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Bharat Ka Itihas: क्या बनवासी ही प्राचीन वैजयंती है? आखिर क्या है इस प्राचीन नगर नगर का रहस्य? आइये समझते है

Vaijayanti Banavasi History: वैजयंती एक ऐसा लुप्त नगर है जो भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म और साहित्य की अनेक परतों को अपने भीतर समेटे हुए है।

Shivani Jawanjal
Published on: 11 Jun 2025 2:26 PM IST
Karnataka Lost City Vaijayanti Banavasi History
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Karnataka Lost City Vaijayanti Banavasi History 

Lost City Vaijayanti: भारत की धरती प्राचीन सभ्यताओं और गौरवशाली नगरों की साक्षी रही है जिनमें से कई सभ्यताए इतिहास के गुम हो चुकी हैं। कुछ के अवशेष आज भी इतिहासकारों और पुरातत्वविदों को दिशा देते हैं तो कुछ केवल पुराणों, कथाओं और जनश्रुतियों में जीवित हैं। ऐसा ही एक रहस्यमयी और विस्मृत नगर है - वैजयंती। यह नगर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं था, बल्कि सांस्कृतिक वैभव, राजनीतिक प्रभाव और व्यापारिक समृद्धि का केन्द्र भी माना जाता था। वैजयंती का नाम आज इतिहास के पन्नों में धुंधला पड़ गया है लेकिन इसके पीछे छिपी कहानियाँ आज भी रहस्य, श्रद्धा और खोज की भावना को जीवंत रखती हैं।

न्यूजट्रैक के माध्यम से हम इस लुप्त नगर को खोजने का प्रयास करेंगे!

वैजयंती नगर का पौराणिक संदर्भ


'वैजयंती' एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 'विजय से जुड़ी हुई' या 'विजय की पताका' या 'विजय दिलाने वाली'। यह न केवल एक शब्द है बल्कि एक गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक भी है। 'वैजयंती माला' का उल्लेख श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु के गले में मिलता है, जो पाँच प्रकार की पवित्र मणियों या बीजों से बनी होती है। इसे पंचमहाभूतों का प्रतीक माना जाता है और यह दिव्यता, विजय तथा आध्यात्मिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। हालांकि कुछ जनश्रुतियों और प्राचीन कथाओं में 'वैजयंती' नामक नगर का उल्लेख एक शक्तिशाली और समृद्ध नगर के रूप में किया गया है लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। यह रहस्य ही 'वैजयंती' को और भी अधिक आकर्षक और शोध का विषय बना देता है।

इतिहासिक पृष्ठभूमि - कौन से राजवंशों से जुड़ा है वैजयंती?


वैजयंती नगर का सबसे प्रमुख उल्लेख बादामी चालुक्य और कदंब राजवंशों के साथ जुड़ा हुआ है।

4वीं से 6वीं शताब्दी के बीच कर्नाटक क्षेत्र में शासन करने वाले कदंब वंश ने दक्षिण भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। इस वंश की राजधानी वैजयंती, जिसे आज 'बनवासी' के नाम से जाना जाता है उस समय का एक प्रमुख राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र था। कदंब शासकों ने न केवल शासन प्रणाली को संगठित किया, बल्कि कन्नड़ और संस्कृत साहित्य को भी संरक्षण व प्रोत्साहन दिया। बनवासी में उन्होंने कई मंदिरों और शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की जिससे यह नगर दक्षिण भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आधार बना। कदंब वंश का कर्नाटक की भाषा, संस्कृति और प्रशासनिक संरचना के विकास में गहरा योगदान रहा।

इसके अलावा कदंब वंश के पतन के पश्चात बादामी चालुक्य वंश ने उन्हें पराजित कर उनके क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। कदंबों की सत्ता का अंत भी चालुक्य शासकों के सामंतों द्वारा ही हुआ था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि राजनीतिक परिदृश्य में चालुक्यों का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता गया। यद्यपि यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि चालुक्यों ने वैजयंती (बनवासी) को अपनी राजधानी बनाया था या नहीं । फिर भी कदंबों के पतन के बाद यह क्षेत्र चालुक्य नियंत्रण में अवश्य आ गया था। बनवासी की समुद्र तट से निकटता और उसका व्यापारिक महत्व विशेष रूप से कदंब शासनकाल में उल्लेखनीय था जो इसे दक्षिण भारत के एक महत्वपूर्ण नगर के रूप में स्थापित करता है।

क्या कहता है वैजयंती का भौगोलिक विवरण?


इतिहासकारों और पुरातत्त्वविदों के अनुसार, वर्तमान उत्तर कन्नड़ जिला (कर्नाटक - Karnataka) में स्थित बनवासी(Banavasi) ही प्राचीन वैजयंती या वैजयंत नगर था। जो कभी कदंब राजवंश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। इसका उल्लेख द्वितीय शती ईस्वी के नासिक अभिलेख सहित अनेक ऐतिहासिक स्रोतों में भी मिलता है जो इसके प्राचीन और समृद्ध स्वरूप की पुष्टि करते हैं। आज भले ही बनवासी एक छोटा कस्बा रह गया हो लेकिन अतीत में यह दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र था। हालांकि चीनी यात्रियों फाहियान (4वीं शताब्दी) और ह्वेनसांग (7वीं शताब्दी) ने दक्षिण भारत की समृद्ध सभ्यताओं का उल्लेख किया है, लेकिन उनके यात्रा-विवरणों में बनवासी या वैजयंती का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। फाहियान की यात्रा मुख्यतः उत्तर भारत तक सीमित थी, जबकि ह्वेनसांग की यात्राओं के विवरण में कई दक्षिणी नगरों का वर्णन भी मिलता है । हालांकि इन वर्णनों में बनवासी को लेकर कोई सीधा प्रमाण लेखों में नहीं है।

