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36 साल पुराने मामले में हाईकोर्ट ने कहा- कर्मचारी की लापरवाही या अकुशलता नहीं है दुराचरण
लखनऊ: 36 साल पुराने एक मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा, कि कर्मचारी की लापरवाही, उसकी अकुशलता या कार्य दक्षता में कमी दुराचरण या कदाचार की श्रेणी में नहीं आती। लापरवाही के लिए कर्मचारी को कदाचार का दंड नहीं दिया जा सकता।
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यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस आरएन मिश्रा (द्वितीय) की बेंच ने राज्य सरकार की उस याचिका को खारिज करते हुए दिया, जिसमें सर्विस ट्रिब्युनल के वर्ष 1995 के एक आदेश को चुनौती दी गई थी।
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क्या है मामला?
चुन्नू खान नाम के एक सरकारी ड्राइवर की लापरवाही से 23 जून 1981 को सरकारी जीप चोरी हो गई। जिस पर उसके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उसे बर्खास्त कर दिया गया। उसने बर्खास्तगी आदेश को ट्रिब्यूनल में चुनौती दी। ट्रिब्यूनल ने ड्राइवर को परिणामी लाभ के साथ बहाल करने का आदेश दिया। राज्य सरकार की ओर से ट्रिब्यूनल के इसी आदेश को 1995 में चुनौती दी गई थी।
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कोर्ट ने ये कहा
याचिका दाखिल होने के 22 साल बाद कोर्ट ने अपने निर्णय में कदाचार या दुराचरण की परिभाषा का उल्लेख करते हुए कहा, कि 'कर्मचारी की लापरवाही या अकुशलता अथवा कार्य दक्षता में कमी तो दिखती है लेकिन यह दुराचरण या कदाचार की परिभाषा में नहीं आता। यह स्पष्ट है कि वाहन चोरी हुआ था। चोरी में न तो ड्राइवर की कोई भूमिका थी और न ही वह चोरी के समय वहां मौजूद था। लिहाजा उसे कदाचार के लिए दंडित नहीं किया जा सकता।'
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कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ट्रिब्यूनल का निर्णय बिल्कुल सही है। हालांकि हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल से हटकर भी अपने तर्क दिए।