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लॉकडाउन में चल रही उम्मीद की चाक
लॉकडाउन में सबकुछ ठप है। कहीं सोशल डिस्टेंसिंग की मजबूरी है तो कहीं बाजार की। इसके उलट गोरखपुर के विश्व प्रसिद्ध औरंगाबाद गांव में टेराकोटा हस्तशिल्पियों की उम्मीद की चाक बदस्तूर चल रही है। वे व्हाट्सएप पर डिजाइन दिखाकार आर्डर बुक कर रहे हैं।
ब्यूरो
गोरखपुर लॉकडाउन में सबकुछ ठप है। कहीं सोशल डिस्टेंसिंग की मजबूरी है तो कहीं बाजार की। इसके उलट गोरखपुर के विश्व प्रसिद्ध औरंगाबाद गांव में टेराकोटा हस्तशिल्पियों की उम्मीद की चाक बदस्तूर चल रही है। वे व्हाट्सएप पर डिजाइन दिखाकार आर्डर बुक कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि लॉकडाउन खुलेगा तो हालात सामान्य होंगे। लॉकडाउन में औरंगाबाद के हस्तशिल्पी 20 लाख से अधिक कीमत के उत्पाद तैयार कर चुके हैं।
गोरखपुर जिला मुख्यालय से दस किमी पर स्थित टेराकोटा शिल्प का विश्व प्रसिद्ध गांव औरंगाबाद है। एक जिला, एक उत्पाद में चयनित हस्तशिल्प की चमक बरकरार रहे इसके लिए हस्तशिल्पी लॉकडाउन में भी पूरी शिद्दत से काम कर रहे हैं। शिल्पकारों की उंगलियां एक से बढ़कर एक कलाकृतियां उकेर रही हैं।
नए ऑर्डर की उम्मीद
विश्व प्रसिद्ध औरंगाबाद गांव में टेरोकोटा भवन के 12 कमरों में शिल्पकार नये आर्डर की उम्मीद में सुबह से लेकर शाम कलाकृतियां गढ़ रहे हैं। ग्राम विकास विभाग द्वारा 2002 में निर्मित टेराकोटा भवन में शिल्पकारों की गतिविधियां इसके ‘एक जिला, एक उत्पाद’ में शामिल होने के बाद रफ्तार पकड़ चुकी है।
हस्तशिल्प कलाकार हीरा प्रजापति कहते हैं कि ‘टेराकोटा भवन में 12 कमरें, अगल-अलग शिल्पकारों को आवंटित हैं। सभी एक साथ यहां काम कर रहे हैं। पहले भी दूर-दूर बैठकर काम करते थे, कोरोना के कहर में इसका कड़ाई से पालन कर रहे हैं।’ शिल्पकार गुलाब प्रजापति कहते हैं कि ‘टेराकोटा की डिमांड हमेशा रहती है। ऐसे में सभी इस उम्मीद में काम कर रहे हैं कि लॉकडाउन में जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई स्थितियां सामान्य होने के बाद कर लेंगे।’ शिल्पकार कहते हैं कि टेराकोटा को लेकर मिट्टी तीन किमी दूर बुढाडीह गांव के ताल से आती है। लॉकडाउन में थोड़ी दिक्कत हो रही है, लेकिन आपसी सहयोग से मिट्टी की उपलब्धता कर ले रहे हैं।
झूमर, हाथी और घोड़ा
औरंगाबाद, गुलरिहा, बुढाडीह, भरवलिया समेत आधा दर्जन गांव के करीब 200 परिवारों की जिंदगी की गाड़ी टेराकोटा शिल्प से ही चलती है। शिल्पकार जयप्रकाश प्रजापति कहते हैं कि ‘बाहरी गांव से भी कलाकार सीखने आते थे, अब वह नहीं आ रहे हैं। टेराकोटा भवन में रोज 15 से 20 हजार का उत्पाद तैयार होता था। वह घटकर आधा हो गया है। सकून यह है कि चाक थमा नहीं है।’ पारम्परिक शिल्प झूमर, हाथी, घोड़ा, लालटेन और डिजाइनर दीया की डिमांड हमेशा रहती है। लॉक डाउन के बाद तैयार सामान बिक जाएगा।
व्हाट्सएप पर बुकिंग
तमाम शिल्पकार हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों के व्यापारियों के आर्डर पर कलाकृतियां तैयार करते हैं। वर्तमान में ऐसे ही कारोबारियों का आर्डर फंसा हुआ है। शिल्पकार मोहन लाल प्रजापति बताते हैं कि ‘मेट्रो शहरों के करीब 10 लाख के आर्डर फंसे हुए हैं। जो शिल्प तैयार हैं, उनकी भी फोन पर बुकिंग हो रही है। गुलाब बताते हैं कि अब व्हाट्सएप पर उत्पाद दिखा देते हैं। वीडियो कॉलिंग से भी उत्पाद दिखाते हैं।