वैजयंती की धार्मिक महत्ता


ऐतिहासिक और पुरातत्त्व साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्राचीन वैजयंती (वर्तमान बनवासी) एक अत्यंत धार्मिक रूप से समृद्ध और सहिष्णु नगर था। जहाँ शैव, वैष्णव और जैन धर्म की गतिविधियाँ एक साथ संचालित होती थीं। यद्यपि कदंब शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे, फिर भी उन्होंने अन्य धर्मों को भी संरक्षण दिया। यह उनके धार्मिक सह-अस्तित्व की नीति को दर्शाता है। बनवासी में आज भी ऐसे पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जो इस धार्मिक विविधता की पुष्टि करते हैं। यहाँ स्थित माधुकैशव मंदिर, जो एक प्राचीन विष्णु मंदिर है, कदंब काल की धार्मिक स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर न केवल कदंब राजाओं की धार्मिक नीतियों का प्रतीक है, बल्कि बनवासी के वैभवशाली धार्मिक इतिहास को भी जीवंत करता है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में प्राप्त जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ और जैन मंदिरों के अवशेष इस बात का प्रमाण हैं कि यहाँ जैन धर्म भी समान रूप से फला-फूला था।

वैजयंती का सांस्कृतिक योगदान

प्राचीन वैजयंती अर्थात् आज का बनवासी, केवल राजनीतिक और धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से भी एक अत्यंत समृद्ध और प्रभावशाली केंद्र था। कदंब वंश के शासनकाल में यह नगर कन्नड़ और संस्कृत साहित्य के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हुआ। कदंब शासकों, विशेषकर राजा मयूरशर्मन ने कन्नड़ भाषा और साहित्य को राजकीय संरक्षण प्रदान किया, जिससे कई प्रारंभिक कन्नड़ काव्यों और ग्रंथों की रचना संभव हुई। बनवासी को प्राचीन परंपराओं में 'काव्य नगरी' और 'साहित्यिक तीर्थ' के रूप में वर्णित किया गया है। जहाँ कवियों, नाटककारों और कलाकारों का एक समृद्ध समुदाय विकसित हुआ था। यह नगर दक्षिण भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रमुख केन्द्र माना जाता है जिसने नाट्यकला, काव्य और भाषाई नवाचारों को जन्म दिया।

वैयजंती के लुप्त होने के संभावित कारण

प्राचीन वैजयंती (बनवासी) के पतन के पीछे कई ऐतिहासिक और प्राकृतिक कारणों का योगदान माना जाता है। राजनीतिक दृष्टि से यह नगर लगातार कदंब, चालुक्य, राष्ट्रकूट जैसे शक्तिशाली राजवंशों के बीच सत्ता संघर्ष का केंद्र बना रहा, जिससे इसकी स्थिरता और समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। राजधानियों का स्थानांतरण और आंतरिक कलह ने इसके राजनीतिक महत्व को धीरे-धीरे कम कर दिया। वहीं प्राकृतिक परिवर्तनों जैसे नदियों के मार्ग बदलना, बाढ़ या सूखा जैसी आपदाओं ने कृषि व्यवस्था और जनजीवन को प्रभावित किया जिससे नगर का विकास अवरुद्ध हुआ। साथ ही व्यापारिक मार्गों में बदलाव भी वैजयंती के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है । कभी समुद्र तट से निकटता के कारण यह एक व्यापारिक केंद्र था लेकिन मार्गों के स्थानांतरण से इसकी आर्थिक भूमिका कमजोर होती चली गई और अंततः यह नगर इतिहास की परछाइयों में विलीन हो गया।

पुरातात्त्विक खोजें और प्रमाण


बनवासी (प्राचीन वैजयंती) क्षेत्र में हुई पुरातात्त्विक खुदाइयाँ इस नगर की समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का ठोस प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। खुदाई में प्राप्त प्राचीन स्थापत्य अवशेष, शिलालेख, मूर्तियाँ और अन्य ऐतिहासिक सामग्री दर्शाते हैं कि यह नगर प्राचीन काल में एक उन्नत और समृद्ध केंद्र था। विशेष रूप से कदंब वंश द्वारा जारी किए गए ताम्रपत्रों और शिलालेखों में वैजयंती का विस्तृत उल्लेख मिलता है जिनसे न केवल कदंब शासकों की वंशावली, बल्कि उनके द्वारा किए गए दान, धार्मिक सहिष्णुता और प्रशासनिक नीतियों की भी जानकारी मिलती है। इन अभिलेखों में वैजयंती को 'स्वर्णभूमि' यानी समृद्ध भूमि की उपाधि दी गई है, जो इसके आर्थिक वैभव और सांस्कृतिक उन्नयन को दर्शाता है।

वैजयंती की आधुनिक छाया - बनवासी


आज का बनवासी(Banvasi) एक शांत और सुरम्य गाँव है लेकिन इसके प्राचीन गौरव और ऐतिहासिक महत्व की छाया यहाँ अब भी जीवित है। स्थानीय परंपराओं, लोककथाओं और सांस्कृतिक उत्सवों में वैजयंती (बनवासी) के स्वर्णिम अतीत की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यहाँ स्थित माधुकैशव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है बल्कि यह सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र बना हुआ है। इस मंदिर में आज भी नियमित पूजा-अर्चना होती है और विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्सव मनाए जाते हैं, जो बनवासी की जीवंत विरासत और ऐतिहासिक चेतना को सजीव रखते हैं।

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