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अफसरी छोड़ समाज सेवा के लिए राजनीति में आए योगेश प्रताप सिंह
मुद्दा विहीन राजनीति के इस दौर में देश में सोशल मीडिया और इलेक्ट्रानिक चैनलों की बेजा सक्रियता पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह का कहना है कि चुनाव सुधार के क्रम आयोग को और सख्ती के साथ सोशल मीडिया तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया पर अंकुश लगाना होगा।
तेज प्रताप सिंह
गोंडा। सरकारी अफसर बनकर शान शौकत की जिंदगी जीना सभी युवाओं का सपना होता है। क्योंकि यह एक ऐसा प्लेटफार्म देता है जहां वह ऊंचाई पर खुद को खड़ा पाता हैं और उसके पांव के नीचे सारी दुनिया होती है। लेकिन इस सपने को अपने पिता की इच्छाओं के पीछे करके एक मेधावी युवक ने अनोखी मिसाल कायम की। कुछ ऐसी ही दिलचस्प कहानी है बसपा प्रमुख मायावती, सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की सरकार में कद्दावर मंत्री रहे पूर्व विधायक योगेश प्रताप सिंह ‘योगेश भैया‘ की।
योगेश प्रताप की राजनीतिक ज़िन्दगी की कहानी बेहद रोचक है। वे प्रशासनिक अफसर बन गए थे, लेकिन पिता की प्रतिबद्धता ने उन्हें राजनीति में ला खड़ा किया। ‘न थके हैं पांव कभी, न ही हिम्मत हारी है, मैंने देखे हैं कई दौर ज़िन्दगी में और सफ़र आज भी जारी है‘ उनका ध्येय वाक्य है।
समाज सेवा में संघर्षों की मिसाल बन चुके योगेश प्रताप सिंह सिर्फ सुमधुर वाणी से ही प्रेरणा नहीं बिखेरते बल्कि अपने काम से भी लोगों का मन मोह लेते हैं। कथनी और करनी में समानता के लिए मशहूर योगेश भैया का जीवन नई पीढ़ी के युवाओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणादायी हैं। क्योंकि धैर्य और संयम के साथ परिवार, कृषि एवं व्यापार में अद्भुत समन्वय के साथ राजनीति करने का गुर उन्हीं से सीखा जा सकता है।
विधि स्नातक हैं योगेश प्रताप सिंह
जिले में कंजेमऊ तालुका के कलहंस क्षत्रियों राज परिवार में जन्मे और चार भाइयों में सबसे बड़े एवं चार बहनों में दो बहनों से छोटे योगेश प्रताप सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही भवन विहीन प्राइमरी स्कूल में पेड़ के नीचे हुई।
कक्षा छह में उनका दाखिला लखनऊ के काल्विन तालुकेदार कालेज में हुआ लेकिन पिता राय उमेश्वर प्रताप सिंह को पसंद न होने के कारण उन्हें वापस आना पड़ा और जिला मुख्यालय के राजकीय इण्टर कालेज में प्रवेश लेकर पढ़ाई शुरु की।
1978 में इण्टरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद एक बार फिर उन्होंने राजधानी की राह पकड़ी और लखनऊ विश्वविद्यालय में स्नातक में प्रवेश लिया। लेकिन पिता की इच्छानुसार वे फिर गोंडा चले आए और यहीं लाल बहादुर शास्त्री कालेज में प्रवेश लिया।
हालांकि 1980 में उन्हें कानून की शिक्षा के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय जाना पड़ा। जहां 1983 में उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की और लोक प्रशासन में एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया।
पिता के स्वाभिमान में छोड़ दी अफसरी
योगेश प्रताप सिंह बताते हैं कि मात्र आठ माह की आयु में ही उनकी मां का निधन हो गया तो उनके पिता राय उमेश्वर प्रताप सिंह ने उन्हें मां की कमी नहीं महसूस होने दिया। इसीलिए उन्होंने सदैव पिता को ही मां और गुरु माना। उन्हें जीवन में सबसे बड़ा सुख तब मिला जब पिता पहली बार विधायक बने और पिता के निधन पर उन्हें सर्वाधिक दुःख भी हुआ।
