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वाह भाई वाह! भारत की पहली वर्ल्ड सिटी अमरावती, आखिरकार सच हुआ मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का सपना
New Capital of Andhra Pradesh: आंध्र में नई राजधानी अब अमरावती कहलाएगी। जब आन्ध्रप्रदेश को विभाजित करके तेलंगाना बना तो उसके लिए कोई राजधानी नहीं थी। वहीँ अब इसकी नई राजधानी अमरावती हो गयी है।
Andhra Pradesh New Capital Amravati Full Information in Hindi
Andhra Pradesh New Capital Amravati: आन्ध्रप्रदेश को काट कर तेलंगाना तो बन गया लेकिन दो अलग अलग राजधानियां अब तक न बन पाईं। तेलंगाना को तो हैदराबाद बना बनाया मिल गया लेकिन आंध्र प्रदेश को नए सिरे से काम करना पड़ गया। आंध्र में नई राजधानी के लिए अमरावती को चुना गया । लेकिन 9 साल से मामला आगे बढ़ नहीं पाया।
अमरावती को एक चमकते हुए शहर का स्वरूप लेने का इंतज़ार है। अभी तक इसका अधिकांश हिस्सा कागज़ों पर ही है। ये लुभावने कागज आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण के कार्यालय में ब्लूप्रिंट और तमाम दुकानों में चिपके रंगीन नक्शों के रूप में नजर आते हैं और साथ में नजर आते हैं मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और उनके बेटे और मंत्री नारा लोकेश की तस्वीरों वाले पोस्टर।
2 मई को प्रधानमंत्री मोदी ने अमरावती राजधानी में 83 परियोजनाओं की आधारशिला रखी, जिनमें विधानसभा और उच्च न्यायालय भवन तथा नागायलंका में 1,459 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला डीआरडीओ मिसाइल परीक्षण केंद्र शामिल है, उन्होंने आठ राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं का उद्घाटन किया तथा अमरावती में तीन रेलवे परियोजनाएं समर्पित कीं। अब उम्मीदें जगीं हैं कि ये वर्ल्ड सिटी साकार होगी।
नायडू की परिकल्पना
अमरावती को राजधानी बनाने की परिकल्पना चंद्रबाबूनायडू की है जो उन्होंने नौ साल पहले की थी। आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र को बनाने के लिए 953 गाँवों और उनकी विशाल कृषि भूमि को चुना गया जहां धीरे धीरे इमारतों के लिए रास्ता बन रहा है। पिछले ही हफ़्ते राज्य के मंत्री पी नारायण ने कहा कि अमरावती आखिरकार “री लॉन्च” के लिए तैयार है। योजना यह है कि 2047 तक अमरावती सिंगापुर, शंघाई, न्यूयॉर्क और लंदन जैसे ग्लोबल शहरों में से एक बन जाएगा।
नई राजधानी
आगामी राजधानी शहर का नाम अमरावती से लिया गया है, जो गुंटूर जिले के उन तमाम गांवों में से है जो आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत आएंगे। यह गाँव उद्दंडारायुनिपलेम से लगभग 23 किमी दूर है, जहाँ अक्टूबर, 2015 में नए शहर की आधारशिला रखी गई थी।
गुंटूर का यह क्षेत्र सातवाहन साम्राज्य की राजधानी के रूप में जाना जाता है, जिसका शासन पहली शताब्दी के मध्य से तीसरी शताब्दी ईस्वी की शुरुआत तक चला था। श्री अमरलिंगेश्वर स्वामी मंदिर का स्थल, यह क्षेत्र एक बौद्ध स्थल भी है और अमरावती विकास निगम की वेबसाइट के अनुसार अमरावती महाचैत्य स्तूप यहाँ दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और तीसरी शताब्दी ईस्वी के बीच बनाया गया था।
क्या है बैकग्राउण्ड और पॉलिटिक्स
