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ऊंची बर्फीली चोटी पर आईस-हॉकी से रोमांचित करेंगे बच्चे

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Published on: 12 Nov 2016 1:12 PM GMT
ऊंची बर्फीली चोटी पर आईस-हॉकी से रोमांचित करेंगे बच्चे
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लद्दाख़ः बच्चे अपना उत्साह नहीं रोक सकते हैं। घण्टों स्केटिंग रिंक के आर-पार रुकते, गिरते और हंसते हुए फिसलकर गोल करके रोमांचित होते हैं। यह नजारा शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान वाले लद्दाख का है। यह बच्चे सिर्फ गरम पतलून और बिना फिटिंग वाले स्केट्स पहनकर मैदान में रहते हैं। वास्तव में यह भारतीय अंदाज की आइस हॉकी है और ऐसा ही पूरे उत्तरी लद्दाख में है फिर भी चारों तरफ पूरी तरह उत्साह है। आइस हॉकी के बारे समझा जाता है कि यह यूरोप के ठंडे देशों का ही खेल है। लेकिन भारत में आइस हॉकी का वजूद ही नहीं है बल्कि यह पनप भी रहा है। लद्दाख में आइस हॉकी यहां बहुत मशहूर है बहुत लोकप्रिय भी। ऊंचे बनाए गए मचान और वहां लगी चमकदार रोशनी बर्फ की चोटियों से घिरा स्केटिंग रिंक इस खेल के लिए एक उपयुक्त वातावरण बनाता है।

सेवांग ग्लेट्सन (२३) कहते हैं कि कैसी भी ठंड हो खेलना तो है ही। यह खेल इतना साहसी, इतना रोमांचक है हम अंदर नहीं रह सकते हैं। हर जाड़े में लेह घाटी का तापमान -20 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाता है। ऐसे में शुरू होता है आइस हॉकी टूर्नामेंट। यह होता है जमी झीलों पर। सेवांग ग्लेट्सन के अनुसार बचपन का रोमांच जीवन भर के जुनून में बदल गया है। उन्होंने कहा कि वह 22 खिलाडिय़ों क ी भारतीय राष्ट्रीय आइस हॉकी टीम के कोच भी हैं और भारतीय टीम के कप्तान भी।

एडम शेरलिप (31) न्यूयॉर्क के हैं। वह आइस हॉकी के कट्टर समर्थक हैं। 2009 के बाद से वह टीम से जुड़े हुए हैं और इसके कोच के रूप में स्वेच्छा से अपना समय देते हैं।

शेरलिप दशकों से आइस हॉकी खेल रहे है। उन्होंने कहा कि जब वह अमेरिका की राष्ट्रीय हॉकी लीग के लिए काम कर रहे थे, तब उन्हें लद्दाख में टूर्नामेंट के बारे में जानकारी हुयी। वह लद्दाख आए और देखा कि किस तरह रिंक में एक पत्थर के टुकड़े और एक घुमावदार छड़ी के साथ बच्चे आइस हॉकी खेलते हैं। गोलकीपर तकिए का उपयोग करते हैं। कुछ तो क्रिकेट के पैड वगैरह पहनते हैं। लेकिन शेरलिप ने पाया कि यहां खेलने के लिए जुनून सभी खिलाडिय़ों में एक जैसा है।

चुनौतियां कम नहीं : सन् २००२ से आइस हॉकी भारत में पहचान बनाए हुए है। इसके समक्ष ढेरों चुनौतियां हैं। यह आर्थिक रूप से बहुत कमजोर है। कोई सरकारी पैसा नहीं मिलता। प्रायोजक जैसी कोई चीज नहीं है। टूर्नामेंट में खेलने के लिए दूसरों के उपकरण उधार लेने पड़ते हैं। बीते सात वर्षों के दौरान लद्दाख की हॉकी टीम ने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया जिसमें टीम ने २०१२ में मकाउ के विरुद्ध एकमात्र मैच जीता। है।

