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संभलिए मोदी जी, किसान आंदोलन आपके लिए खतरे की घंटी हो सकती है
Vinod Kapoor
लखनऊ: केंद्र सरकार की अकसर आलोचना से बचने वाले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने किसान आंदोलन को लेकर नरेंद्र मोदी पर 12 जून को बड़ा हमला बोला। नीतीश ने कहा, 'केंद्र सरकार खासकर नरेंद्र मोदी ने किसानों से किया वादा नहीं निभाया।'
नीतीश बोले, '2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने वादा किया था, कि किसानों को उनकी फसल का बाजिव मूल्य दिया जाएगा, लेकिन तीन साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बाद भी केंद्र सरकार ने इस दिशा में कुछ भी नहीं किया है।'
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किसानों के साथ अन्याय हो रहा
किसानों की कर्जमाफी की आग अब महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु के अलावा अब देश के अन्य राज्यों में भी फैलने लगी है। इसी मुद्दे पर नीतीश कुमार चुप नहीं रह सके। नीतीश बोले, 'केंद्र सरकार ने किसानों से किया वादा नहीं निभाया। किसानों को फसल का उचित दाम नहीं मिला रहा है। ये सरकार किसानों के साथ न्याय नहीं कर रही है।'
बने राष्ट्रीय नीति
बिहार के सीएम ने किसानों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाने की मांग की। देश में किसानों के हालात ये हैं कि उनके लागत मूल्य तक खेती से नहीं निकल पा रहे हैं। कर्जमाफी के ऐलान से किसानों का संकट ख़त्म नहीं होगा। नीतीश यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा, 'जब यही (बीजेपी) पार्टी विपक्ष में थी तो कहती थी आज असम में किसानों पर गोली चली, तो आज फलां राज्य में किसानों के आंदोलन को कुचला जा रहा है। आज खुद ये पार्टी सत्ता में हैं तो देश की जनता देख रही है कि ये क्या कर रहे हैं।’
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10 दिनों से किसान सड़क पर
बीते 10 दिनों से महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश के किसान खेती छोड़कर सड़क पर आंदोलन कर रहा था। जिन फसलों को पसीना बहाकर उपजाया उसे अपने ही हाथों से सड़क पर बर्बाद करने को किसान मजबूर हुए। किसानों की शिकायत थी कि उन्हें एक तो फसल की सही कीमत नहीं मिलती, दूसरे कर्ज का बोझ उन्हें जीने नहीं दे रहा।
नीतीश की बात में दम तो है
वैसे, नीतीश की बात सही है कि किसानों की कर्ज माफी से कुछ नहीं होगा। वो केंद्र में एक साल से ज्यादा समय तक कृषि मंत्री भी रह चुके हैं। नीतीश अच्छी तरह जानते हैं कि कर्ज माफी का फौरी फायदा तो किसानों को मिल जाता है लेकिन बाद में स्थिति जस की तस हो जाती है। केंद्र सरकार बैंक के ही कर्ज माफ करती है लेकिन साहूकारों से लिए कर्ज का क्या? जो सूरसा के मुंह की तरह फैलता ही जाता है।
किसानों पर चौतरफा मार
कर्ज माफी से राज्य सरकरों पर भी आर्थिक बोझ बढ़ता है। दूसरी ओर, केंद्र सरकार इसकी भरपाई के लिए किसानों को देने वाली सुविधाओं में कटौती कर देती है। सिंचाई की योजनाएं रुक जाती हैं। आधारभूत सुविधाओं में कटौती होती है। आजादी के 70 साल बाद भी देश के किसान खेती के लिए बरसात पर ही निर्भर हैं। अभी तक 50 प्रतिशत खेतों को भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है। लिहाजा ज्यादा बरसात या सूखा होने पर उसकी फसल चौपट हो जाती है।
इस मामले में भारत इकलौता राष्ट्र
भारत एक ऐसा देश जहां उत्पादनकर्ता किसान को अपनी फसल की कीमत तय करने का अधिकार नहीं है। घर में प्लास्टिक का छोटा सा कारखाना लगाने वाला कोई भी व्यक्ति अपने उत्पाद की कीमत खुद तय करता है, लेकिन किसानों को ये अधिकार नहीं है।
बुंदेलखंड-विदर्भ जीता-जागता उदाहरण
