History Of Kalibangan: क्यों और कैसे लुप्त हुआ भारत का प्राचीन नगर कालीबंगा? आइये विस्तार से समझते है!

Kalibangan Ka Itihas: कालीबंगा एक ऐसा स्थल है जो समय की धूल में छिप गया, लेकिन अपनी मौन दीवारों, ईंटों और खेतों की लकीरों के माध्यम से आज भी इतिहास की गूँज सुनाता है।

Shivani Jawanjal
Published on: 10 Jun 2025 4:01 PM IST
India Lost City Kalibangan History
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India Lost City Kalibangan History

History Of Kalibangan: भारत की धरती केवल जीवित परंपराओं की नहीं, बल्कि लुप्त हो चुकी महान सभ्यताओं की भी साक्षी है। यहाँ की मिट्टी में न जाने कितनी सभ्यताओं की कहानियाँ दबी पड़ी हैं, जो आज भी इतिहास की गहराइयों से मानवता की विकास यात्रा का संकेत देती हैं। उन्हीं रहस्यमयी स्थलों में एक है कालीबंगा, जो राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में स्थित है। यह प्राचीन नगर सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख शाखाओं में से एक रहा है, जिसकी खुदाइयों ने भारतीय पुरातत्व को चौंका देने वाली जानकारियाँ दीं।

कालीबंगा का नाम भले ही आम लोगों के लिए अपरिचित हो, लेकिन इसके गर्भ में छिपा इतिहास भारत की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विरासत की अमूल्य धरोहर है। आइए, इस विलुप्त मगर गौरवशाली नगर की रहस्यमयी परतों को समझते हैं, जो हमें हमारी प्राचीन सभ्यता के गौरवशाली अतीत से जोड़ती हैं।

कालीबंगा का भौगोलिक विश्लेषण


कालीबंगा, जिसका अर्थ है 'काली चूड़ियों वाला स्थान' अपने नाम में ही इतिहास की झलक समेटे हुए है। 'काली' का अर्थ जहाँ काले रंग से है, वहीं 'बंगा' पंजाबी भाषा में चूड़ी को दर्शाता है। कालीबंगा का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ की खुदाई में बड़ी मात्रा में काले रंग की चूड़ियाँ विशेष रूप से टेराकोटा, पत्थर और तांबे की प्राप्त हुई थीं, जो उस समय की सांस्कृतिक समृद्धि और आभूषणों के प्रचलन को दर्शाती हैं। कालीबंगा राजस्थान(Rajasthan) के उत्तर-पश्चिमी भाग में हनुमानगढ़(Hanumangarh) ज़िले में स्थित है और घग्घर नदी(Ghaggar River )के तट पर बसा हुआ है। कई विद्वान इस नदी को प्राचीन सरस्वती नदी(Saraswati River) का अवशेष मानते हैं जिससे इसकी ऐतिहासिक महत्ता और भी बढ़ जाती है। यह स्थल हनुमानगढ़ शहर से लगभग 30 किलोमीटर, बीकानेर(Bikaner)से लगभग 205 किलोमीटर और पंजाब(Punjab) के भटिंडा(Bhatinda) शहर से लगभग 95 - 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भारत-पाकिस्तान सीमा(India – Pakistan Border)के निकट होने के कारण भी यह भौगोलिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

कालीबंगा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


कालीबंगा, सिंधु घाटी सभ्यता जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और उन्नत स्थल रहा है। यह नगर नियोजन, दुर्ग निर्माण और योजनाबद्ध बस्तियों के मामले में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के समकक्ष माना जाता है। कालीबंगा की पहचान 1952 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के तत्कालीन निदेशक अमलानंद घोष ने की थी जबकि इसकी वैज्ञानिक खुदाई 1960 के दशक में डॉ. बी.बी. लाल और बी.के. ठाकुर के नेतृत्व में की गई। इस खुदाई से प्राप्त प्रमाणों ने कालीबंगा को सिंधु घाटी सभ्यता की एक विशिष्ट शाखा के रूप में स्थापित किया है। यहाँ से प्राप्त अवशेषों में उन्नत नगर व्यवस्था, कृषि उपकरण, अग्निवेदियाँ और विभिन्न दैनिक उपयोग की वस्तुएँ शामिल हैं जो इस बात का प्रमाण हैं कि यहाँ की सभ्यता धार्मिक, सामाजिक और तकनीकी दृष्टि से अत्यंत विकसित थी।

खुदाई से मिले अद्भुत प्रमाण


कालीबंगा की खुदाई में दो मुख्य सांस्कृतिक स्तर मिले हैं - पूर्व-हड़प्पा (लगभग 2900–2600 ई.पू.) और हड़प्पा काल (लगभग 2600–1900 ई.पू.), जो यहाँ निरंतर आवास और सभ्यता के विकास को दर्शाते हैं। इस प्राचीन नगर का भूगोल और वास्तुकला अत्यंत सुव्यवस्थित था। नगर दो प्रमुख भागों में विभाजित था जिनमे एक ऊँचा दुर्ग क्षेत्र, जो संभवतः प्रशासनिक या उच्च वर्ग के निवास के लिए था और दूसरा निचला नगर जहाँ आम जनता रहती थी। दोनों भागों के चारों ओर ऊँची मिट्टी की दीवारें थीं और नगर की सड़कों का जाल ऐसी दिशा में बिछा था कि वे सीधी, समांतर, तथा उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में व्यवस्थित थीं जो योजनाबद्ध नगर नियोजन का प्रमाण है। मकान ईंटों से बने थे जिनमें कमरे, रसोई, शौचालय और कई घरों में कुएँ भी पाए गए, जो उस समय की उन्नत जीवनशैली को दर्शाते हैं।

