Karnatka Melukote History: सबसे पावन भूमि पर बना है ये तीर्थस्थल, आइये जाने दक्षिण भारत के मेलकोट के बारे में?

Karnataka Famous Melukote History: मेलकोट न केवल धार्मिक दृष्टि से अपितु सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी एक रत्न है।

Shivani Jawanjal
Published on: 6 May 2025 8:09 PM IST (Updated on: 6 May 2025 8:10 PM IST)
Karnataka Famous Tourist Place Melukote History
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Karnataka Famous Tourist Place Melukote History

Karnataka Famous Melukote History: भारत की पावन भूमि पर बसे तीर्थस्थल न केवल आध्यात्मिक चेतना को जागृत करते हैं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक वैभव का भी साक्षात प्रमाण हैं। ऐसा ही एक दिव्य नगर है, मेलकोट (Melukote), जिसे श्रद्धा से तिरुनारायणपुर भी कहा जाता है। कर्नाटक राज्य के मांड्या ज़िले में स्थित यह नगर श्री वैष्णव संप्रदाय का एक महत्वपूर्ण तीर्थक्षेत्र है, जिसकी पहचान अद्भुत स्थापत्य, आध्यात्मिक ऊर्जा और संत रामानुजाचार्य की अमिट छाया से जुड़ी हुई है। यह स्थल केवल एक धार्मिक गंतव्य नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन, भक्ति परंपरा और सांस्कृतिक गौरव का जीवंत प्रतीक भी है।

मेलकोट का भूगोल और महत्त्व

मेलकोट (Melukote), जिसे थिरु नरायणपुर (Thirunarayanapuram) भी कहा जाता है, भारत के कर्नाटक(Karnataka) राज्य के मंड्या(Mandya) जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। यह नगर विशेष रूप से श्रीवैष्णव परंपरा से जुड़ा हुआ है और यहाँ की आध्यात्मिक विरासत भारतीय धार्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मेलकोट की भौगोलिक स्थिति लगभग 12.64°N अक्षांश और 76.65°E देशांश पर है, और यह समुद्र तल से लगभग 950 मीटर (3117 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है, जिससे यह एक पठारी क्षेत्र बनता है। यहाँ की जलवायु शीतल और सुखद होती है, खासकर वर्षा ऋतु और सर्दियों में। यह स्थल मंड्या शहर से लगभग 50 किलोमीटर और मैसूर से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मेलकोट एक ऊँचे पठार पर बसा हुआ है, जो चारों ओर से छोटी-छोटी पहाड़ियों और हरे-भरे इलाकों से घिरा हुआ है, जो इस क्षेत्र को और भी आकर्षक बनाते हैं।

मेलकोट का इतिहास

मेलकोट का इतिहास लगभग 12वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है, जब इसे श्रीवैष्णव धर्म के महान संत श्री रामानुजाचार्य से जुड़ा गया। यह स्थान चोल और होयसला राजवंशों के शासन के समय महत्वपूर्ण था। रामानुजाचार्य ने इस क्षेत्र में श्रीवैष्णव सिद्धांतों का प्रचार किया और यहाँ के मंदिरों में सुधार किया।

मेलकोट का प्रारंभिक इतिहास इस तथ्य से भी जुड़ा हुआ है कि यह स्थान थिरु नरायणपुरम के नाम से भी प्रसिद्ध था। कहा जाता है कि यह नाम भगवान नरायण के मंदिर के कारण पड़ा था, जो इस क्षेत्र का प्रमुख स्थल है।

विजयनगर साम्राज्य और होयसला काल

मेलकोट ने विजयनगर साम्राज्य और होयसला साम्राज्य के दौरान विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व प्राप्त किया। इन दोनों साम्राज्यों के शासन में मेलकोट ने एक धार्मिक केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाई।

होयसला काल (12वीं शताब्दी) - इस समय, होयसला शासकों ने इस क्षेत्र को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण बनाया। होयसला शासक विश्णुवर्धन ने मेलकोट के श्री चेलुव नारायणस्वामी मंदिर को प्रतिष्ठित किया, जिससे इस स्थान की धार्मिक स्थिति मजबूत हुई।

विजयनगर साम्राज्य (14वीं शताब्दी) - विजयनगर साम्राज्य के समय में, विशेष रूप से कृष्णदेवराय के शासनकाल में, मेलकोट को एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित किया गया। यहाँ के मंदिरों में कई महत्त्वपूर्ण संरचनाओं का निर्माण हुआ।

रामानुजाचार्य का आगमन और प्रभाव

श्री रामानुजाचार्य का मेलकोट से गहरा संबंध है। कहा जाता है कि वे 12वीं शताब्दी के अंत में इस क्षेत्र में आए थे। वे विशिष्ट श्रीवैष्णव परंपरा के प्रवर्तक थे और उन्होंने यहां के मंदिरों में सुधार किया।

