History Of Mandu: यहाँ हवाओं में आज भी गूंजती मोहब्बत की दास्तान, जानिए मांडू की रानी रूपमती और बाज बहादुर की ऐतिहासिक प्रेम कथा

Madhya Pradesh Famous Mandu Ka Itihas: मांडू की विरासत हमें याद दिलाती है कि भारत का अतीत केवल किताबों में नहीं, बल्कि इन प्राचीन दीवारों में भी जीवित है। ऐसे स्थलों का संरक्षण हमारी सांस्कृतिक पहचान की रक्षा है।

Shivani Jawanjal
Published on: 6 May 2025 7:35 PM IST
Madhya Pradesh Mandu Queen Roopmati and Baz Bahadur Love Story
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Madhya Pradesh Mandu Queen Roopmati and Baz Bahadur Love Story

History Of Mandu: यह सच है कि भारत की धरती प्रेम कथाओं की अनमोल विरासत से भरी पड़ी है हीर-रांझा, लैला-मजनूं, सलीम-अनारकली जैसी गाथाएँ न केवल लोककथाओं में जीवित हैं, बल्कि आज भी लोगों के दिलों की धड़कनों में बसती हैं। इन्हीं में से एक अद्वितीय और दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानी है मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी मांडू से जुड़ी बाज बहादुर और रानी रूपमती की अमर प्रेम गाथा। यह केवल एक राजा और रानी की कहानी नहीं, बल्कि संगीत, सौंदर्य, संस्कृति और त्याग से सजी एक ऐसी दास्तान है जिसने समय के थपेड़ों के बावजूद अपने निशान इतिहास के पन्नों पर अमिट कर दिए हैं। आज भी मांडू की हवाओं में रूपमती की धुनें और बाज बहादुर का प्रेम गूंजता है, जो इस नगरी को एक रोमांटिक किंवदंती की तरह जीवंत बनाए हुए है।

मांडू का इतिहास

मध्यप्रदेश(Madhya Pradesh) के धार जिले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर, मांडू(Mandu)का इतिहास 6वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब इसे ‘मांडवगढ़’ के नाम से जाना जाता था। यह विंध्याचल की पहाड़ियों पर बसा हुआ है और चारों ओर से गहरी घाटियों और हरियाली से घिरा है। मांडू(Mandu) की वास्तुकला, महलों, दरवाजों और बावड़ियों की भव्यता इसे एक अनुपम ऐतिहासिक स्थल बनाती है। मांडू का इतिहास 6वीं शताब्दी (612 विक्रम संवत) से शुरू होता है, जब इसे 'मंडपा दुर्गा' कहा जाता था, जो बाद में 'मांडू' नाम में परिवर्तित हो गया। 10वीं-11वीं शताब्दी में यह परमार वंश के अधीन प्रसिद्ध हुआ।परमार वंश ने 9वीं से 14वीं शताब्दी तक मालवा क्षेत्र पर शासन किया, जिसकी राजधानी धार थी। राजा भोज (1010–1055) परमार वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक थे, जिन्होंने धार और मांडू को सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र के रूप में विकसित किया। उनके काल में संस्कृत, ज्योतिष, चिकित्सा और स्थापत्य कला में उल्लेखनीय प्रगति हुई। भोज के समय में मांडू एक प्रमुख सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र बन गया था। संस्कृत, ज्योतिष, चिकित्सा और स्थापत्य कला में यहाँ अभूतपूर्व प्रगति हुई। मांडू के इतिहास में कई राजाओं का शासन रहा, लेकिन सबसे प्रसिद्ध नाम है — सुल्तान बाज बहादुर, जो एक कलाकार, संगीत प्रेमी और संवेदनशील शासक के रूप में जाने जाते हैं।

दिल्ली सल्तनत और मांडू का स्वर्णकाल


14वीं शताब्दी में जब दिल्ली(Delhi) सल्तनत कमजोर हुई, तब मांडू को स्वतंत्रता मिली और इसका इतिहास एक नए मोड़ पर आया।जब दिल्ली सल्तनत कमजोर पड़ने लगी, तब मांडू को स्वतंत्र अस्तित्व प्राप्त हुआ और 1401 ईस्वी में दिलावर खान ने मालवा सल्तनत की स्थापना कर मांडू को अपनी राजधानी बनाया। इस नए युग की सबसे उज्जवल छवि उनके उत्तराधिकारी होशंग शाह (1406–1435) के शासनकाल में देखने को मिलती है। उनके नेतृत्व में मांडू न केवल एक समृद्ध नगर के रूप में उभरा, बल्कि स्थापत्य और सांस्कृतिक दृष्टि से भी स्वर्णकाल में प्रवेश कर गया। होशंग शाह का मकबरा, जो भारत का पहला संगमरमर से बना मकबरा माना जाता है, मांडू की स्थापत्य कला की उत्कृष्टता का जीवंत प्रमाण है। इसकी वास्तुशिल्प विशेषताएँ इतनी प्रभावशाली थीं कि बाद में मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने ताजमहल निर्माण से पूर्व अपने वास्तुकारों को इसकी शैली का अध्ययन करने भेजा था। मकबरे की संगमरमर की संरचना, भव्य गुंबद और बारीक जालीदार कारीगरी ताजमहल की प्रेरणा स्रोत मानी जाती हैं, जो मांडू की स्थापत्य परंपरा की गौरवशाली विरासत को दर्शाती हैं।

