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3 साल मोदी सरकार: दस बार काशी आए मां गंगा के बेटे, पर नहीं बदल सके सूरत
तीन साल पहले सांसद चुने जाने के अगले ही दिन (17 मई 2014) को नरेंद्र मोदी बनारस पहुंचे थे। गंगा किनारे खड़े होकर खुद को बनारस का ‘बेटा’ बताया था और कहा था
वाराणसी: तीन साल पहले सांसद चुने जाने के अगले ही दिन (17 मई 2014) को नरेंद्र मोदी बनारस पहुंचे थे। गंगा किनारे खड़े होकर खुद को काशी का ‘बेटा’ बताया था और कहा था, कि मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है। ये सुन काशी के लोग खुश हो गए थे, कि वे अब पीएम के संसदीय क्षेत्र के वासी हैं।
पीएम मोदी दस बार से ज्यादा बार काशी आ चुके हैं और हर बार उनके पास देने के लिए कुछ न कुछ जरुर रहता। काशी को क्योटो-स्मार्ट सिटी बनाने से लेकर बुनकरों- मेहनतकशों की तकदीर बदलने के रास्ते दिखाए। बदलाव के लिए केंद्रीय मंत्रियों से लेकर अफसरों तक के तीन सौ बार से ज्यादा दौरा हो चुके हैं।
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हकीकत यही हैं कि मोदी के गोद लिए गांव को छोड़ दें तो जमीन पर दिखने- दिखाने के लिए एक ट्रेड फेसलिटी सेंटर और आईपीडीएस योजना के अलावा अस्सी घाट की सफाई इसके अलावा कुछ भी नहीं।
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मोदी मिशन को लगा पलीता
पीएम मोदी ने झाड़ू लगाई। अस्सी घाट पर फावड़ा चलाकर जिस सफाई अभियान का श्रीगणेश किया वो सिर्फ अस्सी घाट तक ही सिमित रहा। हालांकि कि प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने के बाद सरकारी आकड़ों में स्वच्छता को लेकर बड़ा उछाल देखने को मिला। जिस स्वच्छता मिशन का वर्ष 2014 के सर्वे में जो साढ़े चौसठवें स्थान पर था, वहीं शहर 2017 स्वच्छता सर्वेक्षण में देश भर के शहर को पीछे छोड़ते हुए 32वें स्थान पर अचानक से पहुंच गया तो लोगों को यकीन नहीं हुआ।
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जबकि इससे पहले तक मोदी के नवरत्न से लेकर नगर निगम, जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से काशी की पहचान कूड़े वाले शहर के रूप में होती थी। 32 वें स्थान पर ये शहर कैसे पहुंच गया ये तो किसी को नहीं नहीं लेकिन स्वच्छता के लिए तमाम चीजे सत्ता परिवर्तिन के बाद शुरु हुई है, जैसे नगर में रात में सफाई शुरु की गई कूड़ा उठान भी समय पर होने लगा। इसके अलावा कूड़ा निस्तारण प्लांट भी आधे अधूरे तरीके से चलना शुरु हो चुका है।
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घाट जस के तस
आज भी अगर अस्सी घाट का कुछ हिस्सा छोड़ दिया जाए तो सैलानियों को आकर्षित करने वाले ज्यादातर गंगा घाटों पर गंदगी का अंबार लगा हुआ है। अस्सी घाट पर तो पीएम के फावड़े का असर दिखा लेकिन उसके बाद पीएम द्वारा बनाए गए नवरत्नों और नगर निगम की उदासिनता के कारण बाकी घाटों पर ज्यादा सुधार देखने को नहीं मिला।
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ई-बोट हाथ से या मोटरबोट से ही चलायी जा रही
योजनाएं कागजों पर शुरु तो होती है, लेकिन उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। उदाहरण के तौर पर गंगा को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए पीएम ने अपने हाथों से दस नाविकों को ईवोट वितरित किया ताकि गंगा में मोटर बोट को चलाने के लिए डीजल का उपयोग ना किया जा सके। लेकिन आज की तारिख में बोट की संख्या बढ़ना तो दूर की बात है वो दस बोट में से ई- गायब हो चुका है यानी बैटरी चार्ज होने की व्यवस्था नहीं होने के कारण अब वे ई-बोट हाथ से या मोटरबोट से ही चलायी जा रही है।
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रंगीन फौव्वारे लगे लेकिन चले नहीं
