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इस मेडिकल काॅलेज में मिलेगी ये खास सुविधा, कोरोना के ऐसे मरीजों की बचेगी जान

जिलाधिकारी ने बताया कि इस मशीन को इस तरह डिजाइन किया गया है कि मरीज को उच्च प्रवाह पर आक्सीजन निरंतर उपलब्ध रहे। इसके माध्यम से एक मरीज को 7 दिन तक उच्च प्रवाह नाक आक्सीजन थेरेपी दे सकते है।

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Published on: 25 July 2020 10:47 AM IST
इस मेडिकल काॅलेज में मिलेगी ये खास सुविधा, कोरोना के ऐसे मरीजों की बचेगी जान
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झाँसी। जिलाधिकारी आन्द्रा वामसी ने जानकारी देते हुये कहा कि मेडिकल कालेज में उच्च प्रवाह नाक आक्सीजन थेरेपी (एचएफएनओ) की सुविधा उपलब्ध हो गयी है। कोविड-19 के दौरान बुन्देलखण्ड के लिये उपलब्धि है। इस थेरेपी के माध्यम से ऐसे गम्भीर मरीज जो स्वयं आक्सीजन नही ले पा रहे है और अधिक सांस की जरुरत है, उन्हे एचएफएनओ थेरेपी से आक्सीजन दी जा सकेगी, जिससे उन्हे बचाया जा सकेगा।

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डोर-टू-डोर सर्वे में लगभग 18000 गम्भीर रोगी

जिलाधिकारी ने बताया कि इस मशीन को इस तरह डिजाइन किया गया है कि मरीज को उच्च प्रवाह पर आक्सीजन निरंतर उपलब्ध रहे। इसके माध्यम से एक मरीज को 7 दिन तक उच्च प्रवाह नाक आक्सीजन थेरेपी दे सकते है। उन्होने जनपद में एचएफएनओ के महत्व के बारे में बताया कि डोर-टू-डोर सर्वे में लगभग 18000 गम्भीर रोगी चिन्हित किये गये जो ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, कैंसर, हार्ट सम्बन्धित व अन्य लाइलाज बीमारी से ग्रस्त है और उन्हे सांस की भी बीमारी है उन्हे इसके माध्यम से बचाया जा सकेगा।

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आक्सीजन थेरेपी इलाज का एक ही तरीका

जिलाधिकारी आन्द्रा वामसी ने जनपद वासियों को उच्च प्रवाह नाक आक्सीजन थेरेपी के बारे में बताते हुये कहा कि आक्सीजन थेरेपी इलाज का एक तरीका है। जिसमें मरीजों को जब सांस लेने में मुश्किल होने लगती है तो अतिरिक्त आक्सीजन दिया जाता है। जब कोई बीमार मरीज खुद से सांस के जरिये सही तरीके से आक्सीजन नही ले पाता है। यह थेरेपी दी जाती है। ऐसा आमतौर पर उन लोगों के साथ होता है जिन्हे पहले से फेफड़ों से जुड़ी कोई और समस्या जैसे हार्ट फेलियर, स्लीप ऐप्रिया आदि हो।

मरीज़ों को सांस लेने में मुश्किल

उन्होने कहा कि कोविड-19 के मरीज जिनमें बीमारी के लक्षण गम्भीर हो जाते है जिन्हे सांस लेने में मुश्किल होने लगती है। हाइपोक्सिया यानी शरीर में आक्सीजन की कमी होने लगती है, ऐसे मरीजों को भी आक्सीजन थेरेपी दी जायेगी। इस थेरेपी की मदद से मरीज के शरीर में ब्लड आक्सीजन का लेबल बढने लगता है और मरीज को बेहतर महसूस होता है।

रिपोर्टर- बी के कुशवाहा, झांसी

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