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HC सरकारी वकीलोें की सूची: चार हफ्ते के बाद भी आपत्ति न दाखिल कर पाने पर कोर्ट सख्त
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ खंडपीठ ने योगी सरकार को 23 अक्टूबर 2017 को जारी 234 सरकारी वकीलों की सूची को चुनौती देने संबधी अर्जी पर जवाब देने के लिए अड़ताली
लखनऊ :इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ खंडपीठ ने योगी सरकार को 23 अक्टूबर 2017 को जारी 234 सरकारी वकीलों की सूची को चुनौती देने संबधी अर्जी पर जवाब देने के लिए अड़तालीस घंटे का और समय दिया है। कोर्ट ने इससे पहले भी सरकार को समय दिया था परंतु करीब चार हफ्ते बीत जाने के बाद भी सरकार की ओर से आपत्ति नही दाखिल किया गयाए जिस पर कोर्ट ने गंभीर रूख अपनाया ।
यह आदेश जस्टिस विक्रम नाथ एवं जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच ने स्थानीय वकील महेंद्र सिंह पवार की ओर से दायर विचाराधीन जनहित याचिका पर पारित किया। याचिका में याची की ओर से पिछली सुनवाई पर एक संशोधन अर्जी पेश कर सरकार द्वारा गत 23 अक्टूबर को जारी सरकारी वकीलों की सूची को चुनौती देने संबधी प्रार्थना जोड़ने की मांग की गई थी।
अर्जी में कुछ नये तथ्यों को भी लाया गया था। 20 नंवबर को इस अर्जी पर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश पांडे के समय मांगने पर कोर्ट ने सरकार को आपत्ति दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया था। परंतु मंगलवार तक भी सरकार उक्त अर्जी पर अपनी आपत्ति दाखिल नहीं कर सकी और उसके अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता एच पी श्रीवास्तव ने कोर्ट से आपत्ति दाखिल करने के लिए और समय की मांग की। श्रीवास्तव की नियुक्ति भी उसी सूची से हुई है जिसको चुनौती देने का मामला है।
दरअसल येागी सरकार द्वारा जारी सरकारी वकीलों की सूची पर प्रारम्भ से ही विवाद चल रहा है। कोर्ट ने सरकार द्वारा 7 जुलाई 2017 को जारी 201 सरकारी वकीलों की सूची को कानून की नजर में न टिकने वाली करार दे दिया था जिसके बाद महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की अध्यक्षता में गठित चार सदस्यीय उच्च स्तरीय कमेटी की संस्तुति से विधि मंत्री बृजेश पाठक के अनुमोदन के बाद 23 अक्टूबर को पुनरीक्षित सूची जारी की गयी । इस पर भी सवाल उठ रहें हैं ।
यहां तक आरेाप लगे हैं कि बिना अर्हता वाले वकीलों को भी महत्वपूर्ण पद रेवड़ियों की तरह बांट दिये गये जिसके बाद कोर्ट के दखल के चलते गत दिनों दो सरकारी वकीलों को इसी आरोप में हटाना भी पड़ा। 23 अक्टूबर को जारी सूची को भी चुनौती देने की मांग वाली एक अर्जी याची की ओर से दाखिल की गयी थी। जिस पर सरकार को जवाब देने के लिए केार्ट ने 48 घंटे का और समय दिया है।
हांलाकि केार्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए केस को सुनवाई के 19 दिसम्बर को नियत करने का आदेश दिया है और साथ ही यह भी आदेश दिया है कि केस को काज लिस्ट में प्रथम पांच मुकदमों के बीच लगाया जाये ताकि केस का नंबर सुनवाई के लिए आ सके।