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Sonbhadra News: यूपी का एक ऐसा जिला, जहां लोगों की नसों में दौड़ रहा फ्लोराइड का जहर, हर घर नल से मिल पाएगी राहत?
Sonbhadra News: जिले के म्योरपुर, दुद्धी, बभनी, चोपन और कोन ब्लॉक फ्लोराइड की अधिकता से प्रभावित हैं। सबसे ज्यादा खराब स्थिति कोन और म्योरपुर ब्लॉक की है।
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Sonbhadra News: सोनभद्र के पांच ब्लाकों के 256 गांवों में फ्लोराइड का दंश लोगों के जीवन पर लगातार भारी पड़ रहा है। पानी में तो फ्लोराइड की अधिकता है ही, लोगों के यूरिन में भी पाई जा रही फ्लोराइड की अधिकता ने लोगों के होश उड़ाने शुरू कर दिए हैं। एक संस्था के सहयोग से कराए जा रहे सर्वे के शुरुआती चरण में ही जिस तरह की जानकारियां सामने आई है उसने न केवल फ्लोराइड जनित फ्लोरोसिस की समस्या लगातार गहराने की स्थिति बयां की है बल्कि अब तक की स्थिति को देखते हुए हर घर नल योजना प्रभावितों को राहत दे पाएगी? यह भी एक बड़ा सवाल बन गया है।
महज तीन गांवों के सर्वे में सामने आए डरा देने वाले आंकड़े
फ्लोराइड प्रभावित 256 गांवों की बात कौन कहे, म्योरपुर ब्लॉक के महज तीन गांवों के सर्वे में डरा देने वाले आंकड़े सामने आए हैं। बताते हैं कि मनबसा गांव से जांच के लिए जो पानी के सैंपल उठाए गए हैं उसमें प्रति लीटर फ्लोराइड की मात्रा 7.93 मिलीग्राम (न्यूनतम मात्रा 0.858 मिलीग्राम) तक मिली है। कटौंधी गांव में फ्लोराइड की मात्रा 8.51 मिलीग्राम (न्यूनतम 0.178 मिलीग्राम), रासपहरी गांव में जो सैंपलिंग की गई थी उसमें फ्लोराइड की मात्रा प्रति लीटर 3.30 मिलीग्राम तक पाई गई है।
पानी से ज्यादा लोगों के शरीर में दौड़ता मिला फ्लोराइड
वहीं लोगों के यूरिन यानी पेशाब में पाए गए फ्लोराइड की मात्रा, पानी में पाए जाने वाली मात्रा को काफी पीछे छोड़ने वाली है। एक संस्था के सर्वे के सामने आ रहे आंकड़ों पर यकीन करें तो मनबसा गांव में जांच के लिए लोगों के यूरिन के लिए सैंपल में फ्लोराइड की मात्रा प्रति लीटर 15.9 मिलीग्राम (न्यूनतम 0.917 मिलीग्राम), कटौंधी से लिए गए यूरिन सैंपल में यह मात्रा 18.6 मिलीग्राम (न्यूनतम 1.04 मिलीग्राम), रासपहरी से उठाए गए यूरीन सैंपल में प्रति लीटर यह मात्रा 8.16 मिलीग्राम मौजूद मिली है।
हालात डराने वाले, हर दूसरा व्यक्ति मिल रहा फ्लोराइड पीड़ित
फ्लोराइड प्रभावित गांवों के जल स्रोतों और प्रभावित गांवों के लोगों के शरीर में फ्लोराइड की मौजूदगी को लेकर किए जा रहे सर्वे की अगुवाई कर रहे पर्यावरणीय गुणवत्ता निगरानी यूनिट (पीएसआई देहरादून)के डायरेक्टर अनिल कुमार गौतम बताते हैं कि सोनभद्र में जल प्रदूषण खासकर फ्लोराइड के अधिकता की समस्या लगातार गहराती जा रही है। चल रहे ताजा सर्वे के जरिए सामने आ रही स्थिति पर भी उन्होंने चिंता जताई। कहा कि फिलहाल सोनभद्र के हालात डरने वाले हैं। हर दूसरा व्यक्ति फ्लोराइड पीड़ित मिल रहा है। कहा कि शुद्ध पानी, नियमित देखभाल और पौष्टिक भोजन से प्रभावितों को राहत दी जा सकती है लेकिन इसके लिए प्रयास ईमानदारी से करने होंगे।
