TRENDING TAGS :
तीन तलाक मामला: अब बर्बाद न होने पाये और किसी की जिंदगी
लखनऊ: तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से मुस्लिम महिलाओं में राहत, खुशी और मजबूती का एहसास है। जिन महिलाओं ने ऊटपटांग और मनमाने तरीके से दिये गये ‘तीन तलाक’ का दंश झेला है उनमें खुशी है। साथ ही यह सवाल भी है कि जिनको मनमाना तलाक दे दिया गया है उनको भी सरकार इंसाफ दिलाये। पति के साथ रहने का हक मिले और अगर पति साथ में नहीं रखता तो उसे सख्त सजा दी जाये। ऐसी महिलाओं में यह उम्मीद मजबूत हुयी है कि उनकी दुर्दशा पर सरकार कुछ जरूर करेगी।
आगरा की मुस्लिम महिलाएं ‘तीन तलाक’ पर रोक के फैसले से राहत महसूस कर रही हैं, लेकिन खुलकर कुछ नहीं बोल रहीं। कई जगह तो इन महिलाओं ने कैमरे के सामने आने से भी मना कर दिया। कुछ महिलाओं का कहना है कि कोर्ट का फैसला वाजिब है। कई महिलाओं ने कुरान और शरीयत का हवाला देकर इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से मना कर दिया। कुछ महिलाओं ने कोर्ट द्वारा सरकार को 6 माह में नया एक्ट लाने पर कहा कि इसमें क्या प्रावधान रखे जाएंगे, वह कितने महिलाओं के हित में होंगे, उसके बाद ही बोलना उचित होगा।
आगे की स्लाइड में पढ़ें आगरा की पीड़ितों की कहानियां
केस नंबर 1
ग्वालियर की रहने वाली गुलप्सा उर्फ रजिया की शादी 14 सितंबर 2012 को आगरा के बाह निवासी इजराइल से हुई थी। इजराइल यूपी पुलिस में मैनपुरी जिले में कांस्टेबल के पद पर तैनात है। वह उम्र में भी शहनाज से करीब 10 साल बड़ा था। रजिया का आरोप है कि शादी के बाद से ही देवर हारून उससे अश्लील हरकतें करने लगा। एक दिन वह शराब के नशे में कमरे में घुस आया। गुलप्सा ने पति से शिकायत की, लेकिन पति ने जवाब नहीं दिया। हारून हमेशा सबके सामने कहता था, गुलप्सा उसकी पसंद थी, इसीलिए भाई से शादी कराई है। रजिया ने इसकी शिकायत सास शकीना से भी की, लेकिन उन्होंने भी बेटे का साथ देते हुए उसकी बात मान लेने को कहा। रजिया के अनुसार, एक बार उसे देवर हारून ने किडनैप भी करवा दिया था, जिसकी बाह थाने में लिखित बयान दर्ज है। जब बात नहीं मानी तो बच्चे के बर्थ-डे के अगले दिन पति ने रात में घर से निकाल दिया और परिवार के ही लडक़े के साथ मायके भेज दिया। बाद में गलत आरोप लगाकर घर बुलाने से मना कर दिया। बेटा भी ससुराल वालों ने नहीं दिया। और फिर तीन तलाक का एक लेटर भिजवा दिया। रजिया के घर वापस आने के बाद परिजनों ने ग्वालियर महिला थाने में शिकायत की। उधर इजराइल ने गुपचुप तरीके से ट्रैफिक में तैनात एक सिपाही की बेटी से शादी कर ली। रजिया ने बताया कि इसकी शिकायत उसने मैनपुरी में एसपी से भी की थी। कहीं से न्याय न मिलता देख पीडि़ता ने 22 अप्रैल को सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजा। रजिया ने आगरा के आईजी से मुलाकात कर न्याय की मांग की। जिस पर आईजी ने एक सप्ताह में जांच कर सिपाही पर कार्रवाई की बात कही। अब तीन तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से रजिया काफी खुश है।
आगे की स्लाइड में पढ़ें पीड़ितों की कहानियां
केस नंबर 2
