×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

काश! नेताओं के लिए वोटबैंक होते मासूम, ना बढ़ता इंसेफेलाइटिस से मौत का सिलसिला

सीएम योगी आदित्यनाथ और इंसेफेलाइटिस को लेकर आंदोलनों का गहरा नाता है। इस महामारी से होने वाली मौतों को लेकर आवाज बुलंद करने वाले योगी आदित्यनाथ 9 अगस्त को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में विभागीय मंत्री और अफसरों के साथ बैठक कर रहे थे।

tiwarishalini
Published on: 11 Aug 2017 4:13 PM IST
काश! नेताओं के लिए वोटबैंक होते मासूम, ना बढ़ता इंसेफेलाइटिस से मौत का सिलसिला
X

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: सीएम योगी आदित्यनाथ और इंसेफेलाइटिस को लेकर आंदोलनों का गहरा नाता है। इस महामारी से होने वाली मौतों को लेकर आवाज बुलंद करने वाले योगी आदित्यनाथ 9 अगस्त को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में विभागीय मंत्री और अफसरों के साथ बैठक कर रहे थे। बैठक के दौरान ही इंसेफेलाइटिस वार्ड में दो मरीजों की सांसें थम गईं। गोरखपुर में पहली जनवरी से लेकर 9 अगस्त तक इंसेफेलाइटिस से मौतों का आंकड़ा 128 तक पहुंच चुका है। यह आंकड़ा तब है जब केंद्र व प्रदेश सरकार की एजेंसियां इस महामारी की रोकथाम से लेकर इलाज तक पर अरबों खर्च करने का दावा कर रही हैं। हद तो यह है चार दशक में 10 हजार से अधिक मौतों के बाद भी जिम्मेदार ‘कातिल’ को काबू में नहीं कर सके हैं।

8 अगस्त को अपर मुख्य सचिव अनीता भटनागर इंसेफेलाइटिस के मरीजों का हाल जानने पहुंची थीं। 100 बेड का नवनिर्मित क्रिटिकल केयर यूनिट तक पूरी तरह बदहाल दिखा। वह अफसरों और चिकित्सकों को रस्मी फटकार लगाकर वापस लौट गईं। यूं तो जुलाई से नवम्बर तक का दौर पूरे देश में फेस्टिवल का माना जाता है लेकिन गोरखपुर-बस्ती मंडल समेत सीमावर्ती नेपाल और बिहार के लोगों के लिए यह मौसम मौत का होता है।

इंसेफेलाटिस को लेकर जितनी दवा हुई मर्ज और लाइलाज होता गया। पिछले 39 सालों से मौतों का आंकड़ा बढ़ ही रहा है। मादा मच्छर क्यूलेक्स ट्राइटिनीओरिंकस के डंक से होने वाले इंसेफेलाइटिस पर काबू पाने के लिये केन्द्र सरकार ने बीते पिछले वर्ष 11 अगस्त को इस महामारी को अधिसूचित रोग में शामिल करने की घोषणा की थी। यानी रोग और मौतों की मॉनीटरिंग सीधे केन्द्र सरकार कर रही है। पिछले वर्ष 9 अगस्त तक मौतों का आंकड़ा 126 था जो इस बार इतनी ही अवधि में 128 तक पहुंच चुका है।

टीकाकरण भी बेअसर

साल 2005 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की सहयोगी संस्था सेंटर फार डिजीज कंट्रोल के नेतृत्व में व्यापक टीकाकरण को इंसेफेलाइटिस पर प्रभावी अंकुश के लिए जरूरी बताया गया। वर्ष 2006 में पहली बार ‘पाथ’ और ‘यूनिसेफ’ संस्था ने गोरखपुर और आसपास के जिलों में 80 लाख बच्चों को टीका लगाया। लेकिन मौतों के आकड़ों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो माना गया कि टीकाकरण कारगार नहीं है। हालांकि गोरखपुर जिला अस्पताल में प्र्रत्येक बुधवार और शनिवार को इंसेफेलाइटिस का टीका लगाया जाता है। पिछले दिनों अभियान के तहत एक साल से 14 वर्ष के 2 लाख 39 हजार बच्चों को टीका लगाया गया। स्वास्थ्य विभाग की तरफ से हमेश पूरी तैयारी का दावा तो किया जाता है पर जब इंसेफेलाइटिस अपना विकराल रूप लेता है तो सारे दावे धरे के धरे रह जाते हैं। और सैकड़ों बच्चे असमय काल के गाल में समा जाते हैं।

फिर वादों की चाशनी

सीएम योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को मेडिकल कॉलेज में अफसरों और चिकित्सकों से वार्ता करने के दौरान कई वादे किये। योगी ने अफसरों को एईएस प्रभावित मरीजों के घरों में शौचलय निर्माण के लिए तत्काल 12 हजार रुपए जारी करने का निर्देश दिया। जिस निर्माणाधीन एम्स की अभी तक बाउंड्रीवाल तक नहीं बन सकी है वहां अगले वर्ष से एमबीबीएस की कक्षाओं के संचालन का दावा मुख्यमंत्री ने कर डाला। वहीं सीएम के साथ बैठक में मौजूद अपर मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा डॉ. अनिता भटनागर जैन ने कहा कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज परिसर में डेढ़ एकड़ में कंपोजिट रिहैबिलिटेशन सेंटर और पीएमआर के तहत मेडिकल कॉलेज में लैब का निर्माण होगा। मेडिकल कॉलेज में भी पीजीआई जैसी सुविधा मिलेगी। इसके पहले योगी ने मेडिकल कॉलेज में 4 करोड़ की लागत से बने आईसीयू और साढ़े तीन करोड़ की लागत से बने छह बेड के सीसीयू का लोकार्पण भी किया।

