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Purvanchal University: हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, विद्वानों ने रखे विचार

Purvanchal University: पूर्वांचल विश्वविद्यालय में विदेशों में हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता, विश्व भाषा के रूप में हिंदी के बढ़ते कदम विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

Kapil Dev Maurya
Published on: 23 Sep 2022 1:26 PM GMT
Purvanchal University News
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Purvanchal University News (image social media)

Purvanchal University: वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में शुक्रवार को विदेशों में हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता, विश्व भाषा के रूप में हिंदी के बढ़ते कदम विषयक एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी आइक्यूएसी प्रकोष्ठ, भाषा केंद्र एवं जनसंचार विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई। संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि भारतीय- नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम,नार्वे के अध्यक्ष,लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार सुरेश चंद शुक्ल 'शरद आलोक' ने कहा कि मातृभाषा के प्रति हीन भावना के शिकार नहीं हों नागरिक। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व करना चाहिए. उन्होंने कहा कि नॉर्वे में भारतीय रोजगार के लिए गए थे, उनके साथ उनकी मातृभाषा हिंदी भी वहाँ पहुँच गई।

आज खूब फल- फूल रही है. उन्होंने कहा कि नार्वे के श्रमदान की परंपरा से हमें सीख लेने की जरूरत है। इससे व्यक्ति में देश प्रेम की भावना जागृत होती है। उन्होंने विद्यार्थियों के लिए कहा कि गूगल के ज्ञान से हट कर मौलिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करें। मुख्य अतिथि ने विश्वविद्यालय के लिए अपनी पुस्तकों को कुलपति एवं अन्य को भेंट किया, अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर निर्मला एस. मौर्य ने कहा कि वैश्विक स्तर पर हिंदी बाजार की मजबूरी बन गई है। दुनिया के देश घूमने के स्थान हो सकते हैं लेकिन रहने के लिए सिर्फ भारत ही उपयुक्त है। यहां की हिंदी भाषा और संस्कृति लोगों को एक दूसरे से बांधे रहती है। उन्होंने कहा कि हर देश की अपनी एक विशेषता और सौंदर्य होता है जो लोगों को एक दूसरे से जोड़ता और आकर्षित करता है।

इस अवसर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के डॉ. सत्य प्रकाश पाल ने कहा कि बाजारवाद ने हिंदी को स्पर्श किया है। गैर हिंदी क्षेत्र के लोगों के जेहन में भी हिंदी उतर रही है। कहा कि भाषा, देश, समाज और संस्कृति का निर्माण करती हैं, अगर भाषा मरती है तो संस्कृति भी मर जाती है। विश्व में भारत के बाहर 200 विश्वविद्यालय में हिंदी की पढ़ाई हो रही है। अमेरिकन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने भी कहा था कि भारत को जानना है तो हिंदी सीखना जरूरी है। इससे यह संभावना बनती है कि हिंदी भाषा विश्व में सिरमौर बनेगी। उन्होंने हिंदी भाषा की ताकत को विस्तार से समझाया।

इस अवसर पर कुलसचिव महेंद्र कुमार ने कहा कि हिंदी के माध्यम से ही देश विश्वगुरु बन सकता है। हिंदी में अपनापन की वजह से इसकी लोकप्रियता बढ़ रही हैं। हमारी उदारवादी संस्कृति के कारण हिंदी ने विश्व में स्थान बनाया है। वित्त अधिकारी संजय राय ने कहा कि विश्व के बाजार में सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीति का प्रभाव बढ़ रहा है।इसके कारण हिंदी विश्व बाजार की जरूरत बन गई है। विषय प्रवर्तन संगोष्ठी के संयोजक डॉ. मनोज मिश्र ने विषय प्रवर्तन किया। अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रो. मानस पांडेय ने भी विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर कोविड-19 के दौरान काम करने वाले करंजकला ब्लॉक के चिकित्सा कर्मियों को भी सम्मानित किया गया। संगोष्ठी का संचालन डॉ. गिरधर मिश्र और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मनोज कुमार पांडेय ने किया। इस अवसर पर परीक्षा नियंत्रक वीएन सिंह, प्रो बीबी तिवारी,प्रो. वंदना राय, प्रो.अजय द्विवेदी, प्रो. देवराज सिंह, प्रो. अशोक श्रीवास्तव, प्रो नुपूर तिवारी, प्रो.रजनीश भास्कर, प्रो.अविनाश पाथर्डीकर, प्रो. राजेश शर्मा, डॉ. प्रमोद यादव, डॉ अमरेंद्र सिंह, डॉ सुनील कुमार, डॉ दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ अवध बिहारी सिंह, सहायक कुलसचिव गण अमृतलाल, बबिता सिंह, अजीत सिंह. दिव्येंदु मिश्र आदि उपस्थित थे।

Prashant Dixit

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