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Chandauli News: भूख हड़ताल की धमकी से हिली तहसील! लोकतंत्र की खैर नहीं अगर प्रशासन रहा ढीठ
Chandauli News: चकिया के गांधी पार्क में इन दिनों लोकतंत्र और प्रशासन के बीच रस्साकशी का दिलचस्प नजारा देखने को मिल रहा है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) भाकपा (माले) के नेतृत्व में चल रहा अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन अब भूख हड़ताल की चेतावनी तक पहुंच गया है।
Chandauli News: चकिया के गांधी पार्क में इन दिनों लोकतंत्र और प्रशासन के बीच रस्साकशी का दिलचस्प नजारा देखने को मिल रहा है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) भाकपा (माले) के नेतृत्व में चल रहा अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन अब भूख हड़ताल की चेतावनी तक पहुंच गया है। इसकी मुख्य वजह प्रशासन की "गांधीजी वाली चुप्पी" यानी मांगों पर किसी भी तरह की कार्रवाई न होना बताया जा रहा है।
मांगों की लंबी फेहरिस्त, कार्रवाई नदारद
धरना प्रदर्शन कर रहे विभिन्न संगठनों की मांगों की सूची किसी सरकारी फाइल से कम लंबी नहीं है। इनमें प्रमुख मांगें शामिल हैं:
बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर पार्क के लिए जमीन और प्रतिमा की स्वीकृति।
गरीबों और भूमिहीनों को जमीन बांटने की पुरानी प्रतिज्ञाओं को पूरा करना।
सुप्रीम कोर्ट में बैराठ फॉर्म पर "राजा सलामत" के खिलाफ रिट याचिका दायर करने की मांग।
मान्यता विहीन गांवों को राजस्व गांव का दर्जा दिए जाने की याचना।
मिर्जापुर की तर्ज पर पत्थर खनन की अनुमति प्रदान करना।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि चकिया के कई गांव विकास की मुख्यधारा से कटे हुए हैं और उनकी समस्याओं को अनसुना किया जा रहा है।
प्रशासन पर 'मौन तपस्वी' बनने का आरोप
भाकपा (माले) के जिला सचिव कामरेड अनिल पासवान ने तहसील प्रशासन पर तीखा हमला बोला है। उनका कहना है कि प्रशासन लोकतांत्रिक आंदोलनों को महज एक "पार्किंग टिकट" समझ रहा है—देखकर अनदेखा कर देना और आगे बढ़ जाना। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा है, "अगर प्रशासन ने इस उपेक्षा को अपनी आदत बना लिया है, तो हम भूख हड़ताल की राह पर चलने को मजबूर होंगे। फिर भूख से पहले जवाब कौन देगा?" यह स्पष्ट चेतावनी है कि यदि मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आंदोलन और भी उग्र रूप ले सकता है।
धरना स्थल बना 'जनता दरबार'
गांधी पार्क का धरना स्थल अब एक तरह का 'जनता दरबार' बन गया है, जहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में आम जनता और कार्यकर्ता अपनी समस्याओं को लेकर एकजुट हो रहे हैं। गुरुवार को मंच पर शौकत अली, मंजू पासवान, सुनैना, काजल, अफसाना, बिहारी बियार, बुधई बियार जैसे दर्जनों लोगों ने अपने-अपने गांवों की आवाज बुलंद की। धरने की अध्यक्षता कृष्ण देव बियार ने की, जबकि भाकपा (माले) राज्य कमेटी सदस्य और चकिया प्रभारी कामरेड विजई राम ने पूरे कार्यक्रम का संचालन किया।
"अब भूख से ही बात बनेगी!"
प्रशासन की कथित उदासीनता के बाद अब जनता ने नया नारा गढ़ लिया है – "अब बात रोटी से होगी, चाहे भूख से ही क्यों न करनी पड़े!" प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जब लोकतंत्र की आवाज को "लो बैटरी मोड" में डाल दिया गया है, तब उनके पास भूख हड़ताल के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। प्रशासन को इस चेतावनी को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह कोई "टीवी सीरियल" या "नोटबंदी की लाइन" नहीं है। यह एक गंभीर आंदोलन है, और यदि भूख हड़ताल हुई, तो तहसील को नीतिगत जवाब देना ही होगा।
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