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सेशन ट्रायल केसों मे मजिस्ट्रेट का काम पोस्ट आफिस की तरह नहीं
कोर्ट ने कहा कि यदि अपराध सत्र न्यायालय में विचारणीय है तो मजिस्ट्रेट को आरोपियों को डिस्चार्ज (दोषमुक्त) करने का अधिकार नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने अलीगढ़ के प्रतीक गुप्ता की याचिका पर दिया है।
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ने कहा है कि सत्र न्यायालय में विचारणीय मामलों में मजिस्ट्रेट पोस्ट आफिस की तरह नहीं है कि चार्जशीट पेश होते ही तुरन्त केस सत्र न्यायालय को भेज दे। मजिस्ट्रेट को चार्जसीट को संज्ञान में लेकर अभियुक्तों को सम्मन जारी करने और इसके बाद सत्र न्यायालय में भेज सकता है।
कोर्ट ने कहा कि यदि अपराध सत्र न्यायालय में विचारणीय है तो मजिस्ट्रेट को आरोपियों को डिस्चार्ज (दोषमुक्त) करने का अधिकार नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने अलीगढ़ के प्रतीक गुप्ता की याचिका पर दिया है। सीजेएम अलीगढ़ ने दहेज उत्पीड़न सहित कई आरोपो को लेकर कायम आपराधिक मुकदमे में डिस्चार्ज अर्जी खारिज कर दी। पुनरीक्षण भी सत्र न्यायालय से खारिज हो गयी।
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कोर्ट ने कहा कि जब मामला सत्र न्यायालय का हो तो मजिस्ट्रेट आरोपी को डिस्चार्ज नहीं कर सकता
दोनों आदेशों की वैधता को यह कहते हुए चुनौती दी गयी थी कि मजिस्ट्रेट को अर्जी तय करने का अधिकार था। सवाल उठा कि मजिस्ट्रेट को सत्र न्यायालय में विचारणीय मामलो में क्या अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि जब मामला सत्र न्यायालय का हो तो मजिस्ट्रेट आरोपी को डिस्चार्ज नहीं कर सकता।
वह संज्ञान लेकर सत्र न्यायालय को भेज देगा। कोर्ट ने कहा इस तर्क में बल नहीं है कि सत्र न्यायालय को केस भेजने से पहले मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट व साक्ष्यों की जांच करेगा। वह यह देख सकेगा कि क्या विश्वसनीय साक्ष्य है। केस किसके द्वारा मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालय, विचारण योग्य है। इसी क्रम में डिस्चार्ज अर्जी भी सुन सकेगा।
कोर्ट ने इन दलीलों को नही माना और कहा डिस्चार्ज अर्जी अधिकार क्षेत्र के आधार पर खारिज कर मजिस्ट्रेट ने गलती नहीं की है। मजिस्ट्रेट ने डिस्चार्ज अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि केस सत्र न्यायालय में विचारणीय है। मालूम हो कि याची प्रतीक गुप्ता और मोनिका जिंदल ने 5 दिसम्बर 15 को शादी की।किन्तु एक साल के भीतर ही विवाद शुरू हो गया।
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कोर्ट ने चार्जसीट रद्द करने से इंकार कर दिया
लड़की के पिता अरुण कुमार अग्रवाल ने एफआईआर दर्ज करा दी। पुलिस ने 3 लोगों पर चार्जसीट दी और बाद में पूरक चार्ज सीट में 3 अन्य लोगो को भी आरोपी बनाया। हत्या के प्रयास का भी आरोप लगा। हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी। कोर्ट ने चार्जसीट रद्द करने से इंकार कर दिया।
याची अधिवक्ता का कहना था कि यदि केस सत्र न्यायालय में विचारणीय है तो मजिस्ट्रेट को सम्मन करने का अधिकार नहीं है। जिसे कोर्ट ने सही नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट को चार्जसीट को संज्ञान लेने से रोकने का कोई कानून नहीं है। वह संज्ञान में लेकर केस सत्र न्यायालय को भेज देगा और विचारण सत्र न्यायालय में होगा।