पहचान के 40 वर्ष बाद भी लाइलाज बना हुआ है फ्लोराइड का दंश
बताते चलें कि वनवासी सेवा आश्रम की तरफ से प्रदूषण प्रभावित गांवों में किए गए सर्वे में पहली बार फ्लोराइड का मामला 40 वर्ष पूर्व सामने आया था। इसके लगभग 10 साल बाद सरकार ने भी स्वीकार किया कि फ्लोराइड की समस्या लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। वर्ष 2015 में एनजीटी की कोर कमेटी ने भी इस समस्या पर मुहर लगाई और प्रभावितों के राहत के लिए कई सुझाव दिए। सरकार की तरफ से प्रभावतों को राहत देने के लिए कई पहल भी सामने आई लेकिन फ्लोराइड की समस्या कम होने के बजाय लगातार गहराती रही।
म्योरपुर और कोन ब्लॉक में है फ्लोराइड की सबसे ज्यादा दिक्कत
जिले के म्योरपुर, दुद्धी, बभनी, चोपन और कोन ब्लॉक फ्लोराइड की अधिकता से प्रभावित हैं। सबसे ज्यादा खराब स्थिति कोन और म्योरपुर ब्लॉक की है। कोन ब्लॉक में जहां पड़रछ, रोहनियादामर, निरूइयादामर में फ्लोराइड का कहर तीन पीढ़ियों से लोगों को, विकलांगता के दंश और जवानी में बुढ़ापे जैसी स्थितियों से जूझने के लिए विवश किए हुए है। वहीं, म्योरपुर ब्लॉक में कुसुम्हा, रासपहरी, मनबसा, कटौंधी सहित आधा दर्जन गांवों के बाशिंदे तीन पीढियों से फ्लोराइड की समस्या से गंभीर रूप से पीड़ित हैं। फ्लोराइड की अधिकता से प्रभावित गांवों में तिल तिल कर मौत की तरफ बढ़ती जिंदगियों को कभी इस अभिशाप से मुक्ति मिल पाएगी? वर्ष 2025 में भी यह बड़ा सवाल बना हुआ है।
सरकार ने किए ढेरों प्रयास, नहीं मिल पाई प्रभावी राहत
प्रभावितों को राहत देने के लिए फ्लोराइड प्रभावित गांवों में कभी रिमूवल प्लांट लगाए गए तो कभी अभियान चलाकर फ्लोराइड रिमूवल किट का वितरण किया गया। फ्लोराइड उगलने वाले हैंडपंपों, जल स्रोतों पर खतरे के निशान लगाए गए लेकिन इसकी निगरानी और देखरेख के अभाव के चलते बाद में चलकर यह प्रयास भी बेमानी से हो गए। रिमूवल प्लांट को लेकर जहां जल निगम ने बजट के दिक्कत की बातकहकर पल्ला झाड़ा। वहीं ग्राम पंचायतों को इसकी देखरेख और मरम्मत की जिम्मेदारी सौंपने की पहल परवान नहीं चढ़ पाई। अब हर घर नल योजना के जरिए फ्लोराइड प्रभावितों को राहत यानी शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की पहल की जा रही है लेकिन पीड़ितों के पास पहुंचने वाला पानी कितना शुद्ध होगा? अभी तक की स्थिति को देखते हुए यह बड़ा सवाल बना हुआ है।
जल निगम से नहीं मिल पाया कोई जवाब
जिन गांवों के शुरुआती सर्वे में खतरनाक स्थिति सामने आई है, उन गांवों तक जहां अभी तक हर घर नल योजना के पानी की पहुंच नहीं बन पाई है। इन गांवों को कब तक नल के जरिए पानी मिलना शुरू हो जाएगा, इसकी जानकारी के लिए अधिशासी अभियंता जल निगम ग्रामीण से फोन पर संपर्क साधा गया लेकिन वह उपलब्ध नहीं हुए।
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