राजधानी परियोजना की शुरुआत 2014 में हुई, जब तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग किया गया और हैदराबाद को अगले 10 वर्षों के लिए दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाया गया। इसके बाद आंध्र को अपनी राजधानी एक नए शहर में ले जाना पड़ा। उसी वर्ष आंध्र प्रदेश में सत्ता में आई टीडीपी ने तब एक “जनता की राजधानी” की कल्पना की थी - एक ऐसा शहर जिसमें आसपास के गांवों के लोगों से भूमि का योगदान हो।
विजयवाड़ा या चित्तूर जैसे मौजूदा शहरों को राज्य की राजधानी के रूप में डेवलप करने के आह्वान को नज़रअंदाज़ करते हुए, नायडू ने कृष्णा के दाहिने तट पर एक ग्रीनफ़ील्ड शहर की घोषणा की और राज्य के बौद्ध संबंधों को ध्यान में रखते हुए इसका नाम अमरावती रखा।
अमरावती का सेलेक्शन यूँ ही नहीं किया गया था। दरअसल, यह क्षेत्र कम्मा समुदाय का गढ़ है, और इस समुदाय से ही टीडीपी की पहचान है। चंद्रबाबू नायडू खुद इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। यही वजह है कि वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और उसके प्रमुख वाई एस जगन मोहन रेड्डी शुरू से ही अमरावती परियोजना का विरोध करते रहे हैं। 2019 में जब नायडू जगन मोहन रेड्डी के हाथों सत्ता खो बैठे तो अमरावती का काम ठप्प हो गया। उस समय जगन रेड्डी ने तीन राजधानियों का प्रस्ताव रखा - अमरावती को विधायी राजधानी, कुरनूल को न्यायिक राजधानी और विशाखापत्तनम को प्रशासनिक राजधानी - ताकि सरकारी धन को कम्मा गढ़ में केंद्रित होने से रोका जा सके।
लेकिन जगन रेड्डी की योजना को कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ा क्योंकि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने मार्च 2022 में घोषणा की कि सिर्फ अमरावती ही राजधानी होनी चाहिए। रेड्डी की सरकार ने इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन उसे कोई राहत नहीं मिली।
अपनी स्थिति के अनिश्चित होने के कारण जल्द ही अमरावती एक भुतहा शहर में तब्दील हो गया। नायडू के कार्यकाल के दौरान अपनी ज़मीन के टुकड़े छोड़ने वाले किसानों ने सरकार पर विश्वासघात का आरोप लगाया। 2024 में जब नायडू की टीडीपी सत्ता में लौटी, तो अमरावती एक बार फिर सुर्खियों और विवादों में घिर गया। तब से मास्टरप्लान की धूल झाड़ दी गई है और नए पर्चे छपवाकर बांटे गए हैं।
अमरावती का हाल
आंध्र सरकार ने गुंटूर और कृष्णा जिलों में फैले 8,603.32 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया है। इसमें से अमरावती का मुख्य शहर - जिसमें विधानसभा और सचिवालय शामिल होंगे - 6.84 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। जबकि आवासीय और वाणिज्यिक स्थानों के साथ व्यापक राजधानी क्षेत्र 953 गांवों, 12 शहरी स्थानीय निकायों और गुंटूर में 26 मंडलों और कृष्णा जिलों में 30 मंडलों में फैला होगा। राजधानी गुंटूर जिले में आती है और इसमें 24 राजस्व गांव शामिल हैं।
अमरावती के डेवलपमेंट के लिए अनुमानित बजट 2024 में 64,910 करोड़ रुपये आंका गया था, जिसमें से भारत सरकार ने 15,000 करोड़ रुपये देने की बात कही है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, केंद्र ने विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से अमरावती के लिए 800 मिलियन डालर की सहायता भी प्रदान की है। राज्य सरकार को उम्मीद है कि अमरावती 2050 तक इस क्षेत्र के लिए एक "आर्थिक केंद्र" बन जाएगा। ये क्षेत्र 15 लाख नौकरियां पैदा करेगा, 35 लाख की आबादी को आवास देगा और 35 बिलियन डॉलर का सकल जीडीपी उत्पन्न करेगा।
कौन है डेवलपर?