सुप्रीम कोर्ट की डांट के बाद हजारों करोड़ खर्च कर दिये

साल 2005 में दो हजार से अधिक मौतों के बाद सुप्रीम कोर्ट की फटकार पड़ी तो केन्द्र सरकार ने आधा दर्जन विभागों की जवाबदेही तैयार करते हुए इंसेफेलाइटिस उन्मूलन के लिए 4000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इंसेफेलाइटिस प्रभावित देश के 75 जिलों में जिला अस्पताल, सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सुविधाओं के लिये 2500 करोड़ रुपये खर्च हो गए। शेष 1500 करोड़ भी जिम्मेदारों ने बीमारी की रोकथाम पर खर्च दिये। इस रकम से पेयजल, टीकाकरण, सुअरबाड़ों को हटाने जैसे कार्य होने थे, लेकिन अस्पतालों के निर्माण और सुविधाओं के नाम पर भारी-भरकम रकम खर्च कर दी गयी। सीएचसी, पीएचसी पर सुविधा नदारद होने से मरीजों की भीड़ बीआरडी मेडिकल कालेज में दिखती है। 208 बेड वाले बाल रोग विभाग के एक बेड पर तीन से चार मरीज नजर आते हैं। इंसेफेलाइटिस पर शोध कार्य करने वाले एपीपीएल संस्था के डॉ. संजय श्रीवास्तव का कहना है कि झोला छाप डाक्टरों से बचाव के लिए सीएचसी और पीएचसी पर ईटीसी यानी इंसेफेलाटिस ट्रीटमेंट सेंटर पर जोर दिया गया लेकिन यहां डाक्टर, चिकित्सकीय सुविधा और दवाएं आदि नहीं होने से मरीजों को प्राथमिक इलाज नहीं मिल रहा है। इंसेफेलाइटिस के 30 से 40 पीडि़त फीसदी बच तो जाते हैं, पर करीब 20 फीसदी हमेशा के लिये विकलांग हो जाते हैं।

वजह ही तलाश रहे

चार दशक पहले तक जापानी इंसेफेलाइटिस की वजह मच्छरों को माना जाता था। जानकारों की थ्योरी थी कि सुअर को काटने के बाद मच्छरों का डंक कातिलाना हो जाता है। जिसके बाद सरकारों ने सुअरबाड़ों पर अंकुश लगाने की मुहिम चलाई लेकिन सब कवायद फेल ही रही। केन्द्र सरकार ने लोगों में मच्छरदानियां बांटी और गांव-गांव में फॉगिंग के नाम पर करोड़ों का बजट हजम हो गया। इसके बाद पानी में प्रदूषण को इंसेफेलाटिस की वजह बताई गई। यूपीए सरकार ने पूर्वांचल में पेयजल योजना के लिए 1000 करोड़ रुपये जारी किये। करोड़ों खर्च के बाद भी पेयजल की योजनाएं अधूरी हैं। कहीं ओवरहेड हाथी दांत बने हुए हैं तो कहीं पाइप लाइन बिछा कर छोड़ दी गयी है। पिछले दो वर्षों से स्क्रब टायफस को इंसेफेलाइटिस की वजह बताया जा रहा है। यहां भी दो सरकारी संस्थाओं के आंकड़ों में झोल है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक 12 फीसदी मरीजों में स्क्रब टायफस के लक्षण मिले हैं तो आईसीएमआर का दावा 60 फीसदी का है। स्क्रब टायफस के लिए गंदगी और चूहों को जिम्मेदार बताया जा रहा है।

अधूरा है अस्पताल

बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ के आंदोलनों और मासूमों की मौत को देखते हुए पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने 400 करोड़ रुपये की लागत से 500 बिस्तरों वाले बाल रोग संस्थान का निर्माण शुरू किया था। अखिलेश सरकार ने कार्यकाल के अंतिम दिनों में ओपीडी चलाने की घोषणा भी कर दी लेकिन इसका निर्माण अब भी अधूरा है। योगी सरकार ने अभी तक संस्थान के लिए बजट ही नहीं जारी किया है। नेशनल इंस्टीच्यूट आफ वायरोलॉजी भी अभी सफेद हाथी बना हुआ है। करोड़ों की लागत से बने 100 बेड के आईसीयू का भी बुरा हाल है। मरीजों के सभी बेड पर वेंटीलेटर समेत अन्य जीवन रक्षक सुविधाएं दी जानी थीं लेकिन सिर्फ 62 बेड पर सुविधाएं मिलीं। 40 बेड अन्य रोगों के बीमारों के लिए सुरक्षित कर दिये गये हैं। मेडिकल कालेज परिसर में 5 करोड़ की लागत से वायरोलॉली शोध रिसर्च सेंटर का निर्माण हुआ था, लेकिन केमिकल के अभाव और चिकित्सकीय स्टाफ की तैनाती नहीं होने से सेंटर बेकार साबित हो रहा है।

इंसेफेलाइटिस से साल दर साल मौतों का आंकड़ा (पहली जनवरी से 9 अगस्त 2017 तक)

साल मौतें

2017 - 128

2016 - 514

2015 - 474

2014 - 675

2013 - 497

2012 - 608

2011 - 655

2010 - 543

2009 - 568

2008 - 515

2007 - 547

2006 - 434



\
tiwarishalini

tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

Next Story