियों ने करीब 400 करोड़ रुपये खर्च किया है। आयुष मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि ने शरीर को अंदरूनी रूप से मजबूत रखने की जो एडवाइजरी जारी की उससे आयुर्वेद के उत्पादों में उछाल ला दिया है। च्यवनप्राश, शहद, गिलोय, अश्वगंधा, मुलैठी, तुलसी, काढ़ा की बिक्री में अचानक इजाफा हो गया है। हर्बल चाय की मांग आजतक उतनी नहीं बढ़ी, जितनी पिछले दो महीने में एकाएक बढ़ गई।

जड़ी बूटियों के दाम बढ़े

पूर्वांचल की सबसे बड़ी थोक किराना मंडी के अध्यक्ष अनूप किशोर अग्रवाल ने बताया कि फुटकर में दालचीनी 250 रुपए किलो है, तो जावित्री 2000 से 2100 रुपए किलो। कालीमिर्च 340 रुपए से 365 रुपए किलो में बिक रही है। सोंठ 250 रुपए किलो पहुंच गई। तुलसी 115 रुपए किलो हो गई जबकि फरवरी-मार्च के पीक सीजन में 70 रुपए किलो थी। गिलोय के भाव 35 से बढ़कर 70 रुपए किलो हो गया है।

थोक मंडी और फुटकर में रोज इन मसालों व जड़ी-बूटियों की बिक्री 3.5 से 4 करोड़ रुपए है। अप्रैल-मई में कभी भी इनकी बिक्री डेढ़-दो करोड़ रुपए रोज से ज्यादा की नहीं हुई। अन्य तमाम स्वास्थ्यवर्धक पेय (हेल्थ ड्रिंक) की बिक्री इन दिनों रोज 4 से 4.5 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है, जो पिछली गर्मियों में बमुश्किल 2 करोड़ रुपए रोज थी। थोक व्यापारी वीरेन्द्र मौर्या ने बताया कि मांग बढ़ते ही कंपनियों ने होलसेलर का एक फीसदी मार्जिन घटा दिया।

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कारोबार में बदलाव की मजबूरी

मजबूरी में तमाम लोग कारोबार बदल रहे हैं। कपड़े के थोक कारोबारी राजू लुहारुका ने पिछले दिनों सीमेंट का काम शुरू कर दिया है। अधिकतर कपड़ा मुंबई और सूरत से आता है। अभी वहां के हालात सुधरने वाले नहीं दिखते हैं। शादियों को लेकर जिस प्रकार बंदिशें हैं, और लोगों की सोच बदल रही है, उससे कपड़े का कारोबार हाल फिलहाल मंदा ही रहने वाला है। वहीं गोलघर में फूलों का कारोबार करने वाले समीर राय ने भी मौसमी कारोबार पर ध्यान देना शुरू कर दिया है।

फिलहाल उन्होंने गोरखपुर की प्रजाति गवरजीत का बगिचा खरीद लिया है। वह कहते हैं कि उम्मीद है कि 6 से 8 लाख रुपये की कमाई महीने भर में हो जाएगी। अब वह धंधा ही चलेगा जिसकी जरूरत रोज की है। आटो पार्ट्स के दुकानदार संतोष श्रीवास्तव ने दुकान पर सैनिटाइजर और मास्क भी रखने लगे हैं। कहते हैं कि जो ग्राहक समान तुरंत बदलवा लेते थे, वे कहते हैं कि मरम्मत कर काम चला दीजिए।

ब्यूटी पार्लर - सैलून का लुक बदल गया

ब्यूटी पार्लर और सैलून का लुक भी पूरी तरह बदल गया है। दाढ़ी बनाने के लिए यूज एंड थ्रो उस्तरा बहुत बिक रहा है। ब्लेड लगे इस उस्तरे की थोक में कीमत 8 से 9 रुपये के बीच है। कास्मेटिक के थोक कारोबारी हरिराम शर्मा का कहना है कि अब उन उत्पाद की ही तलाश है, जो कोरोना संकट काल में बिक सके। अब महिलाओं की क्रीम, लिपिस्टिक आदि की बिक्री बुरी तरह प्रभावित है।

बकाया वसूली को लेकर कैशबैक ऑफर

गीडा के उद्यमियों का 100 करोड़ से अधिक डीलरों पर बकाया है। गीडा के कुछ उद्यमियों ने पुराने बकाये को लेकर कैशबैक ऑफर देना शुरू कर दिया है। चेंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के आरएन सिंह का कहना है कि कच्चा माल क्रेडिट पर मिल जाता है। उद्यमी भी अपने उत्पाद को डीलरों को क्रेडिट पर देता है। लेकिन इस कारोबारी चेन को कोरोना ने बिगाड़ दिया है। अब उद्यमी नकदी की समस्या को दूर करने के लिए कैशबैक जैसे ऑफर देने को मजबूर हैं। फर्नीचर कारोबारी आरिफ साबिर का कहना है कि बदले हालात में सभी माल नकद खरीद रहे हैं। कच्चा माल नकद लेने पर कुछ छूट मिल रही है।

फैक्ट्री से कैश खरीदारी पर डीलरों को छूट दे रहे हैं। वहीं पुराने बकाया के लिए भी तीन फीसदी का कैशबैक दे रहे हैं। वहीं साहबगंज और महेवा मंडी के थोक कारोबारियों का भी 20 करोड़ से अधिक का बकाया रिटेलरों के पास है। बिस्कुट के थोक कारोबारी सौरभ अग्रवाल बताते हैं कि नकदी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। मार्केंट में 30 लाख से अधिक का बकाया है। दुकानदार लॉकडाउन का बहाना लेकर हाथ खींच रहे हैं। फैक्ट्रियां उधारी से मना कर रही है। अब अपना मुनाफा छोड़कर बकाया की वसूली कर रहे हैं। लोगों को नया माल तभी दे रहे हैं, जब पुरानी पर्ची का भी कुछ बकाया मिल रहा है। थोक कारोबारी अनिल अग्रवाल का कहना है कि मार्केट में पूंजी फंसने से कारोबारियों के आपासी रिश्ते भी खराब हो रहे हैं।

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आभूषण और रेडीमेड कपड़ों का वर्चुअल ट्रायल

सर्राफा और रेडिमेड कपड़ों का मार्केट पूरी तरह तबाह होता दिख रहा है। दुकानदार सिर्फ दिखावे के लिए यह बता रहे हैं कि बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। गोरखपुर की सबसे बड़ी ज्वैलरी के शो-रूम से 30 से अधिक कर्मचारियों की छटनी की जा चुकी है। हीरे के आभूषणों के खरीदार तो बिल्कुल ही नहीं है। अलबत्ता सर्राफा के धंधे में उल्टी गंगा बह रही है।

सर्राफा पंकज गोयल बताते हैं कि अब ज्वैलरी खरीदने वालों के मुकाबले बेचने वालों की संख्या अधिक है। तमाम जरूरतमंद लोग पत्नियों के आभूषण बेचकर परिवार का गुजारा कर रहे हैं। वहीं सर्राफा सोमू निगम कहते हैं कि जबतक वैवाहिक कार्यक्रम पहले की तरह नहीं होंगे तबतक आभूषणों के बाजार में मंदी ही रहेगी। हजारों कारीगर बर्बाद हो गए हैं। बिगड़े हालात को सुधारने के लिए शो रूम ऐसे एप लांच कर रहे है जिससे आभूषणों का महिलाएं वर्चुअल ट्रायल ले सकें।

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