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अनुच्छेद 370: जटिल है अक्साई चिन का मसला
लखनऊ: संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के साथ अक्साई चिन फिर चर्चा में आ गया है। अक्साई चिन जम्मू-कश्मीर का करीब 15 फीसदी हिस्सा है जिसके बारे में पहले शायद बहुत ही कम लोगों ने सुना होगा। अक्साई चिन पर अवैध रूप से चीन ने कब्जा किया हुआ है। चीन हमेशा ये दावा करता रहा है कि अक्साई चिन झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र है।
5 अगस्त को संसद में गृह मंत्री अमित शाह ने अक्साई चिन पर भारत का रुख स्पष्ट किया था। इसी संसद से ६० साल पूर्व २८ अगस्त १९५९ को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने बयान दिया था कि - ‘पूर्वी और उत्तर पूर्वी लद्दाख में आबादीविहीन एक बड़ा इलाका है। यहां के पहाड़ और यहां तक कि घाटियां भी १३ हजार फुट से ज्यादा की उंचाई पर हैं। चरवाहे ही थोड़ा बहुत गर्मियों में यहां अपने जानवर चराने ले जाते हैं। भारत सरकार की इस इलाके में कुछ पुलिस चेकपोस्ट हैं लेकिन दुर्गम इलाका होने के कारण अधिकांश चौकियां अंतरराष्ट्रीय सीमा से कुछ दूरी पर हैं।’
नेहरू ने आगे कहा - ‘अक्टूबर १९५७ और फरवरी १९५८ में कुछ चीनी टुकडिय़ां अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करके भारतीय सीमा में स्थित खुरनक फोर्ट तक आ गईं। चीन सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया गया और उनसे कहा गया कि वे हमारी सीमा में प्रवेश करने से बचें। इन पहाड़ी क्षेत्रों में सीमा का कोई भौतिक रेखांकन नहीं है लेकिन हमारे नक्शे इस विषय में एकदम स्पष्टï हैं। जुलाई १९५९ के अंत में इस क्षेत्र में भारतीय पुलिस का एक टोही दल भेजा गया। जब ये दल खुरनक फोर्ट की ओर जा रहा था तो सीमा से कुछ मील भीतर हमारे क्षेत्र में चीन की ताकतवर टुकड़ी ने उसे पकड़ लिया। ये घटना २८ जुलाई की है।’
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नेहरू ने बताया - ‘चीन ने दावा किया है कि वह इलाका उसका है। चीन ने कहा है कि वह पकड़े गए लोगों को छोड़ देगा। हमने उनके दावे पर आश्चर्य जताते हुए उन्हें एक नोट भेजा और इस सेक्टर में पारम्परिक अंतरराष्ट्रीय सीमा की सटीक जानकारी भी उन्हें दी। इस नोट का कोई जवाब नहीं आया है। हमारे टोही दल को १८ अगस्त को रिहा कर दिया गया।’
इन बयान के तीन दिन बाद नेहरू ने एक बहुत बड़ी कड़वी सच्चाई से देशवासियों को रू-ब-रू करा दिया कि चीन ने अक्साई चिन होते हुए एक सडक़ बना दी है। नेहरू ने राज्यसभा को बताया - ‘ चीन में की गई एक घोषणा के अनुसार येशेंग-गारतोक सडक़ जिसे सिंक्यिांग - तिब्बत हाईवे भी कहते हैं, इसका निर्माण सितम्बर १९५७ में पूरा हो गया था। पिछले साल दो टोही दल भेजे गए थे एक दल को तो चीनी सेना द्वारा बंदी बना लिया गया। दूसरा दल लौट आया और अक्साई चिन क्षेत्र में बनी नई सडक़ के बारे में कुछ जानकारी दी।’
अक्साई चिन दरअसल नेहरू सरकार की सबसे बड़ी एतिहासिक भूल थी। भूल यह कि चीन ने भारतीय क्षेत्र में लंबी-चौड़ी सडक़ बना डाली और दिल्ली सरकार को इसकी भनक तक न लग पाई। सीआईए ने २०१७ में लाखों गोपनीय जानकारियां सार्वजिनक की थीं जिसमें भारत और भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़ी भी कई रिपोर्ट्स हैं। कुछ रिपोर्टें अक्साई चिन के बारे में बातें बताती हैं। ऐसी ही ए$क रिपोर्ट में लिखा है - ‘ अक्टूबर १९५७ को एक चीनी अखबार ने खबर छापी कि दुनिया की सबसे ऊंची हाईवे सिंक्यिांग - तिब्बत सडक़ का निर्माण पूरा हो गया है। अखबार ने लिखा कि ये हाईवे ११७९ किमी लंबा है और इस पर ट्रकों की आवाजाही शुरू हो गई है।’