एक बेबस महिला यासमीन है जिसे तलाक की सजा मिली बेटी पैदा करने पर। लगातार दो बेटियों के पैदा होते ही पति ने तीन तलाक के खौफनाक शब्द सुना कर उसे ससुराल की दहलीज से बाहर कर दिया। पिछले चार महीनों से महिला मायके में रह रही है। यासमीन की बड़ी बेटी आफसा दिमागी बुखार से पीडि़त है। मजबूर होकर उसने पति से बेटी के इलाज के लिए पैसे की गुहार लगाई लेकिन पति ने तलाक की बात कह कर कोई मदद नहीं की। यासमीन ने साहस जुटाया और पुलिस को फोन करके तीन तलाक केस मामले में यासीन को गिरफ्तार करा दिया। यासीन पहले भी एक शादी कर चुका है पहली पत्नी की मौत के बाद उसने यास्मीन से शादी की थी। अब यासमीन कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार से यही उम्मीद जता रही है कि वह उन बेसहारा महिलाओं के हित में कोई ऐसा कानून लेकर आएंगे जो उनकी जिंदगी बदल दे। फिलहाल यासमीन अपनी बेटी के इलाज के लिए ज्यादा परेशान है क्योंकि उसके पास जिंदगी और मौत से जूझ रही बेटी के इलाज के लिए पैसे नहीं है।
आगे की स्लाइड में पढ़ें पीड़ितों की कहानियां
केस नंबर 3
नेहा खान की शादी 10 मई 2010 को हुई थी। शादी के बाद से कई बार दहेज की मांग की गई। जब नेहा ने मना कर दिया तो 5 मई 2017 को पति ने ‘तीन तलाक’ शब्द सुनाकर नेहा की जिंदगी में तूफान खड़ा कर दिया। उसे ससुराल से बाहर कर दिया। वह न्याय के लिए अधिकारियों से गुहार लगा रही है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नेहा को एक उम्मीद दिखाई दी है। उसने मोदी सरकार से तीन तलाक के मामले में एक सख्त कानून की मांग की है।
आगे की स्लाइड में पढ़ें पीड़ितों की कहानियां
केस नंबर 4
शहनाज की शादी चार वर्ष पहले बबलू से हुई थी। पिछले साल दिसम्बर में बबलू का अपने ससुरालवालों के साथ झगड़ा हुआ जिसके बाद शहनाज ने पति बबलू, सास, ससुर, जेठ और ननद पर केस दर्ज करा दिया। मुदमे की सुनवायी 17 अप्रैल को थी। कोर्ट में आये शहनाज के ससुरालवालों ने शहनाज को बाहर बुलाया और उसके भाइयों के सामने ही बबलू ने उसे तीन बार तलाक बोल कर सारे रिश्ते खत्म कर दिए। तलाक का नाम सुनते ही शहनाज डर गयी और सास के पैर पकड़ लिए। सास ने उससे कहा कि पहले वह मुकदमा वापस ले। इसके बाद ही तेरा किसी अच्छे मौलवी से हलाला करवाएंगे तब तू वापस आएगी। शहनाज के पिता का कहना है कि जब शरियत के अन्य कानून नहीं लागू किये जाते तो तीन तलाक ही क्यों माना जाए। उन्होंने कहा कि वह मोदी और योगी के साथ हैं और अपने बेटी को न्याय दिलवायेंगे। शहनाज का कहना है कि हमारी जिंदगी खराब होने से तो नहीं बच सकी लेकिन औरों की जिंगदियां तो अब बच जायेंगी।
आगे की स्लाइड में और पढ़ें
भारत में मुस्लिम
कुल आबादी : 17.22 करोड़
पुरुष : 8,82,73,945
महिला : 8,39,71,213
13.5 फीसदी मुस्लिम महिलाओं की शादी 15 साल से कम उम्र में
49 प्रतिशत महिलाओं की शादी 14 से 19 वर्ष के बीच
18 प्रतिशत का निकाह 20 से 21 साल की उम्र में
जिन महिलाओं को तलाक दिया गया, उनमें 80 से 95 प्रतिशत को किसी प्रकार का गुजारा भत्ता तक नहीं
तलाकशुदा 65 फीसदी मुस्लिम महिलाओं को उनके पतियों ने मुंह से तलाक बोला
इलाहाबाद हाईकोर्ट तीन तलाक असंवैधानिक करार दे चुका है।
आगे की स्लाइड में पढ़ें शाहजहांपुर की पीड़ितों की कहानियां
शाहजहांपुर
हमें मिले पति के साथ रहने का हक
शहर की एक महिला को उसके पति ने सउदी अरब से फोन पर तलाक दे दिया था। उसका कहना है कि सरकार की पहल और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने महिलाओं को सुरक्षित कर दिया है। कानून बनाते वक्त उन महिलाओं का ध्यान रखना चाहिए जिनका तलाक हो चुका है और जो अब भी पति के साथ रहना चाहती है।