शुरुआत से ही मेधावी छात्र रहे योगेश भैया की रुचि खेलों और प्रशासनिक अफसर बनकर देश सेवा करने में थी। कानून की शिक्षा लेने के बाद उन्हें उप्र राज्य चीनी निगम में प्रशासनिक अधिकारी की शानदार नौकरी मिल गई।
उन्होंने लखनऊ में तीन साल नौकरी की थी और आगे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे कि उनके विधायक पिता उमेश्वर प्रताप सिंह से किसी बात पर नाराज होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र ने उनका स्थानांतरण जनपद सहारनपुर करा दिया।
इस पर पिता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिलकर वह आदेश तो निरस्त करा लिया। लेकिन चूंकि उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी, इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री के समक्ष ले जाकर उनसेे त्यागपत्र दिलाया और कहा कि अब ये विधायक, सांसद बनकर नौकरशाहों पर शासन करेंगे।
साक्षात्कार योगेश प्रताप सिंह (फोटो सोशल मीडिया)
यह घटना उनके जीवन में टर्निंग प्वाइंट साबित हुई और राजनीति में पदार्पण का कारण भी बनी। उन्होंने अपने जीवन में तमाम उपलब्धियां हासिल कीं, लेकिन उन्हें अपने पिता स्व. उमेश्वर प्रताप सिंह के आदर्शों और उनकी कामयाबियों पर अपने से ज्यादा गर्व है।
प्रधान से बने विधायक
कर्नलगंज से दो बार विधायक और 2017 में सपा प्रत्याशी रहे योगेश प्रताप सिंह 1980 में ही पाल्हापुर गांव के निर्विरोध प्रधान बन गए थे। 1985 में भी वे निर्विरोध प्रधान हुए और जिला पंचायत सदस्य भी चुने गए। 1984 में ही उन्होंने गन्ना किसानों की समस्याओं को लेकर राजनीति की शुरुआत कर दी थी।
इसी साल वे सहकारी गन्ना समिति कर्नलगंज के अध्यक्ष एवं चीनी मिल मजदूर संघ के उपाध्यक्ष चुने गए और 2002 तक दोनों पदों पर बने रहे। 1990 में उन्होंने जिला पंचायत सदस्य का भी चुनाव जीता।
पिता उमेश्वर प्रताप सिंह के आग्रह पर कर्नलगंज विधान सभा क्षेत्र से उन्होंने पहला चुनाव 1993 में कांग्रेस के टिकट पर लड़ा। जबकि दूसरी बार 1996 में उन्हे निर्दल प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ना पड़ा, क्योंकि तब उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था और सपा ने यह सीट बठबंधन में भाकपा को दे दिया था।
क्षेत्र की जनता के भरपूर सहयोग से उन्हें 42हजार से अधिक वोट मिले लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालांकि दोनों बार वे रनर रहे। सपा से अलग हाेने के बाद 1996 में ही उन्होंने कांग्रेस में वापसी की और उन्हे पार्टी का जिलाध्यक्ष बना दिया गया।
1997 में उप्र मजदूर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष भी चुने गए। लेकिन 1998 के लोकसभा चुनाव में मनकापुर के महराज कुंवर आनंद सिंह उन्हें सपा में ले आए। इसके बाद जब 2002 के चुनाव में सपा ने उन्हें सिम्बल नहीं दिया तो क्षेत्रीय जनता के आग्रह पर उन्होंने बसपा में जाकर चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत हासिल कर ली।
आज कर्नलगंज विधानसभा क्षेत्र ही नहीं पूरे जनपद में सादगी से ओतप्रोत बेमिसाल इंसान और विकास पुरुष की छवि है।
