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प्रदेश में मिड डे मील का कुछ ऐसा हाल, बच्चे बेहाल और बिचौलिए मालामाल
महंगाई के इस दौर में चार रुपये से कम में एक रोटी तक नसीब नहीं होती। ठेलों व छोटे ढाबों पर भी बीस से 30 रुपये में एक छोटी थाली मिलती है मगर सरकार चार रुपये से कम में बच्चों
Sudhanshu Saxena
लखनऊ: महंगाई के इस दौर में चार रुपये से कम में एक रोटी तक नसीब नहीं होती। ठेलों व छोटे ढाबों पर भी बीस से 30 रुपये में एक छोटी थाली मिलती है मगर सरकार चार रुपये से कम में बच्चों को दोपहर का भोजन मुहैया करा रही है। असलियत तो यह है कि अन्य सरकारी योजनाओं की तरह मिड डे मील (एमडीएम) योजना भी भ्रष्टाचार की शिकार है।
-अब इतनी कम धनराशि में भ्रष्टाचार के बाद बच्चों को कैसा भोजन मिलता होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है।
- मिड डे मील योजना से बच्चों की जगह बिचौलिए हृष्ट पुष्ट हो रहे हैं।
- पूरी की पूरी योजना एक बड़े गोलमाल की भेंट चढ़ गई है। हद तो यह है कि इस्कॉन जैसी ख्याति प्राप्त संस्था से जुड़ी अक्षयपात्र संस्था के हाथ भी एमडीएम के गोलमाल में रंगे हुए हैं।
- बीते दिनों मध्यान्ह भोजन योजना के अंतर्गत खाना खाने से बीमार होने के दर्जनों मामले सामने आए और इनमें से अधिकांश मामले अक्षयपात्र संस्था से जुड़े थे।
- लेकिन सरकार इस संस्था पर इस हद तक मेहरबान रही है कि सिर्फ सेंट्रलाइज्ड किचन बनाने के लिए इस संस्था के पक्ष में मध्यान्ह भोजन प्राधिकरण ने 135.02 करोड़ का प्रस्ताव पेश कर दिया और 881.48 लाख की धनराशि की वित्तीय स्वीकृति भी हो गई।
ऐसे होती है आंकड़ों की बाजीगरी
-एमडीएम प्राधिकरण के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्तमान में इस योजना के दायरे में उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों के 130.62 लाख और उच्च प्राथमिक स्तर के 56.09 लाख बच्चे शामिल हैं।
-20 अप्रैल 2016 के एक सरकारी फरमान के मुताबिक कक्षा एक से पांच के लिए एक अरब 40 करोड़ 49 लाख 29 हजार और कक्षा 6 से 8 के लिए 84 करोड़ 50 लाख 71 हजार की धनराशि आवंटित है।-यानी वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए एमडीएम के मद में कुल दो अरब 25 करोड़ की धनराशि का आवंटन किया गया।
-इसके हिसाब से राजधानी के बेसिक स्कूलों के कक्षा एक से पांच के बच्चों के लिए प्रति छात्र प्रति दिन 3 रुपये 86 पैसे और कक्षा 6 से 8 के लिए प्रति छात्र प्रति दिन 5 रुपये 78 पैसे खर्च होना प्रस्तावित है।
- जबकि आज के समय में 3 रुपये में एक रोटी भी सामान्य रूप से किसी भी ठेले या ढाबे में नहीं खरीदी जा सकती।
-इसके अलावा जिम्मेदार इस कम धनराशि में भी भ्रष्टाचार करने से नहीं चूक रहे हैं। इस कारण बच्चे खाना खाने से पुष्ट होने के बजाय बीमार पड़ रहे हैं।
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- एमडीएम के लाभाॢथयों के आंकड़ों की बाजीगरी को रोकने के लिए जून 2010 में आईवीआरएस (इंटरेक्टिव वॉयस रिस्पांस सिस्टम) की शुरुआत की गई ।
- इस दैनिक अनुश्रवण प्रणाली का मकसद प्रदेश के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में प्रतिदिन एमडीएम ग्रहण करने वाले बच्चों की संख्या की सही जानकारी हासिल करना था।-टेक्नॉलॉजी के आधार पर कंप्यूटर और मोबाइल फोन के इंटरफेस के आधार पर इस प्रणाली से हर कार्य दिवस पर स्कूल के प्रधानाध्यापक, अध्यापक और शिक्षामित्र का मोबाइल नंबर जुड़ा रहता है, जिससे ऑटोमेटिक कॉल इनके नंबर जाती है और एमडीएम ग्रहण करने वाले बच्चों की संख्या पूछी जाती है।
- इसके उत्तर में मोबाइल से अंक टाइप करके उत्तर देना होता है। खाना न बनने की स्थिति में शून्य दबाकर उत्तर देना होता है।
- इस सिस्टम से जनपदवार एक रियल टाइम रिपोर्ट बनाई जाती है।
- लेकिन अब भ्रष्टाचार के चलते इस व्यवस्था के भी हाथ पांव फूलने लगे हैं। इसके चलते अब बेसिक शिक्षा विभाग पंजीकृत स्टूडेंट्स का आधार नंबर दर्ज करने की व्यवस्था करने जा रहा है।
अब एमडीएम को ‘आधार’ की आस
-मध्यान्ह भोजन में आईवीआरएस सिस्टम को बैकअप देने के उद्देश्य से बेसिक स्कूलों के बच्चों को आधार के जरिए जोडऩे का जिम्मा यूपी डेस्को को दिया गया।
- लेकिन सॉफ्टवेयर की तकनीकी दिक्कतों के कारण अभी इस योजना को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है।
-राजधानी के बीएसए कार्यालय की मानें तो यहां के परिषदीय, एडेड, मदरसा आदि में एमडीएम के लिए दो लाख नौ हजार आठ सौ छियालीस बच्चे पंजीकृत हैं।