मोहल्ला अली जई निवासी सगीर खान की 25 वर्षीय बेटी जेबा खान की शादी २०१३ में अलीगढ़ के डाक्टर जियाउद्दीन अहमद से हुयी थी। जियाउद्दीन ईएनटी सर्जन है और फर्रुखाबाद में तैनात है। जेबा ने बताया कि जियाउद्दीन की पहले ही एक शादी हो चुकी थी और साथ ही कई महिलाओं से उनके संबंध थे। जब वह इसका विरोध करती थी तो जियाउद्दीन उसके साथ बेरहमी से मारपीट करता था। खर्चे के लिए पैसे भी नहीं देता था। जब पीङि़ता ने मायके में आकर शिकायत की तो पंचायत हुई मामला शांत हो गया। लेकिन पति ने फिर दूसरी महिलाओं से संबंध बनाना शुरू कर दिए। कुछ दिन बाद जियाउद्दीन ने कहा कि वह सऊदी अरब जा रहा है और कुछ दिन बाद उसे भी वहां बुला लेगा। जेबा के मुताबिक कुछ दिन बाद पति का फोन आया और कहने लगा कि वह उसके साथ नहीं रहना चाहता इसलिए वह उसको तलाक दे रहा है। और उसने तीन बार तलाक बोलकर फोन काट दिया। जेबा ने बताया कि वह तलाक के बाद से अपनी दादी के पास रहती है। दादी को पेंशन मिलती है जिससे खर्च चलता है। जेबा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की है कि ऐसा कानून बनाएं जिससे कि तलाकशुदा महिलाओं न्याय मिल सके। तलाक के बाद भी जो महिलाएं अपने पति के साथ रहना चाहती है ऐसी महिलाओं को उनके साथ रहने का हक दिया जाए। जेबा ने पहले की सरकारों को भी कटघरे में खड़ा किया है कि जो कदम आज बीजेपी ने मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए किया वह पहले की सरकारों ने क्यों नहीं किया।
आगे की स्लाइड में पढ़ें गोरखपुर की पीड़ितों की कहानियां गोरखपुर
महिलाओं को मिलेगी जलालत की जिंदगी से मुक्ति
गोरखनाथ क्षेत्र की कादिरा बानो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहती हैं कि शादी के दो साल बाद ही पति ने तलाक दे दिया। मैं उसकी हर शर्त मानने को तैयार थी लेकिन वह कहीं और निकाह करना चाहता था। सो उसने तलाक दे दिया। दो साल की बेटी के साथ मायके में रह रही हूं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से महिलाओं को जलालत की जिंदगी से मुक्ति मिलेगी।
पिपराइच की सुफिया खातून को पति ने फोन पर ही तलाक दे दिया था। घरेलू हिंसा को लेकर कोर्ट की शरण में है। सुफिया कहती है कि पहले ही तीन तलाक पर रोक होती तो मुझे ऐसी जिंदगी नहीं देखनी पड़ती। अब सरकार को मुस्लिम महिलाओं के हित में कड़ा कानून बनाना चाहिए। ताकि उन्हें बराबरी के हक का इल्म हो सके।
दूसरी ओर इमामबाड़ा के प्रमुख अदनान फरूख अली शाह कहते हैं कि शरियत में पहले ही तीन तलाक वर्जित है। सुप्रीम कोर्ट ने कोई नई बात नहीं की है। मोबाइल, ई-मेल पर तीन तलाक नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से महिलाओं में आत्मविवास बढ़ेगा।
आगे की स्लाइड में पढ़ें आजमगढ़ की पीड़ितों की कहानियां
आजमगढ़
एक देश, एक कानून लागू होना चाहिए
चमराडीह गांव की नसीमा बानो, जौनपुर के गनवल गांव में ब्याही गयी थी। ससुरालीजन दहेज में कार व पांच लाख रुपये की मांग को लेकर उसे यातनायें देने लगे। जब उसने विरोध किया तो उसे तीन तलाक का सामना करना पड़ा। आजमगढ़ के फैमिली कोर्ट में उसका मामला विचाराधीन है। नसीमा बानो कहती हैं कि मुसलमान शरीयत का कोई कानून नहीं मानता। वह केवल अय्याशी के लिए शरीयत के कानून की बात करता है। बात जब उसकी बहन-बेटी की आ जाती है तो वह शरीयत कानून के खिलाफ बात करने लगता है। ऐसे में मौलवी-मौलाना प्रताडि़त लडक़ी के परिजनों पर शरीयत का कानून मानने का नैतिक दबाव बनाते हैं। नसीमा का कहना है कि हम भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। जब हमारा संविधान किसी तरह का भेदभाव नहीं करता तो यह कहां का न्याय है कि कुछ मामलों में कुछ लोग कुछ कानून संविधान का मानें और कुछ कानून शरीयत का। एक देश, एक कानून लागू होना चाहिए।