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यानी दिल्ली में बैठी सरकार को कुछ पता ही नहीं था या पता होने के बावजूद देश को इसकी जानकारी नहीं दी गई। नेहरू ने दो साल बाद संसद को यह जानकारी दी। ये जानकारी भी इसलिए दी क्योंकि २२ अप्रैल १९५९ को संसद में एक सदस्य ने कहा कि कई अखबारों में खबर छपी है कि चीन ने हमारे ३० हजार वर्ग मीटर इलाके पर दावा कर दिया है। तथा नक्शे में अक्साई चिन को चीनी इलाका दिखाया गया है। सांसद के सवाल पर नेहरू ने कहा - ‘माननीय सदस्य हांगकांग या ऐसी ही अन्य जगहों से उत्पन्न हुई ऐसी खबरों पर ज्यादा ध्यान न दें। हमारे (क्षेत्र पर) ऐसा कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दावा नहीं किया गया है।’ नेहरू ने अपने बयान में अक्साई चिन का नाम ही नहीं लिया था।
टकराव
नेहरू ने संसद में अपने बयान में जिस भारतीय टोही दल का जिक्र किया था उसकी सच्चाई ये थी कि अक्टूबर १९५९ में सीआरपीएफ के ७० सिपाहियों के दल ने लानक दर्रा पार करके अक्साई चिन में सीमा चौकी बनाने की कोशिश की। दर्रे पर चीनी सेना तैनात थी जिसने तीन सिपाहियों को बंदी बना लिया। अगले ही दिन एक झड़प में नौ भारतीय सैनिक मारे गए और सात बंदी बना लिए गए। मीडिया में ये खबरें उछलने के बाद ही नेहरू ने आधिकारिक तौर पर घोषणा कर दी कि अक्साई चिन पर चीन का कब्जा हो गया है।
चाऊ एन लाई
अप्रैल १९६० में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई हफ्ते भर की यात्रा पर दिल्ली आए। उन्होंने नेहरू को बातचीत के दौरान बताया कि अक्साई चिन हमेशा से चीन का हिस्सा रहा है। चाऊ एन लाई ने कहा - ‘हम भारत पर अपने नक्शे नहीं थोपते हैं और हम चाहेंगे कि भारत भी ऐसा न करे। अगर हमें कोई समझौता करना है तो हम दोनों के नक्शे बदलने होंगे। ये तभी होगा जब चीन सीमा के सवाल को हल कर ले।’ चाऊ एन लाई की यात्रा के दो साल बाद चीन ने अक्साई चिन में और भीतर तक कब्जा जमा लिया।
सीआईए की जानकारी
२०१७ में अमेरिका की सीआईए ने दस लाख से भी ज्यादा रिपोर्ट्स, दस्तावेज, पत्र वगैरह जारी किए थे या यूं कहिए कि सार्वजनिक किए थे। इनमें हजारों रिपोर्टें भारत और भारतीय उपमहाद्वीप से संबंधित थीं। एक रिपोर्ट १५ जुलाई १९५३ की थी जिसका विषय था ‘सिंकियांग से तिब्बत और लद्दाख तक सडक़ का निर्माण’। ये रिपोर्ट बताती है कि १९५२ में चीनी सेना की कैवलरी रेजीमेंट के कमांडेंट ने ऐलान किया कि क्षेत्र में नई सडक़ का निर्माण किया जाएगा।
सीमा विवाद की जड़
भारत-चीन में सीमा विवाद की जड़ 1834 में ही पड़ गई थी जब पंजाब में सिखों का राज था। 1834 में वो लद्दाख तक जा पहुंचे लेकिन चीन की सेनाओं ने उन्हें हरा दिया और खदेड़ते हुए लद्दाख और लेह पर कब्जा कर लिया। सिख और चीनियों के बीच 1842 में समझौता हुआ जिसमें तय हुआ कि एक-दूसरे की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया जाएगा। अंग्रेजों ने 1846 में सिखों को हरा दिया और लद्दाख पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। चीन के अधिकारियों से मिलकर तय हुआ कि प्राकृतिक चिन्हों के जरिए ही सरहद तय की जाएगी और सीमा पर बाड़ की जरूरत नहीं है। यहीं से असली सरहद गायब हो गई और कई लकीरों में दोनों देश उलझ कर रह गए।
नक्शे पर बनी सरहद की पहली लकीर जॉनसन लाइन है। 1865 में सर्वे ऑफ इंडिया के अफसर विलियम जॉनसन ने एक दिमागी रेखा खींची जिसके मुताबिक अक्साई चीन का इलाका जम्मू कश्मीर में आता है। लेकिन जॉनसन के काम की आलोचना हुई। चीन ने कभी इसे नहीं माना।
1899 में चीन ने अक्साई चिन के इलाके में दिलचस्पी दिखाई सो ब्रिटेन ने बदलाव सुझाया जॉर्ज मैककार्टनी ने और अक्साई चिन का ज्यादातर इलाका चीन में डाल दिया। चीन ने इसपर खामोशी लगा ली, ब्रिटिश राज ने इसे चीन की सहमति समझ ली। ये लाइन ही मौजूदा वास्तविक नियंत्रण रेखा है। 1947 में आजादी के बाद से ही भारत सरकार ने जॉनसन लाइन को ही आधिकारिक सरहद माना जिसमें अक्साई चीन भारत का हिस्सा था।