- लेकिन इनमें से करीब एक लाख 24 हजार तीन सौ छत्तीस बच्चों की ही उपस्थिति आईवीआरएस के माध्यम से दर्ज हो पा रही है।
- इनमें शेष 85 हजार 510 बच्चों की एमडीएम संबंधी डिटेल दर्ज नहीं हो रही है। जो बच्चे उपस्थित हैं उनमें से सिर्फ 30 हजार 314 बच्चों यानी 14.52 फीसद बच्चों के पास ही आधार कार्ड है। इसलिए शेष का आधार कार्ड बनाना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
हादसों ने लगाया योजना पर प्रश्नचिह्न
-एमडीएम योजना के लाभ को व्यापक स्तर पर पहुंचाने के लिए स्वयं सहायता समूहों सहित एनजीओ द्वारा पके पकाए भोजन को बनाने और उसके वितरण का काम सौंपने की व्यवस्था की गई।
- इसके तहत अक्षयपात्र नामक संस्था को बड़े पैमाने पर इसमें शामिल किया गया।
-उम्मीद थी कि इस संस्था के शामिल होने के बाद एमडीएम योजना और सफल होगी।
-लेकिन कुछ समय बाद एमडीएम हादसों से पूरा देश कांप उठा। उत्तर प्रदेश में भी कई हादसे हुए और बच्चों की तबियत बिगडऩे के साथ कई मौतें भी हुईं।
- इन सबके बावजूद अब तक व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हुआ और उसी प्रकार एमडीएम का पकना और उसका वितरण जारी है।
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एमडीएम हादसे
-29 जुलाई 2015: तोपखाना बाजार स्थित आर्य बाजार माध्यमिक विद्यालय के 50 बच्चे एमडीएम के तहत अक्षयपात्र संस्था द्वारा दिए गए दूध को पीने के बाद बीमार पड़ गए।
-फरवरी, 2016: कानपुर के घाटमपुर के कुंवरपुर गांव में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में 21 बच्चों की एमडीएम खाकर बिगड़ी तबियत।
-अगस्त, 2016: कासगंज जिले के अशोकपुर गांव के प्राथमिक स्कूल के 10 बच्चों की एमडीएम में वितरित दूध पीने से हालत बिगड़ी।
- इसके अलावा कई हादसों के बावजूद 23 दिसंबर 2016 को प्रदेश के सचिव बेसिक शिक्षा के पत्र संख्या- 1843/79-6-2016 के जरिए अक्षयपात्र संस्था के लिए केंद्रीयकृत किचेन का बजट भी सरकार द्वारा जारी कर दिया गया।
-इसके अंतर्गत वाराणसी, आगरा, कानपुर नगर, कन्नौज, अंबेडकरनगर, गाजियाबाद, इटावा, इलाहाबाद, रामपुर, बलिया और आजमगढ़ में केंद्रीयकृत किचेन की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता देने का निर्णय लिया गया।
- इसमें वाराणसी, आगरा, कानपुर नगर, कन्नौज, अंबेडकरनगर, गाजियाबाद, इटावा और इलाहाबाद के लिए 135.02 करोड़ का प्रस्ताव एमडीएम प्राधिकरण ने अक्षयपात्र के पक्ष में रखा।
-इसके सापेक्ष 881.48 लाख की वित्तीय स्वीकृति भी प्राप्त हो चुकी है।
-ऐसा तब है जब एमडीएम के तहत हो रहे हादसे रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।अव्यवस्थाओं के चलते बदलनी पड़ी व्यवस्था
केंद्र सरकार ने 15 अगस्त 1995 को एमडीएम के अंतर्गत कक्षा 1 से 5 तक के प्रदेश के सरकारी, परिषदीय और राज्य सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को 80 प्रतिशत उपस्थिति पर हर महीने 3 किलोग्राम गेहूं या चावल दिए जाने की व्यवस्था तय की।
लेकिन बाद में यह देखने को मिला कि इस योजना के अंतर्गत छात्रों को दिए जाने वाले खाद्यान्न का पूर्ण लाभ छात्र को न मिलकर उसके परिवार में बंट जाता था। इससे छात्र को वांछित पौष्टिक तत्व नहीं मिल पाता था। बात के तूल पकडऩे पर सर्वोच्च न्यायालय ने 28 नवंबर 2001 को एक निर्देश जारी किया।
इसके अनुपालन में उत्तर प्रदेश में 1 सितंबर 2004 से बच्चों को प्राथमिक स्कूलों में पका पकाया भोजन देने की योजना शुरू की गई। इसे आगे बढ़ाते हुए 2007 में शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े उच्च प्राथमिक स्कूलों और अप्रैल 2008 से सभी ब्लाकों और नगरीय इलाकों के उच्च प्राथमिक स्कूलों को इस योजना में शामिल कर लिया गया।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
-राजधानी के बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी का कहना है कि मध्यान्ह भोजन योजना में जब कभी हादसे हुए तो हमारे स्तर पर तुरंत कार्रवाई की गई । हम बच्चों से सीधे तौर पर जुड़ी इस योजना के साथ किसी भी स्तर पर कोई समझौता नहीं करते हैं। इस योजना की हर पल मानिटरिंग की जाती है।
सचिव बेसिक शिक्षा अजय सिंह का कहना है कि अक्षयपात्र संस्था बड़े स्तर पर एमडीएम वितरण का कार्य कर रही है। जब कभी कोई खामी मिली या फिर कोई हादसा हुआ तो शासन स्तर तक से ठोस कार्रवाई की गयी। हमारा प्रयास है कि इस योजना की पारदॢशता को और बढ़ाया जाए।