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लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रो ध्रुव सेन सिंह को मिला भू-विज्ञान क्षेत्र का सर्वोच्च अवॉर्ड, हिमालय व गंगा पर किया है विश्लेषण

प्रो. ध्रुव सेन सिंह ने इसे भू-पर्यावरण अध्ययन के लिए पुरावातावरण, जलवायु परिवर्तन और मानसून परिवर्तन शीलता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए नदियों, ग्लेशियरों और झीलों का विशेष अध्ययन किया है।

Shashwat Mishra
Published on: 30 Jun 2022 2:41 PM GMT (Updated on: 30 Jun 2022 3:48 PM GMT)
Professor Dhruv Sen Singh
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Professor Dhruv Sen Singh

Lucknow University: पूरे भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर नदियों, वातावरण, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए, लखनऊ विश्विद्यालय के प्रोफेसर ध्रुव सेन सिंह को भू-विज्ञान क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार 'राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार-2019' से सम्मानित किया गया। बता दें कि प्रो. ध्रुव सेन सिंह, भारत के प्रथम एवं द्वितीय आर्कटिक (उत्तरी ध्रुव क्षेत्र) अभियान दल 2007, 2008 के सदस्य रह चुके है।

इसलिए दिया जाता है पुरस्कार

विश्विद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रो. ध्रुव सेन सिंह को भारत सरकार द्वारा भूविज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार-2019' द्वारा सम्मानित किया गया है, जो भूविज्ञान के क्षेत्र का सर्वोच्च पुरस्कार है। खान मंत्रालय, भारत सरकार भूविज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार प्रत्येक वर्ष प्रदान करता है। इस योजना का उद्देश्य मौलिक भूविज्ञान के क्षेत्रों के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियों और उत्कृष्ट योगदान के लिए व्यक्तियों और टीमों को सम्मानित करना है। यह पुरस्कार पिछले दस वर्षों में भारत में अधिकांश भाग के लिए किए गए कार्यों के माध्यम से किए गए योगदान के आधार पर दिया जाता है। श्री सिंह विज्ञान रत्न, शिक्षक श्री, और सरस्वती सम्मान से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित हैं।

इन विषयों पर किया है विशेष अध्ययन

प्रो. ध्रुव सेन सिंह ने इसे भू-पर्यावरण अध्ययन के लिए पुरावातावरण, जलवायु परिवर्तन और मानसून परिवर्तन शीलता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए नदियों, ग्लेशियरों और झीलों का विशेष अध्ययन किया है। प्रो. सिंह द्वारा भारत में हिमालय और गंगा के मैदान में और आर्कटिक में भी हिमनदों, नदी और झीलों का क्रमवार अध्ययन करके पुराजलवायु और पर्यावरण का विश्लेषण किया गया है।

केवल ग्लोबल वार्मिंग नहीं ज़िम्मेदार

प्रो. सिंह ने अपने अध्ययनों में यह वर्णन किया है कि गंगोत्री ग्लेशियर के तेजी से पीछे हटने का कारण इसकी अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं और केवल ग्लोबल वार्मिंग ही इसके लिये जिम्मेदार नहीं है। इसके अतिरिक्त गंगोत्री ग्लेशियर के पीछे हटने की दर लगातार घट रही है। जो 1970 में 38 मीटर/ वर्ष से 2022 में 10 मीटर/ वर्ष हो गई है, जो ग्लोबल वार्मिंग के अनुसार नहीं है।

भारत की सभी प्रमुख नदियों पर किया है अध्ययन

प्रो. सिंह ने अपने अध्ययनों में केदारनाथ त्रासदी के कारण और निवारण की भी विवेचना की है। प्रो. सिंह द्वारा गंगा के मैदान में, पुराजलवायु के लिए झीलों का विश्लेषण किया है इसके परिणामस्वरूप क्षैतिज कटान को एक स्वतंत्र खतरे के रूप में बताया है है जो कि नदी जनित प्राकृतिक आपदा में एक अंतर्राष्ट्रीय योगदान है। प्रो. सिंह ने एक छोटी नदी बेसिन छोटी गंडक का संपूर्ण भूवैज्ञानिक विश्लेषण किया। प्रो. सिंह ने समाज में वैज्ञानिक जागरूकता लेन के लिए सदा प्रयास किया है। प्रो. सिंह द्वारा "भारतीय नदियों: वैज्ञानिक और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को स्प्रिंगर द्वारा 2018 में संपादित किया गया है जिसका 28000 से ज्यादे डाउनलोड है। जिसमें भारत की सभी प्रमुख नदियों पर 37 अध्याय शामिल हैं।

Rakesh Mishra

Rakesh Mishra

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