घाटों पर एलईडी लगाने के नाम पर करोड़ो रुपए खर्च हो गए लेकिन सभी घाटों पर एलईडी नहीं लग सकी। वाई-फाई की सुविधा, गंगा में लाखों रुपए खर्च करके रंगीन फौव्वारे लगे लेकिन चले नहीं। अत्याधुनिक मशीनें आने के बाद भी गंगा में तैरती गंदगी आस्था की डुबकी लगाने वालों को विचलित करती है।
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ब्रेक लगा तो नतीजा शून्य रहा
जापान के पीएम शिंजो आबे को पीएम मोदी ने काशी लाकर इतिहास में नया पन्ना जोड़ा। शिंजो ने बनारस को कई तोहफे दिए। क्योटो और बनारस के बीच एमओयू साइन के लिए जापानी टीम ने भरपूर कोशिश की। अंतिम समय में बनारस मेयर के ही कदम पीछे खींचने से सवाल खड़े हुए। ब्रेक लगा तो नतीजा शून्य रहा है।
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करघे की सदियों पुरानी पहचान मिटने के कगार पर
पीएम के रुप में पहले काशी दौरे में ही पीएम मोदी ने केंद्र योजनाएं तो कई दी लेकिन सभी हाई-फाई ही साबित होने से बुनकरों की आंखों में अब भी आंसू है। टेक्सटाल्स मंत्रालय की हाल की सर्वे रिपोर्ट पर गौर करें तो बनारसी करघे की सदियों पुरानी पहचान मिटने के कगार पर और कारीगर नजीर बनने की ओर है।
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विशाल बिल्डिंग बन कर तैयार
बुनकरों का कहना कि फायदा बड़े गद्दीदार को हुआ, वे तो आज भी ‘दास’ बनकर जी रहे हैं। हालांकि बुनकरों को विश्वस्तरीय बाजार देने के साथ ही अन्य सुविधायें एक स्थान पर देने के लिए इंटरनेशनल स्तर का ट्रेड फेसलिटी सेंटर की स्थापना की गई और ढाई साल में ही इसकी विशाल बिल्डिंग बन कर तैयार हो गई।
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योजनाएं फाइलों से ही बाहर नहीं निकल
काशी डिवलपमेंट की एक दर्जन से ज्यादा योजनाएं फाइलों से ही बाहर नहीं निकल सकीं। घाटों पर चौबीसो घंटे सफाई, धरोहरों के संरक्षण- बेहतर सड़कों से लेकर अमृत, कम्युनिटी टॉयलेट, स्मार्ट सिटी, सेटेलाइट टाउन का काम पूरा नहीं हो सका। पिछले तीन सालों में शहर के तमाम ईलाकों में एलईडी स्ट्रीट लाइट जाल जरूर देखने को मिलने लगा है।
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गोद लिए गांव में बही बयार
बीएचयू राजनीति विभाग के प्रोफेसर केके मिश्रा के मुताबिक वाराणसी में हर तरफ तमाम सुधार देखने को मिल रहे है और पीएम मोदी की तरफ से चलाई गई योजनाओं का असर शहर में देखने को भी मिल रहा है। स्वच्छता की हालत शहर में बद से बदतर थी जिसमें काफी सुधार हुआ है।
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पेड़ लगाने का संदेश पूरे देश में गया
मंडुवाडीह स्टेशन को मॉडल स्टेशन बना दिया गया जिसकी शुरुत देखने लायक नहीं थी। पीएम मोदी का गोद लिया गांव जयापुर और अब नागेपुर। दो साल पहले जिन लोगों ने इन गांवों को देखा होगा वह आज शायद ही पहचान पाएं। जयापुर गांवों में बेटियों की अपनी बस, स्कूल, नंदघर, आदर्श गौशाला, सौर उर्जा से घरों में रोशनी, पक्के टॉयलेट समेत अन्य शहरी सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहीं से बेटी पैदा होने पर पांच पेड़ लगाने का संदेश पूरे देश में गया।
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शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुकतेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि पीएम मोदी से हम संतो को बहुत उम्मीद थी कि वो गंगा पुत्र बन कर आए हैं, लेकिन उन्होंने तीन साल में गंगा के लिए कुछ भी नहीं किया। गंगा के लिए नमामिगंगे योजना शुरु की गई लेकिन तीन साल में गंगा में कोई बदलाव नहीं देखने को मिला।
