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विस उपचुनावः सदन में चौथे नंबर की पार्टी, सड़क पर मुख्य विपक्षी दल
विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का अता पता नहीं है, कांग्रेस हाशिये से निकल कर मुख्य धारा में कम से कम अपने विरोध प्रदर्शनों से आ चुकी है। कांग्रेस और बसपा को अगर एक सीट पर कामयाबी मिल जाती है, तो 2022 के चुनाव में दोनों के पास सरकार पर निशाना साधने और अपनी ताकत बताने का एक आधार मिल जाएगा।
सुशील कुमार
मेरठ। यूपी में होने वाले उपचुनाव को 2022 विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। भाजपा क्लीन स्वीप करने की जुगत में है तो विपक्षी दल उपचुनाव में जीत का परचम लहरा कर आगामी विधानसभा चुनाव के माहौल को अपने पक्ष में करने की कोशिशों जुटे हैं।
वेस्ट यूपी की बात की जाए तो यहां कृषि विधेयकों और हाथरस घटना के खिलाफ शुरु हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच सबसे आगे कांग्रेस दिख रही है। स्थिति यह है कि कांग्रेस चौथे नंबर की पार्टी विधानसभा में तो है मगर सड़क पर वह मुख्य विपक्षी दल बन गई है।
माया-अखिलेश कहां, बढ़त में कांग्रेस
मायावती की बसपा तो कहीं नजर ही नहीं आ रही है। अखिलेश यादव की सपा की मौजूदगी भी खाली खानापूर्ति है। कांग्रेस की इस बढ़त का श्रेय प्रियंका गांधी को दिया जा रहा है। हाथरस जाते समय अपने कार्यकर्ताओं को बचाने के लिए पुलिस की लाठियों के सामने जिस तरह प्रियंका गांधी आईं उसने लोगों को कांग्रेस कार्यकर्ताओ को काफी प्रभावित किया है।
हाथरस कांड में पीड़िता के लिए न्याय और क़ानून व्यवस्था में सुधार की मांग करते राजनीतिक दलों के बीच कांग्रेस का नाम सबसे आगे दिख रहा है। जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी इस मामले में उतनी सक्रिय नहीं रही हैं। इससे पहले भी प्रवासी मज़दूरों के लिए बसें ले जाने से लेकर सोनभद्र में दलित परिवार के 11 लोगों की हत्या के मामले में कांग्रेस बढ़ चढ़कर सामने आई थीं।
प्रियंका पर दारोमदार
अब देखना है कि क्या हाथरस प्रियंका के लिए १९७७ का बेलछी (बिहार) आंदोलन बन सकता है जब दलितों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा के बाद पूर्व प्रधानमंत्री जलभराव के बावजूद हाथी पर बैठकर बेलची गांव पहुंची थी। जिसे आज भी याद किया जाता है।
कांग्रेस के लिए ये एक शुरुआत हुई है और अब प्रियंका गांधी की क्षमता पर है कि वो इसे कितना आगे ले जा पाती हैं। जैसा कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता चौधरी यशपाल सिंह कहते हैं, जब से प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश की कमान दी गई है तब से वहां कांग्रेस की सक्रियता बहुत बढ़ गई है।
बकौल चौधरी यशपाल सिंह, मैं ये तो नही कह सकता कि यूपी में कांग्रेस का आधार इससे तुरंत मजबूत हो जाएगा लेकिन कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन ज़रूर मिलेगा। कांग्रेस नेता के अनुसार कांग्रेस को यूपी में तीन दशक से ज्यादा ऐसे ही किसी करिश्मे की तलाश थी।
भाजपा के लिए चुनौती
क्लीन स्वीप करने की जुगत में लगी भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ना तो कृषि विधेयकों के पक्ष में किसानों को संतुष्ट कर पा रहे हैं और ना ही हाथरस मामले में प्रदेश सरकार का बचाव कर पाने में सफल हो पा रहे हैं। हाथरस कांड के बाद तो भाजपा को उत्तर प्रदेश में दोहरा झटका लगा है।
अनुसूचित जाति के वोट बैंक में से अब तक वाल्मीकी मतदाता लगभग पूरी तरह भाजपा का माना जाता था,वहीं २०१४ के लोकसभा चुनाव के बाद से जाट वोट बैंक भी भाजपा की तरफ आता नजर आ रहा था।
हाथरस कांड के बाद जहां वाल्मीकी समाज गुस्से में है,वहीं पिछले दिनो रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी और उनके समर्थकों पर पुलिस लाठी चार्ज से वेस्ट यूपी के जाटों में भी सरकार को लेकर गुस्सा देखा जा रहा है।
परेशानी बढ़ा रहे भाजपा नेता
यही नही भाजपा के इस कठिन समय में उसके अपने नेता भी उसकी परेशानियां बढ़ा रहे हैं। जो कि यूपी विधानसभा में होने वाले उपचुनाव के लिए कहीं अपने-अपने बेटे-बेटी के लिए टिकट मांग रहे हैं तो कहीं पत्नी के लिए टिकट मांगा जा रहा है।
बुलन्दशहर में तो टिकट को लेकर परिवार में ही खींचतान चल रही है। यहां वीरेन्द्र सिंह सिरोही के दौ बेटों दिग्विजय और विनय ने पार्टी टिकट के लिए अपना-अपना दावा ठोक दिया है।
