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खुदीराम बोस जयंती: फांसी पर लटकने के लिए खरीदी थी नई धोती,जानें ऐसी ही दस रोचक बातें

खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहां हुआ था। उनके बारें में एक खास बात ये भी कही जाती है कि वह फांसी पर लटकने के लिए खुद ही नई धोती खरीदकर लाये थे।

Aditya Mishra
Published on: 3 Dec 2018 7:36 AM GMT
खुदीराम बोस जयंती: फांसी पर लटकने के लिए खरीदी थी नई धोती,जानें ऐसी ही दस रोचक बातें
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नई दिल्ली: आज देश के महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस का जन्मदिन है। वह भारतीय स्वाधीनता के लिये महज 18 साल की उम्र में देश के लिये फांसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के युवा क्रान्तिकारी देशभक्त माने जाते हैं।

उनके बारें में एक खास बात ये भी कही जाती है कि वह फांसी पर लटकने के लिए खुद ही नई धोती खरीदकर लाये थे। तो आइये जानते है खुदीराम बोस के लाइफ से जुड़ी दस खास बातों के बारें में:-

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यहां से जानते हैं खुदीराम बोस जिंदगी के बारें में

1. खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहां हुआ था।

2. उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े।

3. स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1905 में बंगाल के विभाजन (बंग-भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।

4. 6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट में भी उनका नाम सामने आया। इसके बाद एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गयी और इसमें उन्हें साथ मिला प्रफ्फुल चंद्र चाकी का।

दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर जिले पहुंचे और एक दिन मौका देखकर उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक दिया। लेकिन उस बग्घी में किंग्सफोर्ड मौजूद नहीं था। बल्कि एक दूसरे अंग्रेज़ अधिकारी की पत्नी और बेटी थीं। जिनकी इसमें मौत हो गयी।

5. बम फेंकने के बाद मात्र 18 साले की उम्र में हाथ में भगवद गीता लेकर हंसते - हंसते फांसी के फन्दे पर चढकर इतिहास रच दिया।

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6.मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मुजफ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था। उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे।

7. जब खुदीराम को फांसी दी गई थी उनकी उम्र 18 साल, 8 महीने और 8 दिन थी।

8. महज 16 साल की उम्र में बोस ने पुलिस थानों के करीब और सरकारी दफ्तरों को निशाना बनाकर बम धमाके किए।

9. जब खुदीराम शहीद हुए थे उसके बाद विद्यार्थियों और अन्य लोगों ने शोक मनाया। कई दिन तक स्कूल - कॉलेज सभी बन्द रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था।

10. उनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जिन्हें बंगाल के लोक गायक आज भी गाते है।

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Aditya Mishra

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