केंद्र सरकार हर चार पांच साल में किसानों की कर्ज माफी की घोषणा करती है। इसके बावजूद कर्ज में डूबा किसान अपनी बीवी को बेबा और बच्चों को अनाथ छोड़ने को मजबूर होता है। यूपी का बुंदेलखंड और महाराष्ट्र का विदर्भ इलाका इसका उदाहरण है जहां हर साल कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या को मजबूर होते हैं।
यह आग यूपी की लगाई हुई है
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसानों के आंदोलन की आग यूपी की लगाई हुई है। यूपी में विधानसभा चुनाव में
पीएम नरेंद्र मोदी ने किसानों से कर्ज माफी का वायदा किया था। उन्होंने चुनावी सभाओं में कहा था कि बीजेपी की सरकार बनते ही पहली कैबिनेट बैठक में किसानों के कर्ज माफी का ऐलान होगा। किसानों ने उनके वायदे पर भरोसा किया और वोटों की बरसात कर दी। बीजेपी की सरकार भी बन गई। चूंकि, वादा पीएम का था इसलिए कैबिनेट की बैठक 15 दिन बाद बुलाई गई जबकि परंपरा के अनुसार सरकार के गठन के दिन ही कैबिनेट की बैठक होती है। कैबिनेट बैठक में किसानों के एक लाख रुपए तक के कर्ज माफ कर दिए गए। यूपी में कर्ज माफी के ऐलान के बाद महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में किसानों का आंदोलन शुरू हो गया। ये तमिलनाडु में पहले से चल रहा था। वहां के किसानों ने जंतर-मंतर पर नग्न होकर प्रदर्शन भी किया था।
मध्य प्रदेश में कृषि ग्रोथ 10 गुना ज्यादा
मध्य प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जहां कृषि ग्रोथ 20 प्रतिशत है। जबकि पूरे देश में ये औसतन 2 प्रतिशत रहा है। मध्यप्रदेश इसके लिए पांच बार पुरस्कृत भी हो चुका है।
राजनीतिक दुकान खुली
मध्य प्रदेश में आंदोलन कर रहे किसानों पर पुलिस फायरिंग में पांच की मौत के बाद राजनीतिक दुकान भी फटाफट खुल गई। गेहूं और चने के पौधे को पेड़ कहने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष मृत किसानों के परिवार वालों से मिलने को इतना आतुर हो गए कि दिल्ली से उदयपुर चार्टर जहाज से गए। वहां से सड़क मार्ग से मध्य प्रदेश में दाखिल हुए और ट्रैफिक नियमों की अवहेलना करते हुए मंदसौर गए। राहुल ने कहा, 'मोदी उद्योगपतियों के लाखों करोड़ रुपए के कर्ज माफ करते हैं लेकिन इसके लिए किसानों पर गोलियां चलवाते हैं।' राहुल ये बोलने के पहले भूल गए कि मनमोहन सिंह की 10 साल की सरकार में भी उद्योगपतियों के पांच लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज माफ हुए। भगोड़े विजय माल्या को भी यूपीए की सरकार के दौरान ही बैंक से कर्ज मिला था।
कर्ज माफी ठीक नहीं
कृषि के विशेषज्ञ बिहार के अभय कुमार सिंह इसे ठीक नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए कर्ज माफी का वायदा कर देते हैं, या वादा पूरा नहीं होता। यदि होता है तो केंद्र और राज्य सरकारों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। ये सिलसिला चलता रहता है और किसान हर चुनाव के बाद आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरता है। जिसमें राजनीतिक दल के लोग भी शामिल होते हैं जो हिंसा को हवा देते हैं। मध्य प्रदेश में ये साफ देखने को मिला।
नीतीश की सलाह पर ध्यान दे केंद्र
नीतीश ने मोदी को किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने की सलाह दी है ताकि उनको फसल की वाजिब कीमत मिल सके। नीतिश अब तक मोदी की नीतियों की आलोचना से परहेज करते रहे हैं। उन्होंने तो नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक केंद्र की नीति का समर्थन किया। जीएसटी पर हस्ताक्षर करने वाला बिहार देश का पहला राज्य बना था। इसके अलावा बिजली की समान दरों को लेकर उदय योजना पर हस्ताक्षर करने में बिहार सबसे पहले आगे आया।
उल्लेखनीय है कि किसी भी देश में किसानों का आंदोलन वहां की सरकार के लिए परेशानी का सबब रहा है। केंद्र के अच्छे काम को किसानों का आंदोलन पलीता लगा सकता है। लिहाजा नीतीश की सलाह पर ध्यान देने की आवश्यकता है।