मदरसा जहजीबुल इस्लाम निसवां पहाड़पुर की शिक्षिका शबीहा खातून का कहना है कि एक बार में तीन तलाक देना शरीयत से गलत है। इस्लाम में तो जिन्दगी जीने का कानून खुद बना है। यदि हम इसका पालन नहीं करते तो यह हमारी गलती है। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है वह शरीयत के मुताबिक ही दिया है।
दूसरी ओर उलेमा कौंसिल के अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी का कहना है कि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरी तरह से राजनीतिकरण किया गया है। वजह यह कि फरह फैज नाम की जो महिला अदालत गयी थी, उसका नाम लक्ष्मी वर्मा है और वाराणसी की जरीन अंसारी नाम की महिला का असली नाम पद्मावती है। वह पीडि़त मुस्लिम महिलाओं द्वारा दायर मुकदमा नहीं है।
आगे की स्लाइड में पढ़ें मेरठ की पीड़ितों की कहानियां
मेरठ
केस नंबर १
काश पहले आया होता कोर्ट का फैसला
कड़वे सच से गुजरने वाली महिलाओं के लिए तो २२ अगस्त का दिन ईद और रमजान के जुमे से कम न था। इन्हीं महिलाओं में शामिल रहीं मेरठ के नरहड़ा गांव की अमरीन और फरहीन। दोनों सगी बहनें हैं। अमरीन कहती हैं कि टीवी पर सुप्रीम कोर्ट का समाचार जैसे ही देखा और सुना घर में खुशी की लहर दौड़ गई। हम दोनों बहनों ने दिल से सुप्रीम कोर्ट को दुआ दी, जिसने देश की लाखों मुस्लिम महिलाओं को सम्मान से जीने का हक दिया।
केस नंबर २
फरहीन कहती है कि तलाक,तलाक, तलाक। ये तीन शब्द ही थे जिसने हम बदनसीब बहनों की हंसती खेलती जिंदगी में जहर घोल दिया। भला हो हमारे परिजनों का जिन्होंने हमें सहारा देने के साथ ही जीने का हौसला भी अता किया। फरहीन कहती है कि हमारा निकाह एक ही घर में दो सगे भाइयों से हुआ था। एक दिन अमरीन के बेटे ने मेरे पति से पांच रुपये मांगे तो उन्होंने पैसे देने से इंकार कर दिया। महज पांच रूपये के लिए हम दो बहनों की जिंदगी में जो सैलाब आया वह आज तक न थम सका। मायके से कुछ दिन बाद यह सोच कर हम ससुराल लौटीं कि शायद अभी तक गुस्सा ठंडा हो गया होगा। लेकिन ससुराल में एक दिन बाद ही हमारे पतियों ने तलाक-तलाक-तलाक कह कर हमें बाहर की राह दिखा दी। हमने कानूनी लड़ाई लडऩे का निर्णय लिया। आज भी हमारी कानूनी लड़ाई जारी है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय काश कुछ साल पहले आया होता तो आज हमारे बच्चे अपने अब्बू के प्यार से वंचित नहीं होते।
केस नंबर ३
बाउंड्री रोड निवासी शबनम को तो आज तक यह मालूम भी नहीं हो सका है कि उसके पति ने आखिर उसे तलाक-तलाक-तलाक कह कर क्यों छोड़ा। शबनम के अनुसार अचानक एक दिन पति ने तलाक-तलाक-तलाक कहते हुए मुझे बच्चों समेत घर से निकाल दिया। तलाक के बाद किसी तरह इधर-इधर काम करके अपने बच्चे बड़े किये। शबनम कहती है कि एक औरत अपने मां-बाप का घर छोड़ कर पति के घर में जिंदगी भर साथ निभाने आती है लेकिन उसका पति तलाक-तलाक-तलाक कहता है और घर से बाहर का दरवाजा दिखा देता है। औरत की कोई इच्छा नहीं पूछी जाती। यह कहंा का इंसाफ है। शबनम कहती है,सुप्रीम कोर्ट का फैसला यकीनन मुझ जैसी औरतों के लिए सहारा बनेगा।
केस नंबर ४