बाज़ बहादुर और रानी रूपमती की प्रेम कहानी


मांडू का सबसे प्रसिद्ध और रोमांटिक अध्याय है, बाज़ बहादुर(Baz Bahadur) और रानी रूपमती(Queen Roopmati) की प्रेम कहानी। 16वीं शताब्दी में मालवा के अंतिम स्वतंत्र शासक बाज़ बहादुर ने रानी रूपमती, जो एक गायिका थीं, से प्रेम किया। उनके प्रेम की गूंज आज भी मांडू की हवाओं में सुनाई देती है। रूपमती महल, जो ऊँचाई पर स्थित है, वहाँ से नर्मदा नदी को देखा जा सकता है। कहते हैं कि रानी रोज़ नर्मदा के दर्शन करती थीं।

जब राजा ने देखी रूपमती

कहते हैं, एक दिन बाज बहादुर शिकार पर निकले थे। वह एक झील के किनारे पहुंचे, जहाँ उन्हें एक युवती के स्वर सुनाई दिए। यह स्वर इतना मधुर और भावविभोर करने वाला था कि राजा ठिठक गए। पास जाकर देखा तो वह एक सुंदर युवती थी रूपमती, एक सामान्य किसान परिवार की बेटी, जो सौंदर्य और संगीत में अद्वितीय थी। बाज बहादुर उसके स्वर और सौंदर्य पर मुग्ध हो गए। उन्होंने रूपमती से विवाह का प्रस्ताव रखा। किंतु रूपमती ने स्पष्ट कहा कि वह केवल उसी स्थान पर रहेगी जहाँ से वह प्रतिदिन नर्मदा नदी के दर्शन कर सके, क्योंकि नर्मदा उसके लिए माता के समान थी।

बाज बहादुर ने उसके सम्मान और श्रद्धा को समझते हुए ‘रूपमती मंडप’ का निर्माण करवाया, जो नर्मदा के दर्शन योग्य ऊँचाई पर स्थित था। इसके बाद उन्होंने रूपमती से विवाह किया। इस प्रकार दो अलग सामाजिक पृष्ठभूमियों के लोग एक पवित्र प्रेम में बंध गए जिसमें न कोई छल था, न लालच बस संगीत, प्रकृति और आत्मा का जुड़ाव था

रूपमती और बाज बहादुर की अनोखी दुनिया

उनकी दुनिया संगीत और सौंदर्य से भरी थी। बाज बहादुर स्वयं एक कुशल गायक थे और रूपमती की सुरों में डूबी हुई मधुर वाणी उनके संगीत में और भी मिठास घोल देती थी। वे दोनों साथ बैठकर राग-रागनियों में रचते-बसते थे। उनकी प्रेम कथा मांडू की हवाओं में गूंजने लगी थी। रूपमती की सादगी और श्रद्धा ने उसे मांडू की रानी तो बना दिया, लेकिन वह कभी अपनी जड़ों को नहीं भूली। वह प्रतिदिन नर्मदा को नमन करती और अपनी लोकगाथाओं में उसे समाहित करती।

जब प्रेम का इम्तिहान हुआ

प्रेम की इस निर्मल दुनिया को तब झटका लगा, जब अकबर के सेनापति आदम खान ने मांडू पर आक्रमण किया। इतिहास में उल्लेख है कि मुगलों को मालवा की संपन्नता और बाज बहादुर के राज्य पर अधिकार प्राप्त करना था।

बाज बहादुर ने वीरता से लड़ाई की, लेकिन उनकी छोटी-सी सेना मुगल सेना के आगे टिक नहीं सकी। उन्हें युद्धक्षेत्र छोड़ना पड़ा। इधर मुगल सेनापति की नज़र रूपमती पर पड़ी, और वह उसे अपने हरम में ले जाना चाहता था।

रूपमती, जो आत्मसम्मान और प्रेम की प्रतिमूर्ति थी, ने यह अपमान सहन नहीं किया। उसने विषपान कर अपनी जान दे दी, लेकिन अपने प्रेम और गरिमा पर आँच नहीं आने दी। इस प्रकार, एक प्रेम कथा ने बलिदान का रूप ले लिया और अमर हो गई।

आज का मांडू


आज मांडू केवल एक ऐतिहासिक स्थल नहीं है, बल्कि वह जगह है जहाँ प्रेम आज भी सांसें लेता है। बाज बहादुर का महल और रूपमती मंडप आज भी मौजूद हैं। वहाँ खड़े होकर कोई भी महसूस कर सकता है उस प्रेम की प्रतिध्वनि, जो आज भी हवाओं में बह रही है। रूपमती मंडप से नर्मदा नदी के दर्शन आज भी संभव हैं जैसे रूपमती की आत्मा अब भी वहाँ विराजमान हो। महल की दीवारें, आंगन, और फव्वारे आज भी उनके प्रेम की गाथा को बयाँ करते हैं।