रामानुजाचार्य ने मेलकोट में चेलुव नारायणस्वामी के मंदिर में पूजा विधि में सुधार किया और इसे श्रीवैष्णव परंपरा के अनुसार स्थापित किया। उनके योगदान के कारण, मेलकोट को श्रीवैष्णव धर्म के अनुयायियों के बीच एक प्रमुख तीर्थस्थल माना गया। रामानुजाचार्य के अनुयायी और उनके शिष्य मेलकोट में उनकी शिक्षाओं का प्रचार करते रहे, और इस स्थान का धार्मिक महत्त्व दिन-ब-दिन बढ़ता गया।

मध्यकालीन संघर्ष और शासन

मेलकोट का इतिहास शाही संघर्षों से भी जुड़ा है। मैसूर के शासक हयसीला राजवंश और बाद में टीपू सुलतान के समय इस क्षेत्र में राजनीतिक संघर्षों का सामना करना पड़ा।

ब्रिटिश शासन के समय - ब्रिटिश शासन के दौरान मेलकोट एक शांतिपूर्ण धार्मिक स्थान बना रहा, हालांकि यहां की धार्मिक गतिविधियों पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव पड़ा।

मेलकोट का पुनर्निर्माण

मेलकोट का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व आज भी बरकरार है। 20वीं शताब्दी में मेलकोट में कई धार्मिक आयोजन, जैसे वैरामुडी उत्सव, और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों ने इस क्षेत्र की लोकप्रियता को बढ़ाया। आज यह स्थल हिंदू तीर्थयात्रियों और श्रीवैष्णव धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख गंतव्य बन गया है।

साथ ही, मेलकोट के चेलुव नारायणस्वामी मंदिर और योग नरसिंह मंदिर के पुनर्निर्माण और संरक्षण में भी कई सुधार किए गए हैं, जिससे इस क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहर को बचाया जा सका।

रामानुजाचार्य और मेलकोट का संबंध

मेलकोट का वास्तविक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्थान 11वीं शताब्दी में तब हुआ जब दक्षिण भारत के महान संत और दार्शनिक भगवत श्री रामानुजाचार्य ने यहाँ लगभग 12 वर्ष निवास किया। रामानुजाचार्य ने श्री वैष्णव मत को संगठित रूप में स्थापित किया और मेलकोट को इसका प्रमुख केंद्र बनाया।

रामानुजाचार्य को श्रीरंगम से भागकर मेलकोट आना पड़ा था क्योंकि तत्कालीन शासन में उन्हें धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। मेलकोट में उन्होंने 'चेलुव नारायण स्वामी मंदिर' की पुनः स्थापना की और वैष्णव परंपराओं को एक नई पहचान दी। उन्होंने मंदिर के रीति-रिवाजों को व्यवस्थित किया और यहां सामाजिक समरसता की स्थापना की। वे जाति और वर्ग से ऊपर उठकर हर व्यक्ति को भक्ति और सेवा का समान अधिकार मानते थे।

चेलुव नारायण स्वामी मंदिर (Cheluvanarayana Swamy Temple)

मेलकोट का सबसे प्रमुख धार्मिक केंद्र है चेलुव नारायण स्वामी मंदिर, जिसे 'तिरुनारायण मंदिर' भी कहा जाता है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा और इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मंदिर की मूर्ति के विषय में मान्यता है कि यह मूर्ति स्वयं भगवान कृष्ण ने द्वारका में पूजा के लिए बनवाई थी। बाद में यह मूर्ति रामानुजाचार्य द्वारा दिल्ली के सुल्तान से वापस लाई गई थी। यह घटना मेलकोट के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है।

कहा जाता है कि जब रामानुजाचार्य मूर्ति को वापस लाने दिल्ली गए, तो छोटी मूर्ति (उत्सव मूर्ति) ने स्वयं उन्हें बुलाया और उनके साथ दक्षिण लौट आई। आज भी इस मूर्ति को "चेलुवा पिल्लई" या "रामानुज पिल्लई" कहा जाता है।

यदुगिरी की पहाड़ियों पर स्थित नरसिंह मंदिर

मेलकोट के ऊपरी हिस्से में स्थित यदुगिरी नरसिंह मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यह मंदिर भगवान नरसिंह को समर्पित है और यहाँ से पूरे मेलकोट नगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए सैकड़ों सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए एक तप की तरह होती हैं।

धार्मिक उत्सव और मेलकोट


वेयल्कुट्ट उत्सव (Vairamudi Festival) - यह उत्सव मेलकोट का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक आयोजन है। इसमें चेलुव नारायणस्वामी की मूर्ति को हीरों के मुकुट (वैरामुडी) के साथ सजाया जाता है और भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इस उत्सव में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