राजधानी डेवलपमेंट का भार हैदराबाद स्थित कंस्ट्रक्शन कंपनी "नागार्जुन कंस्ट्रक्शन" (एनसीसी) उठा रही है। इस योजना का मुख्य केंद्र भव्य, छह मंजिला विकास प्राधिकरण भवन है जो राजधानी क्षेत्र में मुख्य पहुँच मार्ग से दूर बन रहा है। इसी भव से अगले 25 वर्षों में राजधानी परियोजना का कोआर्डिनेशन किया जाएगा। हालाँकि काम अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन छह महीने के भीतर पूरा होने की उम्मीद है।
अधिकारियों का कहना है कि अमरावती में वर्तमान में लगभग 3,500 कामगार काम कर रहे हैं। फुल स्पीड में काम शुरू होने के बाद यह संख्या 11,000 तक पहुंचने का अनुमान है और सभी ठेके दिए जाने के बाद ये संख्या 35,000 तक पहुंच जाएगी।
योजना के अनुसार, शहर में एक प्रशासनिक केंद्र होगा, जिसमें सचिवालय, विधानसभा और उच्च न्यायालय जैसी सरकारी इमारतें होंगी। वर्तमान में, विभिन्न गांवों में फैले इन भवनों में से प्रत्येक के लिए अस्थायी स्ट्रक्चर बनाये गए हैं, जिन्हें नई इमारतों के बनने के बाद गिरा दिया जाएगा।
रोजाना सुबह, सरकारी कर्मचारी, न्यायाधीश, वकील और विधायक हैदराबाद, विजयवाड़ा और आस-पास के शहरों और कस्बों से आते हैं और इन्हीं अस्थाई इमारतों में काम करते हैं और शाम को वापस लौट जाते हैं। खुद चंद्रबाबू, नायडू ने क्षेत्र के उंडावल्ली गाँव में एक ठिकाना बनाया हुआ है।
कई सरकारी इमारतों के 18 महीनों में बनकर तैयार होने की उम्मीद है, जिसमें विधायकों और एमएलसी, मंत्रियों और न्यायाधीशों के लिए आवास शामिल हैं। अधिकारियों का कहना है कि नई विधानसभा इमारत और उच्च न्यायालय के दो साल के भीतर तैयार होने की उम्मीद है जबकि सचिवालय तीन साल में बनकर तैयार हो जाएगा।
अलग अलग शहर
मास्टरप्लान में एक ‘न्याय शहर’ के लिए भी प्रावधान है, जो एक कानूनी और मध्यस्थता केंद्र होगा। इसमें अन्य इमारतों के अलावा उच्च न्यायालय और न्यायाधीशों के आवास होंगे। एक ‘वित्त शहर’ भी होगा जिसमें ऐसी इमारतें होंगी जो बैंकिंग, फिनटेक और वित्तीय सेवा फर्मों के लिए बेस का काम करेंगी।
एक ‘स्वास्थ्य शहर’ होगा जिसमें अस्पताल, चिकित्सा रिसर्च केंद्र और दवा उद्योग होंगे; अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण सुविधाओं वाला एक खेल शहर; आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण वाला एक ‘इलेक्ट्रॉनिक्स शहर’; फिल्म, मनोरंजन और डिजिटल मीडिया वाला एक ‘मीडिया शहर’; और अमरावती की आतिथ्य और सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने वाला एक ‘पर्यटन शहर।’
मास्टरप्लान में मूर्त रूप ले चुकी है अनोखी ‘नॉलेज सिटी’ जिसमें उच्च शिक्षण संस्थान और अनुसंधान एवं इनोवेशन सेंटर केंद्र हैं। वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, एसआरएम यूनिवर्सिटी और अमृता यूनिवर्सिटी जैसे कुछ संस्थानों ने पहले ही अपने आवासीय परिसर स्थापित कर लिए हैं, जिनमें राज्य भर से और उसके बाहर से लगभग 8,000 छात्र रह रहे हैं। अन्य संस्थानों के भी जल्द ही आने की उम्मीद है। मंगलगिरी में एम्स की इमारत निर्माणाधीन है, शहर को उम्मीद है कि जल्द ही बिट्स-पिलानी और एक्सएलआरआई के परिसर भी होंगे।
खेत के बदले आवासीय प्लॉट
राजधानी बनाने के लिए सरकार ने अनूठे लैंड पूलिंग पर काम किया है। लैंड पूलिंग योजना के तहत, सरकार राजधानी क्षेत्र में ऊंची वैल्यू वाले आवासीय और कमर्शियल भूखंडों के बदले किसानों से भूमि लेती है। पूलिंग योजना के तहत, किसानों को एक एकड़ कृषि भूमि के बदले अमरावती शहर में 1,000 वर्ग गज आवासीय भूखंड और 250 वर्ग गज वाणिज्यिक भूमि मिलती है।
2019 के रिकॉर्ड बताते हैं कि 25 गांवों के 28,181 भूस्वामियों ने राजधानी शहर के विकास के लिए अपनी निजी कृषि भूमि में से 35,215 एकड़ का योगदान दिया और सरकार ने पहले ही किसानों को 62,595 से अधिक ऐसे भूखंड आवंटित किए हैं। बहरहाल, काम जारी है लेकिन ग्रामीण अधीर भी हो रहे हैं क्योंकि डेवलपमेंट के इंतज़ार में कई साल बीत चुके हैं और काम खत्म होता नजर नहीं आ रहा।
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