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महाराष्ट्र: पवार-ठाकरे ने दिखाई मजबूती

पवार की पार्टी ने पश्चिम महाराष्ट्र की 66 सीटों पर पिछली बार की तुलना में बढिय़ा प्रदर्शन किया। यह क्षेत्र राकांपा का गढ़ माना जाता है लेकिन 2014 में उसने मात्र 18 सीटें यहां जीती थीं। इस बार 27 सीटें उसकी झोली में गईं हैं जबकि भाजपा का स्कोर करीब आधा ही रह गया।

Shivakant Shukla
Published on: 24 Oct 2019 12:34 PM GMT
महाराष्ट्र: पवार-ठाकरे ने दिखाई मजबूती
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मुम्बई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में फिर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की है लेकिन जितनी उसे उम्मीद थी उतना मीठा फल नहीं मिल सका है। भाजपा राज्य में अपनी जीत के प्रति आश्वस्त थी और उसने अपने अकेले के दम पर सत्ता हासिल करने के लिए पुरजोर कोशिशें कीं। नतीजों में जीत तो मिल गई है लेकिन सहयोगी पार्टी शिवसेना का सहारा लेना मजबूरी है। इस चुनाव में दो सबसे बड़े फैक्टर उभर कर आये हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार और उद्धव ठाकरे बहुत मायने रखते हैं। रही बात कांग्रेस की तो वह चौथे नंबर पर लुढक़ गई और उसका प्रदर्शन पिछले चुनाव से भी खराब रहा।

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2014 के चुनाव में भाजपा ने 122 सीटें जीती थीं

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने महाराष्ट्र में 48 में से 23 सीटें जीत तक सफलता के झंडे गाड़ दिये थे। कुछ ही महीनों के अंतर पर अब हुए विधानसभा चुनाव नतीजे पार्टी के लिये रियल्टी चेक कहे जा सकते हैं। 288 सीटों की विधानसभा में भाजपा को कम से कम आधी अपने बूते पर जीतने की उम्मीदें थीं जो परवान न चढ़ सकीं। 2014 के चुनाव में भाजपा ने 122 सीटें जीती थीं और इस बार उसकी टैली और भी नीचे खिसक कर 102 पर पहुंच गई है। भाजपा ने पूरी कोशिश की थी कि उसे शिव सेना के भरोसे न रहना पड़े लेकिन सब प्रयास और इंतजाम कम पड़ गये।

ये तो तय है कि देवेन्द्र फणनवीस ही फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन वह उद्धव ठाकरे के फिफ्टी-फिफ्टी के फार्मूले के तहत कैसे आगे काम करेंगे ये देखने वाली बात होगी। वोट शेयर की बात करें तो भाजपा को करीब 25.28 फीसदी, शिव सेना को 17.04 फीसदी, राकांपा को 16.77 फीसदी और कांग्रेस को 15.70 फीसदी वोट मिले।

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राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा

राज्य के चुनाव प्रचार में भाजपा का फोकस राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर ही केंद्रित रहा था। आर्थिक मंदी, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर ज्यादा बात नहीं की गई जो मतदाताओं के गले नहीं उतरा। दूसरे दलों के नेताओं को तोडऩे की भाजपा की रणनीति भी जनता को पसंद नहीं आई। मिसाल के तौर उदयन राजे भोंसले सतारा लोकसभा सीट से त्यगपत्र दे कर भाजपा में आये लेकिन उपचुनाव में बड़े अंतर से हार गये।

झोंकी थी पूरी ताकत

भाजपा ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंक रखी थी। वजह थी कि यहां भाजपा का सीधे तौर पर कांग्रेस-राकांपा गठबंधन से मुकाबला था। साथ ही अपने साथी शिवसेना को दबाना भी था। भाजपा जानती है कि अगर शिवसेना पिछली बार से ज्यादा सीटें पा गई तो वह सरकार में अपनी हिस्सेदारी को लेकर मोलभाव पर उतर आएगी। इस स्थिति से बचने के लिए भाजपा का पूरा फोकस इस बात पर था कि किसी तरह वह अकेले पूर्ण बहुमत के आंकड़े तक पहुंच जाए। अब बदले परिदृश्य में भाजपा को शिवसेना की सौदेबाजी झेलनी होगी।

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शरद पवार का दबदबा

राज्य में शरद पावर ने दिखा दिया कि किसी सेना का जनरल किस तरह युद्ध लड़ता है। ७८ वर्षीय पवार ने सभी मोर्चों को सबसे आगे आ कर संभाला। सभी स्थितियों के बीच शरद पवार अकेले ही डटे रहे। पवार ने अकेले ही प्रचार किया और नरेंद्र मोदी, अमित शाह, देवेंद्र फडणवीस पर सीधा हमला बोला। पवार के आगे आने का ही यह फैक्टर था कि उनके गढ़ में जनता ने उन पर एक बार फिर से भरोसा जताया।