तीन साल पूरा होने बाद भी गंगा से न तो गंदगी साफ हुई और न ही गंगा अविरल हो सकी। इस बात से नाराज संत समाज अब आंदोलन की तैयारी कर रहा है। स्वामी जी ने तो यहा तक कहा कि उमा भारती औऱ नितिन गड़कड़ी देश भर में घूम घूम कर बनारस की झूठी तश्वीर दिखा कर विकास का दम भर रहे है।
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सांसद निधि खर्च
बीजेपी काशी प्रांत अध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य के मुताबिक पीएम मोदी की वर्ष 2014-15 की पूरी निधि खर्च हो चुकी है। वर्ष 2015-16 के भी पूरे पैसे खर्च हो चुके है। उन्होने बताया कि पिछले ही साल सौर्य उर्जा की शुरुआत हुई जिसका काम इस महीने से ही शुरु हो चुका है और अगले साल तक तमाम इलाकों में गैस पाइप लाइन से देने का काम शुरु हो जाएगा।
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ये काम हुए शुरु
- डेढ़ दशक पुरानी रिंग रोड योजना के फर्स्ट फेज का निर्माण।
- बनारस-बाबतपुर फोर लेन हाईवे।
- इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम में भूमिगत केबलिंग।
- बुनकरों के लिए साझा सुविधा केंद्र खुले।
- बुनकर फैसिलिटेशन सेंटर का निर्माण तेजी पर।
- उर्ज गंगा योजना की शुरुआत
हर बार सौगात फिर भी नहीं बदली तस्वीर
पीएम मोदी ने अब तक अपने संसदीय क्षेत्र बनारस का सात बार दौरा किया। हर बार सौगातों की बारिश की पर बदलाव की तस्वीर धुंधली ही नजर आ रही।
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काशी को मिली सौगात पर एक नजर-
7 व 8 नवम्बर 2014 (पहला दौरा)
- जयापुर को गोद लिया।
-200 करोड़ की लागत वाले ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर का शिलान्यास।
- बुनकरों के लिए पावरलूम सेंटर का उद्धाटन।
- गंगा पूजा, अस्सी घाट पर सफाई कर दिया स्वच्छता का संदेश।
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25 दिसंबर 2014(दूसरा दौरा)
- पहले इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर टीचर्स एजुकेशन का शिलान्यास।
- पांच सौ करोड़ की महामना राष्ट्रीय शिक्षक व शिक्षण मिशन की शुरुआत।
- डीरेका में 300 करोड़ से बनने वाली अत्याधुनिक वर्कशॉप की आधारशिला।
18 सितंबर 2015(तीसरा दौरा)
- बनारस के लिए 572 करोड़ की आईपीडीएस का शिलान्यास।
- बनारस से बाबतपुर तक 629 करोड़ के फोर लेन का शिलान्यास।
- 261 करोड़ की बनारस रिंग रोड का शिलान्यास।
- पूर्वांचल की सड़कों के लिए 11 हजार करोड़ की घोषणा।
- पर्सनल सेक्टर प्लान ।
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12 दिसंबर 2015(चौथा दौरा)
- जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ बनारस का दौरा।
- जापान के सहयोग से 150 करोड़ का कन्वेंशन सेंटर निर्माण की घोषणा।
- क्योटो की तर्ज पर बनारस का विकास।
22 जनवारी 2016 (पांचवा दौरा)
- 9296 दिव्यांगों को दिए उपकरण।
- दिव्यांगों के लिए विश्वविद्यालय बनाने की घोषणा।
- दिल्ली के लिए महामना एक्सप्रेस को दिखाई हरी झंडी।
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22 फरवरी 2016 (छठां दौरा)
- बीएचयू के शताब्दी दीक्षांत समारोह में शिरकत।
- संत रविदास की जन्म स्थली में नवाए शीश।
1 मई 2016 (सातवां दौरा)
- पैडल रिक्शा चालकों को बांटे ई-रिक्शे।
- नाविकों को ई-बोट की सौगात।
सितंबर 2016 (आठवा दौरा)
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मोदी का विजन बनारस
-गंगा निर्मलीकरण और अविरल गंगा।
-प्राचीन शहर बनारस के मूल सौंदर्य के साथ शहर का सुनियोजित विकास।
-बनारसी साड़ी, कालीन, दरी, पीतल, काष्ठ कला उद्योग को नई ऊंचाई देना।
-रिंग रोड, फ्लाईओवर, मोनो रेल जैसी जरुरतों पर तत्काल अमल।
-बनारस की कला संस्कृति की विरासत को बचाए रखने के लिए कलाधाम की स्थापना।
-समग्र पूर्वांचल के जरिए गरीबी-बेरोजगारी को खत्म करना।