आगरा से भाजपा सांसद डॉ. एसपी सिंह बघेल फिरोजाबाद की टूंडला सीट से अपनी बेटी सलोनी के लिए टिकट की जुगाड़ में लगे हैं। वहीं, अमरोहा की नौगांव सादात सीट पर दिवंगत कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान की पत्नी संगीता चौहान प्रमुख दावेदार बनकर उभरी हैं।
विरासत की जंग
कांग्रेस पर विरासत की राजनीति का आरोप लगाकर हमलावार रहने वाली भारतीय जनता पार्टी विरासत की जंग में उलझी हुई है। इस सवाल पर भाजपा के प्रदेश मंत्री डॉ. चन्द्रमोहन कहते हैं उनकी पार्टी में ना तो विरासत को लेकर और ना ही टिकटों को लेकर कहीं कोई झगड़े जैसी कोई बात है।
उनका कहना है कि मुख्यमंत्री योगी के नेतृत्व में पूरा प्रदेश भाजपा के साथ है। विभाजनकारी लोग बेनकाब हो चुके हैं। पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव के नेतृत्व में सारे कार्यकर्ता एक जुट होकर काम पर लगे हैं। विपक्ष सिर्फ आरोप लगा रहा है। जनता पूर्व की तरह इस बार भी भाजपा को और मजबूती से प्रदेश में अपना प्यार देगी।
बसपा की मुहिम
जहां तक बसपा की बात है तो बसपा कांग्रेस और सपा की तरह कृषि व हाथरस कांड पर ज्यादा फोकस नही कर ब्राह्मणों के बीच पैठ बढ़ाने की मुहिम में जुटी है। इसके लिए पिछले दो महीने से जिलावार बैठकों का सिलसिला जारी है।
अमूमन उप चुनाव न लड़ने वाली बसपा ने आठों सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। इनमें से एक पर भी पहले इनका दावा मजबूत नहीं था, लेकिन अब स्थितियां बदली हैं। इसी कारण बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश की सभी आठ सीटों पर उपचुनाव लड़कर अपनी सियासी ताकत को आजमाने की तैयारी में हैं।
मायावती ने पिछले दिनों ब्राह्मण समाज को पार्टी के मूल संगठन में जोड़ने की पहल की थी और कई वरिष्ठ ब्राह्मण नेताओं को मंडल स्तरीय संगठन में शामिल किया था। राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र इसके बाद से जिलावार ब्राह्मण समाज के लोगों को लखनऊ स्थित अपने आवास पर बुलाकर बैठकें कर रहे हैं।
बसपा प्रमुख मायावती पिछले कुछ सालों से वो भाजपा सरकार का विरोध करते हुए भी सिर्फ़ सुझाव देती हैं, एक विपक्ष की तरह हमला नहीं बोलतीं हैं। इसको लेकर भी मायावती चर्चा में बनी हैं।
सपा की तैयारी
समाजवादी पार्टी पार्टी को तो उसने बुलंदशहर सीट राष्ट्रीय लोकदल के लिए छोड़ दी है। शेष सभी सीटों पर लड़ने की तैयारी में सपा जुटी है। गौरतलब है कि नौगांवा सादात टूंडला घाटमपुर मल्हनी देवरिया बुलंदशहर और बांगरमऊ विधानसभा सीटों के लिए आगामी तीन नवंबर को उपचुनाव होगा।
अमरोहा की नौगांवा सादात सीट कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान और घाटमपुर सीट मंत्री कमल रानी वरुण के निधन के कारण रिक्त हुई है। इसके अलावा बुलंदशहर और देवरिया सीट भी भाजपा विधायकों क्रमशः वीरेंद्र सिंह सिरोही और जन्मेजय सिंह के निधन के कारण खाली हुई है।
सात में से छह सीटें भाजपा ने जीती थीं। मल्हनी सीट सपा विधायक पारसनाथ यादव के निधन की वजह से खाली हुई है। फिरोजाबाद की टूंडला सीट भाजपा विधायक एसपी सिंह बघेल के सांसद चुने जाने के बाद उनके इस्तीफे के कारण रिक्त हुई है।
बांगरमऊ सीट भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उम्र कैद की सजा होने की वजह से खाली हुई है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इन सात में से छह सीटें भाजपा ने जीती थीं।
हाथरस कांड का नुकसान किसे
क्षेत्रीय राजनीतिक विश्लेषक सुनील शर्मा कहते हैं,हाथरस कांड का सबसे ज्यादा नुक़सान बसपा और भाजपा को हो सकता है। मायावती का दलित का मुद्दा ना उठाना उनकी छवि को नुक़सान पहुंचाता है।
वहीं, वाल्मिकी भाजपा का वोट बैंक रहा है तो इस मामले से भाजपा के लिए भी समस्याएं हो सकती हैं। सपा को पूरी तरह से दलितों का वोट नहीं मिलता है। इसलिए इसका बहुत ज्यादा नुक़सान या फायदा नहीं होगा लेकिन अगर वो इन मामलों में कांग्रेस से पीछे रह गई तो वो कांग्रेस को ज़मीन तैयार करने का मौका ज़रूर दे देगी।
बहरहाल, वर्तमान परिदृष्य देखें तो भाजपा और सपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वहीं, कांग्रेस और बसपा के पास खोने को कुछ नहीं है, लेकिन उपचुनाव से उम्मीदें जरूर हैं। कांग्रेस और बसपा को अगर एक सीट पर कामयाबी मिल जाती है, तो 2022 के चुनाव में दोनों के पास सरकार पर निशाना साधने और अपनी ताकत बताने का एक आधार मिल जाएगा।