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अस्पताल है या लूट का ‘अड्डा’! कमीशन के खेल में फंसे गरीब

shalini
Published on: 14 Jun 2018 7:57 AM GMT
अस्पताल है या लूट का ‘अड्डा’! कमीशन के खेल में फंसे गरीब
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वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को फिटनेस मंत्र देते हैं। महंगी दवाओं से लोगों को छुटकारा दिलाना सरकार के एजेंडे में है। आयुष्मान योजना के तहत स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी क्रांति तैयारी चल रही है। लेकिन हैरानी इस बात की है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था बेपटरी हो चुकी है। ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को छोड़िए, दीनदयाल जिला अस्पताल भ्रष्टाचार और लूट-खसोट का अड्डा बन चुका है।

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अस्पताल में मरीजों की जांच के लिए लगी लाखों रुपए की मशीनें धूल फांक रही हैं। अस्पताल प्रबंधन के नकारेपन के चलते मरीजों को बाहर जांच करना पड़ता है। यही नहीं अपना भारत की पड़ताल के दौरान ये बात सामने आई कि डॉक्टरों और दवा माफियाओं की गठजोड़ का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। मोटे कमिशन के चक्कर में डॉक्टर दवा के लिए मरीजों को बाहर भेजते हैं। हैरानी इस बात की है कि लखनऊ से लेकर दिल्ली तक अफसरों की नजर इस अस्पताल पर नजर लगी है, बावजूद इसके अस्पताल में खुलेआम गरीबों को लूटा जा रहा है।

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धूल फांक रही हैं करोड़ों की मशीन

दीनदयाल अस्पताल में मरीजों को बेहतर सुविधा देने के लिए सरकार ऐड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। अस्पताल को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस करने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। इसी के तहत चार महीने पहले अस्पताल में लगभग 50 लाख रुपए की लागत से हार्मोनल एनालाइजर मशीन मंगाई गई। इस मशीन के जरिए मशीन के माध्यम से सूक्ष्म जीवाणुओं से संबंधित टेस्ट कर बीमारी का पता लगाया जा सकता है। लेकिन बीमारी चार महीने से अधिक का वक्त गुजर गया, जांचघर के एक कोने में मशीन धूल फांक रही है। अस्पताल प्रशासन अब तक इस मशीन को जगह तक नहीं दे पाया है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि मशीन के रखरखाव के लिए उचित जगह की जरुरत होनी चाहिए। हमारी कोशिश है कि जल्द ही इसे इंस्टॉल करा लिया जाएगा। ये हाल सिर्फ हार्मोनल एनालाइजर मशीन का नहीं है बल्कि एमआरआई मशीन भी कुछ इसी तरह धूल फांक रही है। पिछले कई महीने से एमआरआई मशीन नहीं चल रही है। लिहाजा मरीजों को बाहर का रुख करना पड़ता है।

कमीशन के खेल में फंसे गरीब

अस्पताल में मशीन लगी होने के बाद भी अगर मरीजों को बाहर जाना पड़ता है तो इसके पीछे की वजह भी है। दरअसल अस्पताल में एक बड़ा रैकेट काम करता है। इस रैकेट में डॉयग्नोसिस सेंटर के मालिक से लेकर अस्पताल के बड़े अधिकारी तक शामिल है। अस्पताल में कमिशनखोरी का खेल लंबे समय से चल रहा है। कमीशनखोरी की कीमत बेचारे गरीबों को चुकानी पड़ती है। उम्मीदों के साथ आने वाले मरीजों को अस्पताल के डॉक्टर कमाई का मोहरा बना लेते हैं। सूत्रों के मुताबिक अस्पताल प्रशासन महंगी जांच मशीनों को जानबूझकर ऑपरेट नहीं करता है। अस्पताल में संसाधन होने के बावजूद मरीजों को महंगे डॉयग्नोसिस सेंटर पर जांच के लिए भेजा जाता है। हर जांच के बदले अस्पताल के डॉक्टरों का कमीशन फिक्स होता है। मसलन अगर डॉयग्नोसिस सेंटर में एमआरआई कराने की फीस चार हजार रुपए है तो इसकी आधी रकम संबंधित डॉक्टर तक पहुंचती है। इसी तरह सीटी स्कैन कराने की फीस दो हजार रुपए है तो आधी रकम डॉक्टर तक पहुंच जाती है। ऐसा नहीं है कि अस्पताल प्रशासन या फिर सीएमओ कमीशनखोरी के इस खेल से वाकिफ नहीं है। बावजूद इसके धड़ल्ले से गरीब मरीजों के साथ लूट होती रहती है।