चुनाव से पहले कहा जा रहा था कि राकांपा के लिए इस बार संभावनाएं बेहतर नहीं हैं। हालात यह थे कि सहयोगी पार्टी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने महाराष्ट्र के प्रचार में बहुत ज्यादा उत्साह और दिलचस्पी नहीं दिखाई। खुद अपनी ही पार्टी के नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियों के छापे और परिवार की अंदरूनी लड़ाई भी पवार के लिए सिरदर्द थी। इन सभी स्थितियों के बीच शरद पवार अकेले ही डटे रहे। शरद पवार की बढ़ी हुई ताकत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि उनकी पारिवारिक सीट बारामती से उनके भतीजे अजीत पवार भारी बहुमत से जीते। उन्हें अकेले 84 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। बीते चुनाव में 41 सीट जीतने वाली राकांपा 56 सीटें पा गई है।

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शरद पवार ने बारिश में भीगते हुए भी एक रैली की थी

एक उदाहरण सतारा लोकसभा सीट का है। यहां हुए उपचुनाव पर भी राकांपा ने जीत दर्ज की। यहां भाजपा प्रत्याशी उदयनराजे भोसले को राकांपा के श्रीनिवास पाटिल ने खासे अंतर से हराया। इस चुनाव में शरद पवार ने बारिश में भीगते हुए भी एक रैली की थी। शिवाजी के वशंज उदयनराजे ने पिछले आम चुनाव में राकांपा के टिकट पर सतारा सीट जीती थी लेकिन बाद में वह इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गये थे।

पवार की पार्टी ने पश्चिम महाराष्ट्र की 66 सीटों पर पिछली बार की तुलना में बढिय़ा प्रदर्शन किया। यह क्षेत्र राकांपा का गढ़ माना जाता है लेकिन 2014 में उसने मात्र 18 सीटें यहां जीती थीं। इस बार 27 सीटें उसकी झोली में गईं हैं जबकि भाजपा का स्कोर करीब आधा ही रह गया।

नतीजे बताते हैं कि कुछ नहीं हुआ

शरद पवार ने इस क्षेत्र में सघन प्रचार किया क्योंकि देवेन्द्र फणनवीस ने उनके कई नेताओं को तोड़ कर भाजपा में शामिल कर लिया था। पश्चिम महाराष्ट्र शक्कर उद्योग के दिग्गजों और कोआपरेटिव सेक्टर का गढ़ है जिस पर पारंपरिक रूप से शरद पवार का कंट्रोल रहा है। यहां बड़ी संख्या में नेताओं द्वारा पाला बदलने से माना जा रहा था कि भाजपा के पक्ष में पलड़ा भारी रहेगा लेकिन नतीजे बताते हैं कि ऐसा कुछ नहीं हुआ।

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कांग्रेस और भी नीचे गई

महाराष्ट्र विधानसभा में सबसे बुरी स्थिति में कांग्रेस रही है। पार्टी इस बार चौथे पायदान पर आ गई और पिछले चुनाव से भी खराब प्रदर्शन रहा है। अब तो कांग्रेस को सदन में नेता विपक्ष का पद अपने सहयोगी राकांपा को देना पड़ जायेगा। कांग्रेस ने इस बार 147 सीटों पर और राकांपा ने 117 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के लिये दिलासे की बस यही बात रही कि उसने भाजपा की राज्य में बढ़त पर ब्रेक लगाने में सफलता मिली है। कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 के मुकाबले और कमजोर हुआ है। यह इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि अब तक राकांपा को कांग्रेस का जूनियर पार्टनर माना जाता था।

महाराष्ट्र का पिछला चुनाव

2014 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन टूटने पर सभी 288 विधानसभा सीटों पर अलग-अलग लडऩे पर भाजपा को 122 सीटें मिलीं थीं, वहीं शिवसेना को सिर्फ 63 हासिल हुईं थीं। कांग्रेस को 42 व राकांपा को 41 सीटें मिलीं थीं। पूर्ण बहुमत से 20 सीटें कम होने के कारण तब भाजपा को शिवसेना के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी थी।

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2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन के कारण सिर्फ 150 सीटों पर खुद लड़ रही है। 14 सीटों पर उसके ही सिंबल पर अन्य सहयोगी दल लड़ रहे हैं। शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में भाजपा को लगता है कि इस बार कम सीटों पर चुनाव लडऩे के कारण अगर पिछली बार से कम सीटें आईं और शिवसेना की सीटें बढ़ीं तो भाजपा के लिए मुश्किलें होंगी।

Shivakant Shukla

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