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Hapur News: प्रधानमंत्री की योजना को सकार कर रहीं हापुड़ की बेटी, गरीब बच्चों की दे रहीं शिक्षा

Hapur News: कंचन ने कुछ इस शायरी के अंदाज में बताया- किसी शायर ने खूब लिखा है, कि कांटे भी हैं, चुभन भी, रास्ता भी पथरीला है, मगर क्या करें गालिब इन पर चलने की आदत सी जो हो गई है।

Avnish Pal
Report Avnish Pal
Published on: 26 Dec 2023 5:18 PM GMT
Hapur News
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Hapur News (Pic:Newstrack)

Hapur News: अपने ​लिए जिए तो क्या जिए सारी खुशी जमाने के लिए इसी फिल्मी गाने की तरह है कंचन की कहानी। कंचन पिछले कई वर्षो से गरीब बच्चों को फ्री शिक्षा दे रही है। देश के प्रधानमंत्री के महत्वपूर्ण योजना "पढ़ेगा हिन्दुस्तान तो बढ़ेगा हिन्दुस्तान" के सपने को साकार करने में दिन रात लगी है। हापुड़ के मोहल्ला नवीन मंडी की रहने वाली कंचन सिंह शिक्षा ग्रहण करते-करते गरीब बच्चों को बैलून व चॉकलेट देकर उनकी खुशी में शरीक होना शुरू कर दिया। फिर क्या था उनके जीवन का पथरीला रास्ता शुरू हो गया। जिसमे काँटे भी थे,चुभन भी थी परंतु वह यही नही रुकी।

एक दिन पढ़ते- पढ़ते उनके मन में ख्याल आया क्यों ना मैं गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दू। इसकी शुरुआत उन्होंने रेलवे पार्क के पास बनी बस्ती में जाकर की। जहाँ उन्हें दो बच्चे ऐसे मिले जिन्होंने उनसे पढ़ने की इच्छा जाहिर की। बच्चों की जिज्ञासा देखते हुए उन्होंने दोनों बच्चों को रेलवे पार्क में पढ़ाना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। आज करीब वह 25 से 30 बच्चों शिक्षा दे रही है। जिन्हें कंचन सिंह की प्रेरणा से अब उसके साथ खुशबू व हिमांशी भी बच्चों को पढ़ाती है। अब उनके पास बच्चे तो आने लगे परंतु उनके पास किताब, कॉपी व अन्य सामान की व्यवस्था नहीं थी।

तभी पार्क में घूम रहे एक बुजुर्ग व्यक्ति ने यह सब देखा और उन्होंने पढ़ने वाले बच्चों को किताब कॉपी व अन्य सामान की व्यवस्था कराई। कंचन का हौसला और बढ़ गया। कंचन दिन रात इन बच्चों के बारे में सोचने लगी बस फिर क्या था। मानों कंचन का सपना साकार होने लगा था। मगर कंचन को क्या पता था की समाज के दुश्मनों की नजर उसके हौसलों को लग जायेगी। तरह-तरह के सवालों ने कंचन को डिप्रेशन में पहुंचा दिया। जिससे कंचन सपना टुटने लगा। मगर बच्चों की दुओं अपने के सहयोग ने कंचन को फिर एक बार संकल्प के साथ अपने सपने को साकार करने में लगा दिया। और जिसको लेकर बच्चों में खुशी महौल है।

कंचन ने कुछ इस शायरी के अंदाज में बताया- किसी शायर ने खूब लिखा है, कि कांटे भी हैं, चुभन भी, रास्ता भी पथरीला है, मगर क्या करें गालिब इन पर चलने की आदत सी जो हो गई है। कंचन ने अपनी पुरी कहानी कह डाली कि समाज, परिवार व गली मोहल्ले में रहने वाले लोग उन्हें तरह-तरह के ताने देने लगे। जिससे वह डिप्रेशन में पहुंच गई। मगर उनके इरादे कम नहीं हुए। उन्होंने डिप्रेशन को चुनौती देते हुए फिर एक बार इस डगर पर लौटते हुए बच्चों को पढ़ाना प्रारंभ कर दिया। शिक्षिका कंचन ने बताया कि मेरा सपना है मैं बड़े होकर एक वृद्ध आश्रम खोलू जहां मैं उन बूढ़े माता-पिता की सेवा कर सकू जो अपने पुत्र के रहते हुए भी सेवा से वंचित रह जाते हैं।

कंचन सिंह ने अभी तक बीए० बीएड तक शिक्षा हासिल की है। उनके पिता निरंजन सिंह फौज में रहकर देश की सेवा कर रहे हैं। जबकि उनकी माता सुमन देवी गृहणी है उनके भाई विशाल सिंह एक प्राइवेट हॉस्पिटल में सर्विस करते हैं। उनकी बहन संध्या सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में लखनऊ के महिला थाने में बतौर कांस्टेबल के पद पर तैनात है। कंचन सिंह से आगे के भविष्य के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मैं पुलिस में सब इंस्पेक्टर बनना चाहती हूं ताकि समाज व ऐसे गरीब बच्चों की मदद कर सकूं जिन्हें पढ़ाने वाला कोई नही है। यही मेरा सपना है। इन्ही सपनो के साथ शिक्षिका कंचन देश के प्रधानमंत्री की उस अपील को आगे बढ़ाने का कार्य कर रही है जिसमे प्रधानमंत्री कहते है। इस समाज मे सभी धर्म व वर्ग के लोग शिक्षित बने तभी हमारा देश उन्नति करेगा।

Durgesh Sharma

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