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अस्पताल में दवा का टोटा, परेशान मरीज

सिर्फ जांच मशीनों का ही नहीं दवाओं के खेल में भी दीनदयाल अस्पताल अव्वल है। सरकार की ओर से अस्पताल में मरीजों को मुफ्त दवा उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। लेकिन भ्रष्टाचार के दीमक ने दीनदयाल अस्पताल को इसकदर चट कर दिया है कि यहां पर मरीजों को बाहर से दवा लेने के लिए मजबूर किया जाता है। अपना भारत की पड़ताल में एक दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे मरीज मिले, जिन्होंने इस बात की शिकायत की, अस्पताल के डॉक्टर बाहर से दवा खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। मरीजों के मुताबिक ओपीडी के दौरान सभी डॉक्टरों के चैम्बर में मेडिकल स्टोर के कर्मचारी मौजूद रहते हैं। डॉक्टर की ओर से लिखी गई कुछ दवाएं ही अस्पताल में मिलती हैं, जबकि महंगी और अधिकांश दवाएं उन्हें बाहर से लेने के लिए बोला जाता है। डॉक्टर के चैंबर में मौजूद मेडिकल स्टोर कर्मी मरीज को अपने साथ ले जाता है और दवा दिलवाता है। अपना भारत की टीम की पड़ताल में कई मरीजों ने बाहर की दवा दुकानों के पर्चे दिखाए। बताया जा रहा है कि जांच मशीनों की तरह दवा में भी कमीशन का खेल होता है। मेडिकल स्टोर के मालिक अस्पताल के डॉक्टरों तक मोटी रकम पहुंचाते हैं।

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क्या कहना है अस्पताल प्रशासन का ?

देखिए जहां तक हार्मोनल एनालाइजर मशीन का सवाल है, ये मशीन हमे सीएसआर के तहत मिली है। अस्पताल प्रशासन ने इसे नहीं खरीदा है। फिलहाल अस्पताल की लैब्रोट्री में रखने की व्यवस्था की जा रही है। जल्द ही उचित स्थान बनाकर इसे इंस्टाल कर लिया जाएगा। हमारी कोशिश है कि हम मरीजों को बेहतर से बेहतर सुविधाएं दें। लेकिन कभी-कभी संसाधनों की कमी के कारण परेशानी का सामना करना पड़ता है। अस्पताल में दवाओं का टोटा नहीं है। अगर किसी डॉक्टर के खिलाफ इस तरह की शिकायत मिलती है तो उसके खिलाफ हम जरुर कार्रवाई करेंगे।

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डॉक्टर आरपी कुशवाहा, सीएमएस, दीनदयाल चिकित्सालय

डॉक्टरों ने अस्पताल को लूट का अड्डा बना दिया है। किसी भी विभाग में चले जाइए, रिश्वत और कमीशन का खेल आपको दिख जाएगा। मशीनें और दवा रहने के बावजूद हम गरीब मरीजों को बाहर भेजा जाता है। विरोध करने पर डॉक्टर कहते हैं जो करना है कर लो। आप बताईए हम गरीब अब कहां जाएं।

सोनू, तीमरदार

सरकार कहती है कि अस्पतालों में मुफ्त में इलाज होगा लेकिन यहां तक तस्वीर ही दूसरी है। इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों की तरह मरीजों से पैसा ऐंठा जा रहा है बस तरीका अलग है। वहां खुलेआम होता है यहां सब कुछ पर्दे के पीछे से चल रहा है।

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आंकड़ों में अस्पताल

-वाराणसी का तीसरा सबसे बड़ा अस्पताल है

-प्रतिदिन करीब 1500 मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं

-इमरजेंसी सहित 150 बेड का है अस्पताल

-फिलहाल डॉक्टर के 30 हैं लेकिन मौजूदा स्थिति 20

-वाराणसी के अलावा गाजीपुर, चंदौली, जौनपुर और आजमगढ़ के हजारों मरीज पहुंचते हैं

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