रामानुज जयंती और नरसिंह जयंती - ये पर्व भी यहां विशेष रूप से मनाए जाते हैं, जिनमें भाग लेने के लिए दूर-दराज़ से भक्त आते हैं।

हस्तशिल्प और स्थानीय कला - मेलकोट अपने 'मेलकोट सिल्क साड़ी' के लिए भी प्रसिद्ध है, जो हाथ से बुनी जाती है और पारंपरिक डिज़ाइनों में तैयार की जाती है। यह सिल्क साड़ी दक्षिण भारत के उत्सवों और शादियों में विशेष रूप से पसंद की जाती है।

मेलकोट का सांस्कृतिक योगदान

मेलकोट केवल एक धार्मिक केंद्र ही नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक केंद्र भी है। यह स्थान शिल्पकला, संगीत, और साहित्य से भी जुड़ा हुआ है। यहाँ की वास्तुकला होयसाल, विजयनगर और मैसूर के वाडियार शासकों की कला का समावेश है। मेलकोट का उल्लेख कर्नाटक की लोककथाओं और धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। यहां का प्रसाद, खासकर पुलियोगरे (इमली चावल) बहुत प्रसिद्ध है, जिसे ‘मेलकोट पुलियोगरे’ के नाम से देशभर में जाना जाता है।

इतिहास में मुस्लिम आक्रमण

13वीं और 14वीं शताब्दी में जब दक्षिण भारत पर मुस्लिम सुल्तानों के आक्रमण हुए, तो मेलकोट भी इसकी चपेट में आया। दिल्ली सल्तनत के सेनापति मलिक काफूर ने यहां हमला किया और मंदिर की सम्पत्ति लूटी गई। इसके बाद विजयनगर साम्राज्य के शासकों और वाडियार राजाओं ने मेलकोट के पुनर्निर्माण और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

धार्मिक महत्त्व


मेलकोट धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थल है, जो विशेष रूप से श्रीवैष्णव परंपरा से जुड़ा हुआ है। यहां स्थित चेलुव नरायणस्वामी मंदिर (Cheluvanarayana Swamy Temple) इस नगर का प्रमुख धार्मिक केंद्र है। यह मंदिर 12वीं शताब्दी का माना जाता है और इसे श्रीवैष्णव संप्रदाय के प्रमुख देवता श्री चेलुव नरायण को समर्पित किया गया है। इस मंदिर का निर्माण विजयनगर शैली की वास्तुकला में हुआ है और यह महान संत श्री रामानुजाचार्य की जीवन यात्रा से गहराई से जुड़ा हुआ है।

मेलकोट में एक अन्य प्रमुख मंदिर योग नरसिंह मंदिर (Yoga Narasimha Temple) है, जो एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यहाँ भगवान नरसिंह की ध्यान मुद्रा में स्थित एक प्राचीन मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर से मेलकोट का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है, जो भक्तों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है।

इसके अतिरिक्त, मेलकोट को श्री रामानुजाचार्य की तपोभूमि के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने यहाँ लगभग 12 वर्षों तक निवास किया और श्रीवैष्णव सिद्धांतों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने मंदिर की पूजा-पद्धति को सुव्यवस्थित किया और इसे एक जीवंत आध्यात्मिक केंद्र में परिवर्तित कर दिया। मेलकोट आज भी उनकी तपस्या और योगदान की स्मृति को संजोए हुए है, और इस कारण यह स्थान हिंदू धार्मिक यात्रा का एक प्रमुख पड़ाव बना हुआ है।

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मेलकोट

मेलकोट को होयसला, विजयनगर और मैसूर वाडियार राजवंश का संरक्षण प्राप्त था। यहां के मंदिरों और शिलालेखों में इन राजवंशों की छाप देखी जा सकती है। यह स्थान धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक रहा है।

आधुनिक मेलकोट


आज मेलकोट एक प्रमुख पर्यटन और तीर्थ स्थल है। यह स्थान भारत सरकार और कर्नाटक सरकार द्वारा संरक्षित सांस्कृतिक विरासत स्थल घोषित किया गया है। यहाँ एक संस्कृत महाविद्यालय भी है, जो वैदिक और धार्मिक शिक्षा प्रदान करता है। आधुनिक युग में भी मेलकोट की शांति, परंपरा और आध्यात्मिकता लोगों को आकर्षित करती है।

सड़क और परिवहन सुविधा

मेलकोट सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। मैसूर, मंड्या और बंगलुरु से बसें और टैक्सी आसानी से उपलब्ध रहती हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन मंड्या या पांडवपुरा है, और निकटतम हवाई अड्डा मैसूर या बेंगलुरु अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।

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