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विवेक तिवारी की पत्नी ने पुलिसकर्मी संदीप के खिलाफ हत्या के आरोप में संज्ञान लेने की उठायी मांग

कल्पना की ओर से इस मामले की विवेचना के तथ्यों पर भी अदालत का ध्यान आकृष्ट कराया। कहा गया कि जांच में यह तथ्य कहीं नहीं आया है कि घटना कारित करने के दौरान मुख्य अभियुक्त प्रंशात और संदीप के बीच कोई संवाद नहीं हुआ। लिहाजा यह संभव नहीं है कि इतनी बड़ी घटना को अंजाम देते समय या देने से ठीक पहले दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई हो।

Shivakant Shukla
Published on: 22 Dec 2018 3:25 PM GMT
विवेक तिवारी की पत्नी ने पुलिसकर्मी संदीप के खिलाफ हत्या के आरोप में संज्ञान लेने की उठायी मांग
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प्रतीकात्मक फोटो

लखनऊ: एप्पल के एरिया सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी की हत्या के मामले में मृतक की पत्नी कल्पना तिवारी ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आनंद प्रकाश सिंह से अभियुक्त पुलिसकर्मी संदीप कुमार के खिलाफ भी समान आशय से हत्या करने के आरोप में संज्ञान लेने की मांग की है। उनका कहना था कि यदि संदीप का समान आशय नहीं था, तो मौके से भागा क्यों। उसने विवेक को अस्पताल पहुंचाने या फिर बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया। उसने घटना की शिकायत भी दर्ज नहीं कराई। इस बीच कोर्ट ने इस मामले में पुलिस की ओर से दाखिल आरोप पत्र पर संज्ञान के लिए सुनवायी पूरी कर शनिवार को अपना आदेश सुरक्षित कर लिया है। केर्ट अपना आदेश संभवतः दो जनवरी को सुनाएगी।

कोर्ट के समक्ष संज्ञान के मसले पर विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना तिवारी की ओर से वकील प्रांशु अग्रवाल ने पक्ष रखते हुए कहा कि अभियुक्त पुलिसकर्मी संदीप कुमार के खिलाफ भी समान आशय से हत्या करने के आरोप में संज्ञान लेने की लिखित दलील दाखिल की।

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अग्रवाल तर्क था कि समान आशय के मामलों में अक्सर कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं होता। इसका निष्कर्ष घटना की परिस्थितियों तथा घटना के बाद व पहले अभियुक्त के आचरण के आधार पर निकाला जा सकता है। संदीप का घटना के समय व घटना के बाद भी विवेक को बचाने का कोई प्रयास नहीं करना व घटना की शिकायत भी दर्ज नहीं कराने से उसके समान आशय का पता चलता है।

कल्पना की ओर से इस मामले की विवेचना के तथ्यों पर भी अदालत का ध्यान आकृष्ट कराया। कहा गया कि जांच में यह तथ्य कहीं नहीं आया है कि घटना कारित करने के दौरान मुख्य अभियुक्त प्रंशात और संदीप के बीच कोई संवाद नहीं हुआ। लिहाजा यह संभव नहीं है कि इतनी बड़ी घटना को अंजाम देते समय या देने से ठीक पहले दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई हो।

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वकील प्रांशु अग्रवाल ने इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए विभिन्न निर्णयों का हवाला भी दिया। कहा कि विवेचक की राय मानने के लिए अदालत बाध्य नहीं है। यदि विवेचक की राय अभियुक्त के पक्ष में है लेकिन अदालत को लगता है कि अभियुक्त के विरुद्ध मामला बनता है, तो वह प्रक्रिया का पालन करते हुए विवेचक की राय से इतर अभियुक्त के विरुद्ध संबधित धारा में संज्ञान ले सकता है। लिहाजा इस मामले में मुख्य अभियुक्त प्रशांत के साथ ही संदीप के खिलाफ समान आशय से हत्या कारित के लिए आईपीसी की धारा 302 सपठित धारा 34 के तहत संज्ञान लिया जाए।

अभियोजन की ओर से इस मामले में दाखिल आरोप पत्र पर ही संज्ञान लेने की मांग की गई। अदालत ने दोनों पक्षों की बहस के बाद अपना आदेश सुरक्षित कर लिया। बीते गुरुवार को पुलिस ने मामले में अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था। जिसमें प्रंशात कुमार चौधरी को हत्या (आईपीसी की धारा 302) जबकि संदीप कुमार को मारपीट (आईपीसी की धारा 323) का आरोपी बनाया गया है।

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इसी मामले में बर्खास्त पुलिसकर्मी प्रशांत की ओर से सना के खिलाफ दाखिल अर्जी पर भी अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित कर लिया है। अदालत चार जनवरी को अपना आदेश सुनाएगी। इस अर्जी में विवेक की सहकर्मी सना के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई है। प्रशांत ने यह अर्जी अपनी पत्नी राखी मलिक के जरिए दाखिल की थी।

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