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इस अमावस्या करें कुश जमा, देश से बाहर कहीं-कहीं लग रहा है सूर्य ग्रहण

suman
Published on: 31 Aug 2016 12:11 PM GMT
इस अमावस्या करें कुश जमा, देश से बाहर कहीं-कहीं लग रहा है सूर्य ग्रहण
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लखनऊ: सूर्य ग्रहण हो या फिर चंद्र ग्रहण, खगोलविदों के लिए दोनों ही आकर्षण का केंद्र होते हैं। रही बात आम लोगों की, तो तमाम लोग इसे एक प्राकृतिक घटना के रूप में देखना चाहते हैं, तो बहुत लोग ऐसे भी हैं, जो इसे धर्म से जोड़ते हैं। खास कर हिंदू धर्म को मानने वाले लोग। जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तब सूर्य कुछ समय के लिए चंद्रमा के पीछे छुप जाता है। इसी स्थिति को वैज्ञानिक भाषा में सूर्य ग्रहण कहते हैं।

ग्रहण को हिंदू धर्म में शुभ नहीं माना जाता है। हालांकि ये एक भोगौलिक घटना है, लेकिन ज्योतिषियों के मुताबिक इन ग्रहणों का जीवन पर प्रभाव पड़ता है। इसी कारण ग्रहण के वक्त कुछ जरुरी सावधानियां बरतनी चाहिए। अब बात कर रहे हैं 1 सितंबर 2016 को लगने वाले सूर्य ग्रहण की। गुरुवार को भाद्रप्रद अमावस्या के दिन भारत में दिखाई न देने वाला कंकण सूर्य ग्रहण लगेगा,जो मॉरिशस, दक्षिण एशियाई देशों, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, नैरोबी, कीनिया, तंज़ानिया, कोंगो आदि अफ़्रीकी देशों, अटलांटिक हिंद महासागर और अंटार्कटिका में दिखाई देगा। इस कंकण सूर्य ग्रहण में जिनके घर में कोई गर्भवती महिला को घर से नहीं निकलना चाहिए।

इस दिन लगने वाली अमावस्या को कुशग्रहणी अमावस्या कहते हैं। इस अमावस्या से साल भर किए जाने वाले धार्मिक कार्य और श्राद्ध के कामों के लिए कुश (घास) को इक्कठा किया जाता है। इस बार कुशग्रहणी अमावस्या 1 सितंबर, गुरुवार को है। हिंदुओं के अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में कुश का उपयोग आवश्यक रूप से होता है

पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:।

कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया।।

मंत्र पढ़कर तोड़े कुश

हर गृहस्थ को इस दिन कुश का संचय (इकट्ठा) करना चाहिए। शास्त्रों में दस प्रकार के कुशों का वर्णन है। इनमें से जो भी कुश इस दिन मिल जाए, वही लेना चाहिए। जिस कुश में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो, वो देव और पितृ दोनों कार्यों के लिए उपयुक्त है। कुश निकालने के लिए अमावस्या के दिन सूर्योदय के समय में पूर्व दिशा में उत्तराभिमुख बैठकर ये मंत्र पढ़ें और दाहिने हाथ से एक बार में कुश उखाड़ें तो समृद्धि बढ़ती है और पितरों का आशीर्वाद बना रहता है।

विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।

नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।

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