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भारत में पहली बार 'जल कथा' का आह्वान, बुंदेलखंड बनेगा जल चेतना का केंद्र!
Water Revolution Bundelkhand 2025: आज जब दुनिया जल संकट के मुहाने पर खड़ी है, तब भारत की सनातन संस्कृति एक अनूठे समाधान के साथ सामने आई है 'जल कथा'!
Water Revolution Bundelkhand 2025: क्या आप जानते हैं कि जिस पानी को हम रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए इस्तेमाल करते हैं, वह सिर्फ एक तत्व नहीं, बल्कि स्वयं नारायण का स्वरूप है? क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी नदियों को हम माँ क्यों कहते हैं और कुओं को तीर्थ क्यों मानते हैं? आज जब दुनिया जल संकट के मुहाने पर खड़ी है, तब भारत की सनातन संस्कृति एक अनूठे समाधान के साथ सामने आई है—'जल कथा'! यह सिर्फ एक कथा नहीं, बल्कि जल के प्रति हमारी खोई हुई आस्था को फिर से जगाने का एक आध्यात्मिक महायज्ञ है।
तालबेहट (ललितपुर) बुंदेलखंड की प्यासी धरती से एक ऐसा आध्यात्मिक आंदोलन शुरू होने जा रहा है, जो जल संरक्षण के प्रति हमारी सदियों पुरानी चेतना को पुनर्जीवित करेगा। 5 जून, विश्व पर्यावरण दिवस, से शुरू होकर 11 जून, 2025 तक, ललितपुर के ऐतिहासिक नगर तालबेहट के हजारिया महादेव मंदिर परिसर में पहली बार 'जल कथा' का आयोजन किया जा रहा है। यह अनूठी पहल जल को मात्र संसाधन समझने की आधुनिक सोच को चुनौती देते हुए, उसे फिर से 'देव' का दर्जा दिलाने का एक पवित्र प्रयास है।
जल: शिव, शक्ति और श्रद्धा का स्वरूप
सनातन धर्म ने हमेशा से जल को पंचमहाभूतों में सबसे पवित्र माना है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जब ब्रह्मांड की रचना हुई, तो सबसे पहले 'अपः तत्व' यानी जल ही प्रकट हुआ। यही कारण है कि जल को स्वयं भगवान विष्णु का स्वरूप, 'नारायण' कहा गया है। विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में रहते हैं, श्रीराम ने समुद्र से मार्ग माँगा और श्रीकृष्ण ने प्रदूषित कालिंदी का शुद्धिकरण किया—हर अवतार जल से जुड़ा है। आयोजकों का मानना है कि जब तक हमने जल को आस्था से देखा, हमने उसे संरक्षित रखा। लेकिन जैसे ही हमने उसे केवल एक भौतिक संसाधन समझा, हमने उसे खोना शुरू कर दिया। आज समय आ गया है कि हम उस धार्मिक चेतना को फिर से जागृत करें, जिसने हमारी नदियों को माँ का दर्जा दिया, कुओं को तीर्थ बनाया और जल को पूज्य माना।
धर्म और जल का आध्यात्मिक संगम
'जल कथा' कोई सामान्य प्रवचन नहीं है। यह एक गहन आध्यात्मिक तपस्या है जहाँ कथा के माध्यम से हम जल के वैदिक, पौराणिक और धार्मिक महत्व को समझेंगे। इसके साथ ही, जल यज्ञ के माध्यम से वरुण देवता की कृपा प्राप्त की जाएगी, ताकि हमारा देश, हमारी नदियाँ, कुएँ, तालाब और समस्त जीव-जगत 'पानीदार' बने रहें। कथा व्यासपीठ पर नैमिषारण्य से पूज्य साध्वी साधना गिरी जी विराजमान होंगी। वे सिर्फ एक संत नहीं, बल्कि प्रकृति की उपासक हैं, जो पंचमहाभूतों के ज्ञान को धर्म और भक्ति के साथ जोड़कर प्रस्तुत करेंगी। उनके साथ साध्वी संतोष संगीतकार जी अपने भजनों से कथा को और भी मधुर बनाएंगी।
'जल यज्ञ' और संतों का महासमागम
इस अद्वितीय आयोजन का एक महत्वपूर्ण अंग 'जल यज्ञ' है। अयोध्या से पधारे यज्ञाचार्य अक्षय द्विवेदी जी के सान्निध्य में वरुण देवता का विधि-विधान से पूजन किया जाएगा। इस दौरान देशभर से कई प्रसिद्ध पर्यावरण-संवेदनशील संत भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे, जिनमें गुजरात से महेंद्र बापू जी प्रमुख रूप से शामिल होंगे। इन संतों का आशीर्वाद और मार्गदर्शन इस अभियान को और भी बल प्रदान करेगा।
तालबेहट: एक ऐतिहासिक नगर, जिसकी आत्मा में है 'ताल'
इस पुण्य आयोजन के लिए तालबेहट को चुना जाना बेहद प्रतीकात्मक है। यह एक ऐतिहासिक नगर है जिसकी पहचान ही 'ताल' यानी तालाबों से है। कहते हैं कि जल के कारण ही यह नगर बसा और यहीं एक अभेद्य दुर्ग खड़ा हुआ। हजारिया महादेव मंदिर परिसर, जहाँ यह कथा होगी, स्वयं जल के प्रति आस्था का केंद्र रहा है।
'जल कथा' के लक्ष्य और बुंदेलखंड की 'जल सहेलियाँ'
इस 'जल कथा' का उद्देश्य बहुआयामी है:
धर्म के माध्यम से जल संदेश: जल संरक्षण की बात को भक्ति और श्रद्धा के साथ जन-जन तक पहुँचाना।
भक्ति से संरक्षण: जल संरक्षण को केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक धार्मिक कर्तव्य बनाना।
संस्कार और साक्षरता: समाज में जल के प्रति सही संस्कार और जागरूकता का बीजारोपण करना।
तालाबों का पुनर्जीवन: कथा से प्राप्त दानराशि को नगर के प्राचीन तालाबों के जीर्णोद्धार में लगाना।
इस प्रेरणादायक पहल के पीछे बुंदेलखंड की 'जल सहेलियाँ' हैं। ये महिलाएं सिर्फ समाजसेविका नहीं, बल्कि सच्चे अर्थों में जल धर्म की वाहिकाएं हैं। उनकी तपस्या, संघर्ष और संकल्प ने ही इस 'जल कथा' के स्वप्न को साकार किया है। 'जल कथा' का केंद्रीय संदेश स्पष्ट है: जल के प्रति श्रद्धा, धर्म के प्रति समर्पण और समाज के प्रति उत्तरदायित्व। आइए, इस पवित्र आयोजन का हिस्सा बनें और धर्म की भूमि से जल धर्म की पुनर्स्थापना के इस महायज्ञ में अपना योगदान दें, ताकि भारत फिर से जलमय—फिर से 'पानीदार' बन सके!
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