कृषि के क्षेत्र में कालीबंगा की विशेष महत्ता है क्योंकि यहाँ जोते हुए खेतों के अवशेष मिले हैं। जो विश्व के सबसे प्राचीन सिंचाई और कृषि प्रबंधन के उदाहरण माने जाते हैं। खेतों में बनी क्यारियाँ और लकीरें सुव्यवस्थित सिंचाई प्रणाली की ओर इशारा करती हैं। धार्मिक दृष्टि से भी यह स्थल महत्वपूर्ण है क्योंकि खुदाई में अग्निकुंड (fire altars) मिले हैं जो हवन और वैदिक परंपराओं से जुड़ाव का अंदाजा देते है। इसके अलावा कालीबंगा से प्राप्त काले और लाल रंग के मिट्टी के बर्तन, मोहरें, मिट्टी की मूर्तियाँ, तांबे व पत्थर के औजार, और मनके इस नगर की कला, शिल्प और व्यापारिक कौशल की साक्षी हैं। ये सभी प्रमाण कालीबंगा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और तकनीकी उन्नति की एक शानदार तस्वीर प्रस्तुत करते हैं।

कालीबंगा का पतन


कालीबंगा के पतन के पीछे अनेक प्राकृतिक कारणों का योगदान माना जाता है। खुदाई में इमारतों में पाई गई बड़ी दरारें और व्यापक विनाश के प्रमाणों के आधार पर विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि एक भयंकर भूकंप इस प्राचीन नगर के खत्म होने का मुख्य कारण हो सकता है। इसके साथ ही कालीबंगा सरस्वती नदी (आधुनिक घग्घर नदी) के किनारे स्थित था लेकिन ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्यों से यह स्पष्ट हुआ है कि, सरस्वती नदी का सूख जाना या उसका मार्ग बदल जाना भी, इस क्षेत्र के पतन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नदी के जल-स्रोत खत्म होने से सिंचाई और कृषि असंभव हो गई जिससे यहाँ के निवासियों का जीवन संकट में पड़ा। इसके अतिरिक्त कुछ शोधकर्ता बाढ़, जलवायु परिवर्तन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं को भी कालीबंगा के पतन के संभावित कारणों में मानते हैं। ये सभी प्राकृतिक घटनाएँ मिलकर इस सभ्यता के उजड़ने और लुप्त होने की प्रक्रिया को तेज करने में सहायक रहीं।

कालीबंगा का महत्व


कालीबंगा भारतीय उपमहाद्वीप का वह महत्वपूर्ण स्थल है जहाँ विश्व का सबसे पुराना जोता हुआ खेत मिला है जो इसे प्राचीन कृषि प्रमाणों में अग्रणी बनाता है। यह खोज सिंधु घाटी सभ्यता की कृषि तकनीकों की उन्नतता को दर्शाती है। साथ ही कालीबंगा में मिली अग्निकुंड जैसी धार्मिक संरचनाएँ इस क्षेत्र को सिंधु घाटी और वैदिक सभ्यता के बीच एक सांस्कृतिक सेतु के रूप में प्रस्तुत करती हैं। अग्निकुंड, हवन और यज्ञ से जुड़ी ये परंपराएँ वैदिक यज्ञों से मेल खाती हैं, जो दोनों सभ्यताओं के बीच धार्मिक निरंतरता और संपर्क का प्रमाण हैं। इसके अलावा कालीबंगा का राजस्थान में स्थित होना यह दर्शाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता केवल पंजाब और सिंध तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की ओर भी फैला हुआ था, जो सभ्यता के व्यापक प्रभाव को दर्शाता है।

वर्तमान स्थिति और संरक्षण

आज कालीबंगा एक संरक्षित पुरातात्विक स्थल के रूप में सुरक्षित है, जहाँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने एक छोटा संग्रहालय भी स्थापित किया है। इस संग्रहालय में खुदाई के दौरान प्राप्त वस्तुएं, उपकरण और स्थल के नक्शे प्रदर्शित किए गए हैं जो इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखने वाले शोधकर्ताओं और पर्यटकों के लिए महत्वपूर्ण आकर्षण हैं। हालांकि पर्यटक सुविधाओं की कमी और जनजागरूकता न होने के कारण कालीबंगा व्यापक जनता तक अपनी पहुँच नहीं बना पा रहा है। इसलिए इस ऐतिहासिक स्थल को बेहतर प्रचार, संरक्षण और सुविधाओं की आवश्यकता है, ताकि यह भारत के गौरवशाली अतीत की कहानी आने वाली पीढ़ियों तक प्रभावी रूप से पहुँच सके और इसका महत्व देश-विदेश में व्यापक रूप से जाना जा सके।

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