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Varanasi News: 129 की उम्र में बाबा शिवानंद का निधन, 2022 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिला था पद्मश्री
Padama Shree Baba Shivananda: सदी से भी ज़्यादा लंबा जीवन, सादा आहार, कठिन साधना और दिनचर्या ऐसी कि आज की पीढ़ी भी हैरान रह जाए वाराणसी के दुर्गाकुंड इलाके में रहने वाले योग गुरु बाबा शिवानंद का जीवन एक प्रेरणादायक ग्रंथ था।
Padam Shree Shivanand Baba Death
Padama Shree Baba Shivananda: सदी से भी ज़्यादा लंबा जीवन, सादा आहार, कठिन साधना और दिनचर्या ऐसी कि आज की पीढ़ी भी हैरान रह जाए वाराणसी के दुर्गाकुंड इलाके में रहने वाले योग गुरु बाबा शिवानंद का जीवन एक प्रेरणादायक ग्रंथ था। 129 साल की उम्र में शनिवार की रात उन्होंने अंतिम सांस ली। बीएचयू के जेट्रिक वार्ड में वह पिछले तीन दिनों से भर्ती थे, सांस की तकलीफ थी। उनके निधन की खबर मिलते ही वाराणसी समेत पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई।
भूखमरी से हुई माता पिता की मौत
बाबा शिवानंद का जन्म 8 अगस्त 1896 को तत्कालीन बंगाल के श्रीहट्टी जिले में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता को भूख की वजह से खोने के बाद बाबा ने खुद को संयम और साधना के पथ पर समर्पित कर दिया। आधा पेट भोजन और नियमित योग ने उन्हें न सिर्फ दीर्घायु बनाया, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा भी।
34 वर्षों तक देश-विदेश में योग और साधना का प्रचार किया
काशी आकर उन्होंने गुरु ओंकारानंद से दीक्षा ली और 1925 में उनके आदेश पर 34 वर्षों तक देश-विदेश में योग और साधना का प्रचार करते रहे। वापस आकर कबीरनगर के एक फ्लैट को अपना आश्रम बना लिया। सबसे बड़ी बात—129 वर्ष की उम्र में भी वे उस आश्रम की तीन मंज़िलें बिना किसी सहारे के चढ़-उतर लेते थे, वो भी दिन में दो बार।
2022 राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों मिला पद्मश्री
2022 में भारत सरकार ने बाबा को पद्मश्री से नवाज़ा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों यह सम्मान पाकर उन्होंने कहा था—"यह योग का सम्मान है, मैं सौभाग्यशाली हूं।"उन्होंने यह भी कहा था कि योग और संयमित दिनचर्या ही उन्हें आज तक स्वस्थ रखे हुए हैं।
VIP से लेकर VVIP तक सभी पहुंचे अंतिम दर्शन के लिए
उनकी अंतिम यात्रा की जानकारी मिलते ही आश्रम में श्रद्धालुओं का तांता लग गया। आम जन से लेकर विशिष्ट हस्तियों तक, सभी बाबा के दर्शन को उमड़ पड़े। बाबा शिवानंद कहा करते थे—"योग ध्यान को बढ़ाता है, और इच्छाओं पर नियंत्रण ही सच्चा सुख है।" उनकी बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उनके जीवनकाल में थीं।
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