जैदी नगर की जुबेदा बताती है कि नौ साल पहले आसिफ के साथ निकाह हुआ था। निकाह के बाद पता चला कि शौहर नशेड़ी है। नशे के लिए मना करती थी तो शौहर मारपीट करता। रोज-रोज की बात हो गई थी। इस बीच तीन बच्चे भी हो गए। लेकिन शौहर जैसा था वैसा ही रहा। मैंने जब उन्हें बच्चों का वास्ता देकर समझाने की कोशिश की तो शौहर ने तलाक-तलाक-तलाक कहते हुए बच्चों समेत घर से निकाल दिया। क्या करती, रोती-रोती मायके आ गई। पिता हमीद कहते हैं कि कितने अरमानों से बेटी का निकाह किया था। लेकिन आज बेटी को घर में देखता हूं तो दिल रोने लगाता है। यह सोचकर घबराता हूं कि मेरे बाद मेरी बेटी और उसके बच्चों का क्या होगा।
आगे की स्लाइड में पढ़ें गोंडा की पीड़ितों की कहानियां
गोंडा
तीन तलाक देने वालों को फांसी की सजा देनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट का तीन तलाक पर फैसला आया तो तबस्सुम की आंखों से खुशी के आंसू निकलने लगे। उसने कहा कि आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों की बेबसी को समझा। अब सरकार को जल्द से जल्द कानून बनाकर तीन तलाक देने वालों को फांसी की सजा देनी चाहिए। ताकि फिर कोई ऐसा करने की हिम्मत न करें।
केस नंबर १
खैरा कुंभनगर की तबस्सुम का निकाह 17 अप्रैल 2013 को बहराइच के इस्माइल के साथ हुआ था। कुछ दिनों बाद दहेज को लेकर उसे प्रताडि़त किया जाने लगा। जब वह गर्भवती हो गई तो पति उसे एक अल्ट्रासाउंड सेंटर पर ले गया। वहां उसने गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग की जांच कराई। गर्भ में बेटी होने की बात सुनकर 2 सितंबर 2013 को पति ने उसे मायके में छोड़ दिया। 25 फरवरी 2014 को बेटी का जन्म हुआ। कुछ दिनों बाद इस्माइल ने फोन कर तबस्सुम को तीन बार तलाक बोल तलाक दे दिया। अब वह अपने मायके में ही रहती है। उन्होंने डीआईजी से मुलाकात की, जिस पर मामला दर्ज हुआ था।
केस नंबर २
ग्राम खमरौनी की रहमतुल आज बहुत खुश है। वह कहती है कि तीन तलाक हमारे जैसी तमाम मुस्लिम औरतों की जिंदगी तबाह कर रहा था। अब हमें इससे निजात मिली है। यह दिन हमारे लिए अनेकों ईद की तरह है। रहमतुल की शादी मोहम्मद रईस से अप्रैल 2015 में हुई थी। शादी के कुछ ही दिन बाद उसका शौहर मोटर साइकिल न मिलने की बात कह कर उसे प्रताडि़त करने लगा। रहमतुल बताती हैंं कि फरवरी 2017 में वह अपने ताऊ के देहांत पर मायके आई हुई थी। वह चालीसवां निपटा कर जब ससुराल पहुंची तो देखा घर पर दूसरी औरत मौजूद है। वह अपने पति व जेठ से अपने लिए पनाह मांगने लगी तो पति ने तीन बार तलाक कहा और उसे धक्केमार कर घर से निकाल दिया।
केस नंबर ३
औरतों की जिंदगी तबाह कर रहा था तीन तलाक
उच्चतम न्यायालय के निर्णय से खुश तीन तलाक की शिकार रुकैया खातून ने कहा कि तलाक के तीन शब्दों ने उस जैसी तमाम औरतों को अंधेरे में ढकेल दिया है। अब उसके जैसे दुर्दिन किसी महिला को नहीं देखने पड़ेंगे। वह कहती हैं कि तलाक की शिकार जितनी भी बहनें हैं वह उन्हें ढूंढेगी और सख्त कानून बनाने के लिए लड़ाई लड़ेगी। रुकैया को उसके शौहर महफूज अहमद ने तीन बार तलाक बोल कर तलाक दे दिया। शौहर दुधमुंही बच्ची को भी मां की गोद में ही छोड़ कर चला गया। रुकैया के पिता मसीउललाह अंसारी के अनुसार दामाद और बेटी के बीच मामूली विवाद और दहेज उत्पीडऩ को लेकर गुजारे भत्ते का एक मुकदमा चल रहा था। इसी में 18 अप्रैल 2017 को दोनों की पेशी थी। घर से मियां-बीवी साथ-साथ आये और यहां आकर रुकैया को तलाक दे दिया।