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होली के मूड में आ चुका है सारा जहां, उत्साह से भरा है समां
होली है... भई होली है... बुरा न मानो होली है। पूरा देश इस समय तक होली मनाने के मूड में आ चुका है। जिन लोगों के ऑफिस आज खुले हैं। वहां से दूसरे शहर में अपने परिवार के पास जाने के लिए लोग निकल चुके हैं या निकल रहे हैं। जो स्थानीय लोग हैं वह अपने बच्चों के लिए रंगों और कपड़ों की तैयारी में लगे हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: होली है... भई होली है... बुरा न मानो होली है। पूरा देश इस समय तक होली मनाने के मूड में आ चुका है। जिन लोगों के ऑफिस आज खुले हैं। वहां से दूसरे शहर में अपने परिवार के पास जाने के लिए लोग निकल चुके हैं या निकल रहे हैं। जो स्थानीय लोग हैं वह अपने बच्चों के लिए रंगों और कपड़ों की तैयारी में लगे हैं।
महिलाएं जो आलू, साबूदाना, चावल के पापड़ सुखाकर स्टोर कर चुकी हैं, वह अब बेसन के सेवन दालमोठ नमकीन खुरमे और भांति-भांति की गुझिया तैयार करने में लगी हैं। मुझे याद है कि अम्मा होली पर जब गुझिया बनाती थीं तो उसमें रवे की गुझियां, गुड़ की, सोंठ की, अलसी की, मेवे की, खजूर की, पेठे की गुझिया आदि शामिल रहती थीं। दाल पीसकर अलग पकवान बनते थे। पूड़ी के साथ कद्दू की सब्जी जरूर बनती थी। यानी होली पर अगर हमें पकवान खिलाने की तैयारी हो रही होती थी तो साथ में पेट सही रखने के लिए देशी जड़ी बूटियों को भी पकवान का मुलम्मा चढ़ाकर इतने प्यार से तैयार किया जाता था कि कोई खाने से इनकार न कर पाए।
खैर हम बात कर रहे हैं आज की। कुल मिलाकर हर घर से खुशबू की महक उठ रही है। महिलाएं होली मिलने आने वाले मेहमानों के लिए तैयारियों में जुटी हैं। यह ऐसा त्योहार है जो कि होली के आठ दिन बाद तक चलता है। सभी की कोशिश रहती है कि कम से कम आठ दिन तक गुझिया घर में जरूर रहें। इसके लिए बच्चों पर अंकुश लगाना पड़े तो भी ठीक है। क्योंकि वरना मेहमान के सामने परोसने को गुझिया बचेंगी ही नहीं। बच्चे अपनी पुरानी पिचकारियों को धो पोछकर चलाकर कल के युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो रहे हैं। हर घर में चिल्लपुकार मची है। मम्मी में मेरे होली वाले कपड़े कहां हैं, मै कल क्या पहनूंगा, मेरी पिचकारी चल नहीं रही है। मेरे रंग नहीं मिल रहे हैं। पीने पिलाने के शौकीनों ने अपना स्टाक लेकर रख लिया है। होलिका का पूजन आज दिन भर चलता रहा। जो अभी तक पूजन नहीं कर पाया है वह शाम चार बजकर 50 मिनट से लेकर छह बजकर 15 मिनट के बीच में पूजा कर लेना चाहता है।
अच्छी बात यह है कि इस बार भद्रा सुबह 8 बजकर 58 मिनट से लेकर शाम 7.40 बजे तक है। इसके बाद रात 7.40 बजे से लेकर रात 8.49 बजे तक होलिका दहन का मुहूर्त है। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक होता है। इस दौरान प्रायः सभी शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इसमें भी दो नियम ध्यान में रखे जाते हैं पहला, उस दिन भद्रा न हो। दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए यानी उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए। इस बार 1 मार्च को शाम 7.39 तक भद्रा रहेगी। इसके बाद यह तीनो चीजें मिलेंगी इस लिए इस बार की होली का संयोग बहुत सुखद है। लखनऊ की होली की बात ही निराली है। एक तो यहां सुबह आठ बजे से लेकर दोपहर 12 बजे तक ही रंग चलता है। दूसरे यहां नवाबों के दौर में शुरू हुई होली बारात मशहूर है। यह रंगोत्सव बारात चौक के कोनेश्वर चैराहे से उठकर हजरतगंज के मेफेयर तिराहा होते हुए वापस चौक चौराहे पर जाती है। डीजे की धुन पर होरियारों का हुजूम लोगों में होली को लेकर गजब का उत्साह पैदा करता है, लोग खुशी से झूमने लगते हैं। इसमें आगे आगे ऊंट, घोड़े चलते हैं। मुसलमान भी एक दूसरे पर इत्र छिड़काव करते हुए इसमें शामिल होते हैं। हवा में गुलाल उड़ता रहता है। एक दौर था जब लोग केसर के रंगों से होली खेलते थे। अब तो अबीर गुलाल और पानी की होली बची है। खास बात यह है कि बारात में मुसलमान न सिर्फ रंग खेलते, नाचते-गाते आगे बढ़ते हैं बल्कि मुस्लिम घरों की छतों से रंग-गुलाल और फूलों की बरसात भी होती है।
लखनऊ के पास ही मात्र 30 किलोमीटर पर सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह है। यहां उनके जमाने से होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। यहां होली खेलने के लिए आसपास के जिलों से भी लोग आते है। मजार परिसर में अबीर-गुलाल से होली खेलकर एक दूसरे के गले मिलते हैं। सुबह कौमी एकता गेट पर मटकी को फोड़ने के बाद होली का जुलूस गाजे बाजे के साथ प्रारम्भ होता है। यह जुलूस देवा कस्बे में घूमता हुआ मजार परिसर में गुलाल से होली खेलकर व एक दूसरे से गले मिलकर भाईचारे का संदेश देते हुए समाप्त होता है।