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यूपी: 4 साल की बच्ची ने हॉस्पिटल के गेट पर तड़प-तड़प कर तोड़ा दम
यूपी के शाहजहांपुर में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के डॉक्टरों की लापरवाही से एक चार साल की बच्ची की तड़प तड़प कर मौत हो गई।
शाहजहांपुर: गोरखपुर मे मासूमों की मौत के बाद अब शाहजहांपुर मे भी बच्चों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया है। यहां पिछले 15 दिन में अब तक 10 बच्चों ने अपनी जान गवां दी है। ताजा मामला यूपी के शाहजहांपुर का है। जहां डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के डॉक्टरों की लापरवाही से एक चार साल की बच्ची की तड़प तड़प कर मौत हो गई। बच्ची का पिता बच्ची को गोदी मे लेकर कभी हॉस्पिटल के अंदर भागता तो कभी बहार, लेकिन डॉक्टरों ने इलाज न हो पाने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया और बच्ची को लखनऊ रेफर कर दिया। गरीबी के चलते पिता बच्ची को लखनऊ नहीं ले जा पा रहा था और देखते ही देखते बच्ची ने अपनी जान गवां दी। इस घटना के बाद से एक बार फिर योगी सरकार में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई।
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थाना जलालाबाद के मनोरथपुर ग्राम निवासी सुखीराम अपनी चार साल की बच्ची को लेकर दोपहर दो बजे डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंचे। बच्ची के पिता का कहना है कि वह मजदूरी करता है। उसके पास इतना पैसा नहीं कि वह अपनी बेटी का इलाज किसी प्राईवेट नर्सिंग होम में करा सके। उसकी चार साल की बेटी लक्ष्मी के गले मे सूजन आ गई जिसके बाद वह डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंचा। जैसे तैसे उसने हॉस्पिटल में बच्ची को एडमिट कराया।
डॉक्टरों ने उस वक्त बच्ची को ग्लूकोज की एक बोतल लगा दी। इसके बाद बच्ची को कोई देखने तक नहीं आया और न ही उसका सही से कोई इलाज हुआ। बच्ची की हालत बिगड़ने लगी। जब बच्ची के पिता ने डॉक्टर से इसके बारे में कहा तो गुस्साए डॉक्टर ने बच्ची की बिमारी का हॉस्पिटल में इलाज न होने की बात कहकर बच्ची को लखनऊ रेफर कर दिया जबकि बच्ची का पिता इसके लिए राजी नहीं था।
आखिरकार बच्ची को हॉस्पिटल से निकाल दिया गया। बच्ची का पिता पैसे की तंगी के चलते रोते बिलखते सड़क पर इधर उधर भागता रहा और मदद की गुहार लगता रहा। लेकिन डॉक्टरों को तरस नहीं आया।
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इस दौरान कोतवाली पुलिस को जीप वहां आ पहुंची। घटना के बारे में जानकारी करने के बाद पुलिस ने अपना फर्ज निभाते हुए बच्ची को दोबारा ट्रामा सेंटर ले जाकर डॉक्टर को दिखाकर एडमिट कराया। बच्ची दर्द से तड़प रही थी उसके मूंह में खून निकल रहा था लेकिन डॉक्टर बच्ची को लखनऊ ले जाने की ही बात कर रहे थे यहां तक कि डॉक्टर ने फिर एंबुलेंस बुला ली। लेकिन बच्ची के पिता के पास पैसे नही थे। बेबस पिता सिर्फ रो रहा था और देखते ही देखते तड़प-तड़प कर बच्ची की सांसे थम गईं।
मृतक बच्ची के पिता ने बताया था कि उसके गांव मनोरथपुर गांव मे 9 बच्चे इसी बिमारी से मर चुके हैं। अब उसके बच्चे की बारी है। ये बात उसने तब कही थी जब उस बच्चे की मौत नहीं हुई थी। उनका कहना है कि जब उसके गांव मे बच्चों की मौत हुई थी तो उसके बाद गांव मे प्रभारी मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी थे। मृतक बच्चो के परिजनों को मंत्री ने दस दस हजार का मुआवजा और दो कुंटल गेहूं दिया था। उसके बाद 6 बच्चे और बिमार थे। जिनको मंत्री के आदेश पर लखनऊ रेफर कर दिया था। जब वह लखनऊ पहुंचा तो उसकी बच्ची को एडमिट ही नहीं किया जा रहा था। जब वह वापस लौटा तो इस बात की खबर मंत्री को लगी। इसके बाद उसकी बेटी और बाकी 6 बच्चों को एडमिट कर लिया गया। लेकिन जब उसकी बेटी का इलाज शुरू हुआ तो जांच से लेकर दवा तक के लिए उसके पास पैसे नहीं थे।
उसकी जमा पूंजी एक दिन में ही खत्म हो गई। जिसके बाद उसको हॉस्पिटल से निकाल दिया गया। वह घर आ गया और बच्ची को दवा खिलाता रहा। बच्ची के पिता के मुताबिक, दो दिन पहले उसकी बेटी की हालत बिगड़ी तो उसने बच्ची को एक प्राईवेट नर्सिंग होम में एडमिट कराया। जहां इलाज हुआ लेकिन उसके पास पैसे नहीं तो उसके वहां से भी भगा दिया गया। जिसके बाद वह गुरुवार को दिन मे दो बजे बच्ची को लेकर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंचा।
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क्या कहना है डॉक्टर का ?
डॉक्टर का कहना है कि लक्ष्मी नाम की बच्ची का इलाज किया जा रहा था। उसकी हालत गंभीर थी। इसलिए उसको रेफर कर दिया था। लेकिन बच्ची का पिता ले जाना नहीं चाह रहा था। अगर पिता बच्ची को यहां हॉस्पिटल में एडमिट करना चाहता है तो उसे एडमिट कर सकता है बस वह लिखकर दे दे। बच्ची को अगर कुछ हुआ तो इसकी जिम्मेदारी डॉक्टर की नहीं होगी।