लोकगाथाओं और काव्य में प्रेम कथा का स्थान

इस प्रेम कथा ने केवल इतिहास ही नहीं, बल्कि साहित्य को भी समृद्ध किया है। मांडू की इस प्रेम कहानी पर अनेक कविताएँ, लोकगीत और नाट्य प्रस्तुतियाँ बनी हैं। मध्यप्रदेश की लोककथाओं में यह प्रेम गाथा एक पवित्र और त्यागपूर्ण उदाहरण के रूप में प्रस्तुत की जाती है।

मांडू की स्थापत्य विरासत


मांडू एक वास्तुकला प्रेमी के लिए किसी खजाने से कम नहीं। यहाँ की इमारतें अफगान, हिंदू और मुगल स्थापत्य का मिश्रण प्रस्तुत करती हैं।

जहाज़ महल - यह मांडू की सबसे प्रसिद्ध इमारतों में से एक है। इसे सुल्तान ग़ियासुद्दीन खिलजी ने बनवाया था। यह महल दो झीलों के बीच इस तरह स्थित है कि दूर से देखने पर यह किसी जल में तैरते जहाज़ जैसा प्रतीत होता है। इसका उपयोग रानियों और दासियों के लिए विश्रामगृह के रूप में होता था।

हिंडोला महल - इसका नाम 'हिंडोला' (झूला) इसलिए पड़ा क्योंकि इसकी झुकी हुई दीवारें किसी झूले जैसी प्रतीत होती हैं। यह दरबार हॉल के रूप में प्रयोग में आता था।

होशंग शाह का मकबरा - इस मकबरे की बनावट और सुंदरता इतनी प्रभावशाली है कि ताजमहल के वास्तुकारों ने भी इससे प्रेरणा ली थी। इसकी छत, गुंबद और पत्थर की जालियाँ स्थापत्य की उत्कृष्टता को दर्शाती हैं।

रूपमती महल - यह महल मांडू के सबसे ऊँचे स्थानों पर स्थित है और यहाँ से नर्मदा नदी के दर्शन होते हैं। इसकी वास्तुकला सरल परंतु सुंदर है और यहाँ से सूर्यास्त का दृश्य अत्यंत मनोरम होता है।

मांडू का सांस्कृतिक पक्ष

मांडू केवल स्थापत्य के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि इसका सांस्कृतिक पक्ष भी अत्यंत समृद्ध रहा है। यहाँ संगीत, शायरी और कविताएँ खूब फली-फूलीं। बाज़ बहादुर स्वयं एक अच्छे संगीतज्ञ थे और रूपमती की मधुर आवाज़ उस युग की पहचान बन गई थी। वर्तमान समय में भी मांडू में "मांडू उत्सव" मनाया जाता है जिसमें लोक संगीत, नृत्य, कला प्रदर्शनियाँ और स्थानीय भोजन का प्रदर्शन किया जाता है। यह उत्सव पर्यटकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है।

मांडू की भौगोलिक विशेषताएँ


इंदौर से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मांडू, मध्यप्रदेश के धार ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है, जो अपनी भौगोलिक विशेषताओं के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। यह नगर मालवा पठार के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर, समुद्र तल से लगभग 2000 फीट की ऊँचाई पर बसा है। इसकी त्रिकोणीय पठारी संरचना और चारों ओर फैली गहरी खाइयाँ इसे एक स्वाभाविक दुर्ग (किला) का स्वरूप प्रदान करती हैं। मांडू की जलवायु समशीतोष्ण है और वर्षा ऋतु में यह क्षेत्र अत्यंत हरियाली और कोहरे से ढका रहता है, जिससे इसकी प्राकृतिक सुंदरता और बढ़ जाती है। यहाँ कई प्राचीन बावड़ियाँ, कुंड और तालाब मौजूद हैं, जो वर्षा जल संचयन और जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत रहे हैं। मांडू से कुछ दूरी पर बहने वाली नर्मदा नदी को भी इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व से जोड़ा जाता है। यहाँ की मिट्टी और चट्टानी संरचना स्थापत्य कला को समर्थन देती है, जिससे कई भव्य महल, मस्जिदें और मंडपों का निर्माण संभव हुआ। मांडू की भौगोलिक विशेषताएँ न केवल इसे एक सुरक्षित ऐतिहासिक स्थल बनाती हैं, बल्कि इसे प्रकृति, वास्तुकला और इतिहास का अद्भुत संगम भी प्रदान करती हैं।

पर्यटन और संरक्षण

वर्तमान में मांडू एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहाँ भारतीय और विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा कई स्मारकों का संरक्षण किया गया है, परंतु कई भवन अभी भी उपेक्षित हैं। यदि इनका उचित रखरखाव और प्रचार किया जाए, तो मांडू विश्व धरोहर स्थलों की सूची में स्थान पा सकता है।

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