शेरलिप कहते हैं कि भारत में सिर्फ देहरादून में रिंक था जो धन की कमी के कारण बंद कर दिया गया। फिलहाल तो खिलाडिय़ों को चंद हफ्तों के लिए हर साल जब लद्दाख की झीलें जम जाती हैं तब प्रशिक्षित करते हैं।

आइस हॉकी एसोसिएशन के सचिव हरजिंदर सिंह कहते हैं कि अभी तक हमें किसी का भी समर्थन नहीं मिला है। एक बार बुनियादी ढांचे का विकास हो जाए तो हमें अपने लीग करवाने में मदद मिल सकती है। फिर पैसा और प्रायोजक अपने आप आने लगेंगे। हरजिंदर सिंह दिल्ली में एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी चलाते हैं। वह स्वयंसेवक के आधार पर एसोसिएशन का प्रबंधन करते है। इस वर्ष संघ के पास फिर पैसे का संकट है। टीम को किर्गिजिस्तान की यात्रा करनी है लेकिन पैसे का जुगाड़ होना बाकी है। एसोसिएशन अपनी वेबसाइट के जरिए लोगों से चंदे और मदद मांगती है।

भारत में आईस हॉकी

आइस हॉकी भारत में शिमला, लद्दाख और कश्मीर जैसे स्थानों में ही होती है। आइस हॉकी के मैदान को रिंक कहा जाता है और यह वॉलीबॉल मैदान के बराबर होता है। देहरादून में एक कृत्रिम इनडोर आइस स्केटिंग रिंक है लेकिन अब बुरे हाल में है। आइस हॉकी टीम में १८ खिलाड़ी खेलते हैं। देश का सबसे पुराना शिमला आइस स्केटिंग क्लब है जो 1920 के में बना था। लद्दाख का शीतकालीन स्पोर्ट्स क्लब 1935 में स्थापित किया गया था। दोनों ही कल्ब अंतरराष्ट्रीय एसोसिएशन ने संबद्ध हैं। आइस हॉकी का भारत में अभी तक कोई बड़ा आयोजन नहीं किया गया है।

गंभीर ने दी मदद

क्रिकेटर गौतम गंभीर ने पिछले साल आइस हॉकी टीम को एशिया चैलेंज कप में हिस्सा लेने के लिए चार लाख रुपए दिए थे। गंभीर के अनुसार उन्होंने रेडियो पर आइस हॉकी टीम की अपील सुनी और अपने ट्रस्ट गौतम गंभीर फाउंडेशन (जीजीएफ) के जरिए उनकी मदद करने का निर्णय किया। गंभीर ने कहा कि यह शर्म की बात है कि खेलों को इतना समर्थन देने वाले देश में इन खेलों को नजरअंदाज किया जा रहा है। भारतीय आइस हॉकी टीम को उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने भी मदद का वादा किया है। महिंद्रा ने ट्वीट किया, ‘‘मैंने इन जुनूनी खिलाडिय़ों की मदद का फैसला किया है। सपोर्ट हॉकी। अब आपकी बारी। चक दे बर्फ पे।’’

रूस की आइस हॉकी टीम के खिलाड़ी, दो बार के ओलम्पिक चैम्पियन विचिस्लाव फेतिसफ का मानना है कि भारत में बहुत जल्दी ही आइस हॉकी ऊंचा मुकाम हासिल करेगी। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि भारत की खेल संस्थाएं जल्दी ही इस खेल को अपना लेंगी। भारत के पास विशाल क्षमता है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत चीन के बाद दूसरे नम्बर का सबसे बड़ा देश है। भारत के खिलाड़ी बढिय़ा हॉकी खेलते हैं। अगर वहाँ भी बर्फ के हॉकी मैदान बना दिए जाएं और खिलाडिय़ों को स्केट्स पर फिसलना सिखा दिया जाए, तो भारतीय आइस हॉकी टीम जल्दी ही विश्व की सर्वश्रेष्ठ टीमों में शामिल हो जाएगी।

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