×

गलत तरीका अपनाकर सजा देना अन्याय, सेना कोर्ट ने दिलाया न्याय

सजा देना गुनाह नहीं लेकिन गलत तरीका अपनाकर सजा देना अन्याय है। इसको कानून के राज में किसी प्रकार से स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस मामले में हाईकोर्ट से जो आरोप खारिज कर दिये गए थे उन्हें शामिल करते हुए सेना के एक ऐसे अफसर को दंडित कर दिया गया था। जिसे उसकी सेवाओं के लिए विशिष्ट व अति विशिष्ट सेवा मेडल मिला था। कोर्ट ने इस सजा को गलत बताते हुए भारत सरकार को फटकार लगाई और याची को 2008 से सभी लाभ देने के आदेश दिये।

priyankajoshi
Published on: 27 Jan 2018 12:13 PM IST
गलत तरीका अपनाकर सजा देना अन्याय, सेना कोर्ट ने दिलाया न्याय
X

लखनऊ: सजा देना गुनाह नहीं लेकिन गलत तरीका अपनाकर सजा देना अन्याय है। इसको कानून के राज में किसी प्रकार से स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस मामले में हाईकोर्ट से जो आरोप खारिज कर दिए गए थे उन्हें शामिल करते हुए सेना के एक ऐसे अफसर को दंडित कर दिया गया था। जिसे उसकी सेवाओं के लिए विशिष्ट और अति विशिष्ट सेवा मेडल मिला था। कोर्ट ने इस सजा को गलत बताते हुए भारत सरकार को फटकार लगाई और याची को 2008 से सभी लाभ देने के आदेश दिए।

नई दिल्ली निवासी सेना की जज एडवोकेट जनरल ब्रांच के पूर्व मेजर जनरल नीलेंद्र कुमार के प्रकरण में सामने आया जिसमें 1965 में कमीशन अधिकारी बनने के बाद 2004 और 2005 में भारत के राष्ट्रपति से विशिष्ट एवं अति-विशिष्ट सेवा मैडल प्राप्त किया लेकिन उसे 2008 में सीवियर डिस्प्लेजर की सजा दी गई थी।

ए.ऍफ़.टी. बार एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि जूनियर नेत्र पाल सिंह के माध्यम से सेना के गोपनीय तथ्यों को उजागर करने वाली रिट याचिका ले.कर्नल अनिल कुमार ने दिल्ली उच्च-न्यायलय में दायर की जिसमें याची पर आरोप लगाया गया कि उसके पास वैलिड कानून की डिग्री नहीं है, वह दिल्ली और सुप्रीम कोर्ट बार काउन्सिल का सदस्य है, एक वेबसाइट का मालिक है, कॉपी राईट कानून के खिलाफ सरकारी सुविधा में पुस्तकें लिखता, पढ़ता और बेचता है जिसे उच्च-न्यायलय ने 9 अगस्त 2007 को ख़ारिज कर दिया l

तत्पश्चात याची ने सीनियर ले. जनरल आई जे कोसी एवं अन्य के खिलाफ 18 और 29 सितम्बर एवं 22 अक्टूबर 2007, 31 जनवरी 2008 को थल-सेनाध्यक्ष के समक्ष लिखित शिकायत की। जिसका कोई जवाब याची को थल-सेनाध्यक्ष द्वारा देने के बजाय याची के खिलाफ ले.जनरल वेणुगोपाल के नेतृत्व में एक सदस्यीय जांच बैठा दी गई। यह जांच 24 से 27 दिसम्बर 2007 तक चली।

विजय कुमार पाण्डेय बताया कि याची ने जांच कमेटी की वैधानिकता को जब चुनौती दी तो उसके खिलाफ अनेक शिकायतों वाली एक जगमोहन नाम की अहस्ताक्षरित शिकायत पर 19 से 24 फरवरी 2008 तक कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी हुई जिसकी सूचना 28 फरवरी 2008 को नोटिस के माध्यम से याची को दी गई, जिसमें 15 आरोप लगाए गए। दिल्ली उच्च-न्यायालय ने इन 15 आरोपों को खारिज कर दिया था। लेकिन जो आरोप पत्र बना उसमें खारिज आरोपों को भी शामिल कर लिया।

याची ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी क्षेत्राधिकार, रेस-जुडिकेटा और प्राकृतिक-न्याय के विरुद्ध बताया लेकिन उसकी एक न सुनी गई यह पूरी जांच पश्चिमी-कमान के मेजर जनरल गुरुदीप सिंह और सेना-मुख्यालय के आरोपों और दिशा-निर्देशों पर आधारित थी। गुरुदीप सिंह ने याची के अधीनस्थ होते हुए जांच की और आरोप तय किए जो सेना नियम 177(3) के खिलाफ था l

कोर्ट ने भारत सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सेना रुल 170(3), 177 और 180 का पालन क्यों नहीं किया गया, उच्च-अधिकारी की अनुमति क्यों नहीं ली गई जो कि रितेश तिवारी एवं अन्य बनाम भारत सरकार में दी गई सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के विरुद्ध है और इसके बाद की सभी कार्यवाहिया तो स्वतः निरस्त हो जायेंगी। दूसरे यह कि जिसको खुद अधिकार हस्तांतरित है वह दूसरों को कैसे कर सकता है जो बेरियम केमिकल्स लि. बनाम कम्पनी लॉ बोर्ड, बहादुरसिंह लाखुभाई गोहिल बनाम जगदीश भाई एम कमलिया, प्रद्य्त कुमार बनाम मुख्य न्यायधीश कलकत्ता उच्च-न्यायालय में दी गई सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के विरुद्ध है। किसी की सलाह पर जांच नहीं कर सकते और विधिक प्रावधानों को दिशा-निर्देश के अनुसार नहीं चलाया जा सकता और आदेश में कारण बताना अनिवार्य तत्व है, कारण बताओ नोटिस में दिए गए जवाब पर विचार करना बाध्यकारी है जो नहीं किया गया। सेना कोर्ट ने सीवियर डिस्प्लेजर को ख़ारिज करते हुए सेना को आदेश दिया कि याची को 2008 से सेना के सभी लाभ दिए जाएं।

priyankajoshi

priyankajoshi

इन्होंने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत नई दिल्ली में एनडीटीवी से की। इसके अलावा हिंदुस्तान लखनऊ में भी इटर्नशिप किया। वर्तमान में वेब पोर्टल न्यूज़ ट्रैक में दो साल से उप संपादक के पद पर कार्यरत है।

Next Story