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पिछले चार पीढ़ियों से इस परिवार में पैदा हो रहे है बिना उँगलियों के बच्चे
: परिवार में एक-आद सदस्य का अस्वस्थ होना तो आम बात है ,मगर गोंडा में एक ऐसा परिवार है जिसमे पिछले चार पीढ़ियों से सिर्फ अंगूठे वाली संतानें पैदा हो रही है.जी हाँ, ऐसा परिवार जहां बच्चों के हाथ में ना तो हथेली होती है ना ही पैर के पंजे या उंगलिया।कलाई और पैर के आगे सिर्फ अंगूठा होता है।ये अनोखी बिमारी इस परिवार में एक-दो नहीं बल्कि कई दशकों से चली आ रही हैं।
गोंडा: परिवार में एक-आद सदस्य का अस्वस्थ होना तो आम बात है ,मगर गोंडा में एक ऐसा परिवार है जिसमे पिछले चार पीढ़ियों से सिर्फ अंगूठे वाली संतानें पैदा हो रही है.जी हाँ, ऐसा परिवार जहां बच्चों के हाथ में ना तो हथेली होती है ना ही पैर के पंजे या उंगलिया।कलाई और पैर के आगे सिर्फ अंगूठा होता है।ये अनोखी बीमारी इस परिवार में एक-दो नहीं बल्कि कई दशकों से चली आ रही हैं।
जिले के तरबगंज तहसील क्षेत्र के बदलपासी पुरवा गांव में शीतला पाण्डेय के घर जब बिना हथेली और पंजों के एक लड़के ने जन्म लिया तो इसे दैवी प्रकोप माना गया। पंडित जी ने उसकी शारीरिक दशा देख उसका नाम राम भरोसे रखा।वैसे तो राम भरोसे की शादी पूर्ण स्वास्थ्य लड़की से हुई ,मगर उनके दोनों बच्चे भुलाई और मंतूरा भी अपने पिता की तरह बिना हथेली और पंजों के पैदा हुए।
तमाम दुश्वारियों को झेलते हुए भुलई बड़े हुए और पढ़ लिखकर पंचायत सेक्रेटरी बन गए। भावी पीढ़ी में विकलांगता के डर से भुलाई ने शादी नहीं की।वहीँ मंतूरा की शादी मजरे पंडित पुरवा में राम लखन पाण्डेय से हुई। पिता राम भरोसे से मिले इस बीमारी का प्रभाव मंतूरा की संतानों पर पड़ा।उनकी छह में से चार संतानें अयोध्या प्रसाद, बजरंगबली, चन्द्रभान और चन्द्रकली के कलाई के आगे सिर्फ अंगूठा ही है।
मंतूरा के बेटे अयोध्या के दो बेटे कुलदीप और संदीप, बजरंग बली का बेटा अजय और बरसड़ा गांव में ब्याही गई चन्द्र कली के चार में से दो बच्चे शेष नरायण और विजय नरायण भी बिना हथेली और पंजों के है ।
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गांव में और भी परिवार है इस बीमारी का शिकार
मुजेड़ गांव के राजेन्द्र सिंह के दोनों हाथ की उंगलियां आपस में जुड़ी हुई हैं। इसी गांव के एक प्रतिष्ठित परिवार के उमा शंकर सिंह भी पंडित परिवार की तरह अनुवांशिक बीमारी की चपेट में आ गए और वह भी बिना हथेली और पंजों के हैं। इण्टरमीडिएट तक पढ़े उमा शंकर कहते हैं कि भावी पीढ़ी में अनुवांशिक रोग न फैले इसलिए उन्होंने आजीवन विवाह न करने का निर्णय लिया। फिलहाल वह अपने पिता स्व. दाता बख्श सिंह के नाम एक विद्यालय चला रहे हैं।
बीमारी को दैवी प्रकोप मानती है मंतूरा
बिना हथेली और पंजों के जीवन की दुश्वारियां झेल रही मंतूरा इसे दैवी प्रकोप मानती हैं और पूजा पाठ में लीन रहकर लोगों का मार्गदर्शन करती रहती है । हर मंगलवार को उनके घर के सामने हनुमान मन्दिर में मेला लगता है। जहां लोग मंतूरा देवी से भभूत लेते हैं। मंतूरा के बेटे अयोध्या प्रसाद और चन्द्रभान किसी तरह दोनों हाथों से फावड़ा कुदाल पकडक़र खेतों में जी तोड़ मेहनत के बलबूते फसलों का अच्छा उत्पादन करते हैं। यही कारण है कि हाथ पैर से लाचार होने के बावजूद मंतूरा के परिवार को किसी के आगे हाथ फैलाने की नौबत नहीं आई। परिवार के पांच लोगों को विकलांग पेंशन भी मिल रही है।