तीन सरकारों में रहे कद्दावर मंत्री
योगेश प्रताप सिंह की कार्यशैली और लोकप्रियता से प्रभावित बसपा प्रमुख और तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने उन्हें अपने कैबिनेट में स्थान देकर धर्मार्थ कार्य राज्यमंत्री बना दिया। हालांकि जल्द ही वे बसपा प्रमुख की तानाशाही से क्षुब्ध हो गए और 2003 में जब बसपा का सपा से गठबंधन टूटा तो बसपा को तिलांजलि दे दी।
योगेश प्रताप सिह का साक्षात्कार (फोटोः सोशल मीडिया)
बसपा और कांग्रेस के 42 विधायकों को साथ लेकर उन्होंने बहुजन लोकतांत्रिक दल बना लिया और उसके मुख्य सचेतक बने। बहुजन लोकतांत्रिक दल के समर्थन से बनी समाजवादी सरकार के दौरान साल 2004 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उन्हें सिंचाई जैसे अहम विभाग का राज्य मंत्री बनाया।
मुख्यमंत्री ने पुनः उनकी योग्यता, क्षमता और निष्ठा का ईमानदारी से मूल्यांकन किया और प्राविधिक शिक्षा, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग का स्वतंत्र प्रभार देकर बड़ी जिम्मेदारी दी। बाद में बहुजन लोकतांत्रिक दल का समाजवादी पार्टी में ही विलय हो गया तब 2007 का चुनाव उन्होंने सपा के टिकट पर लड़ा था, लेकिन मामूली वोटों से चुनाव हार गए।
साल 2012 में उन्होंने सपा के सिम्बल पर चुनाव जीतकर शानदार वापसी की और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें बेसिक शिक्षा विभाग का राज्यमंत्री बनाया। ईमानदार और विकास पुरुष के रूप में जनता में लोकप्रिय योगेश प्रताप सिंह 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में अपनी गृह विधान सभा से चुनाव लड़े थे लेकिन भाजपा की मोदी लहर में पराजित हो गए।
बाबा थे स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक
योगेश प्रताप सिंह के बाबा कंजेमऊ तालुके के स्वामी राय जग मोहन सिंह के जीवन का सफर देश प्रेम और समाज सेवा से शुरू हुआ था। 1921 में उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेकर अंग्रेज हुकूमत का विरोध किया। तब वे जिले के प्रथम तालुकेदार थे, जिन्होंने कांग्रेस में शामिल होकर ब्रिटिश सत्ता से मोर्चा लिया।
वे इलाके के सरपंच थे और विधायक का भी चुनाव लड़े। वे कट्टर आर्य समाजी थे और उन्होंने भंभुआ में आर्य समाज मंदिर की स्थापना की थी। आर्य समाज के प्रसिद्ध गुरु और अयोध्या गुरुकुल के संस्थापक स्वामी शिवानंद जी महराज के नाम पर उन्होंने 1953 में 50 एकड़ भूमि गौचरी के लिए दान किया था।
बाद में उनके पुत्र उमेश्वर प्रताप सिंह ने 1980 में इसी भूमि पर स्वामी शिवानंद पौधशाला स्थापित कराया जो अब वन विभाग के देखरेख में चल रहा है। आज भी क्षेत्र के हजारों लोग आर्य समाज पद्धति से ही तमाम संस्कार सम्पन्न करते हैं।
समाज सुधार के साथ ही वे साहित्य प्रेमी थे और राय जग मोहन सिंह ‘मोहन‘ नाम से कविताएं भी लिखते थे। उन्होंने अपने पुत्र उमेश्वर प्रताप सिंह को विशारद की उपाधि लेने के बाद दो वर्ष तक आर्य समाज की शिक्षा दिलाई। क्षेत्र में बालक-बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करने के लिए उन्होंने साल 1962 में अपनी पांच एकड़ भूमि देकर विद्यालय की स्थापना की। यह विद्यालय अब किसान इण्टर कालेज भंभुआ के नाम से जाना जाता है और गुणवत्तापरक शिक्षा के लिए जिले भर में मशहूर है।
72 हजार मतों से जीतकर पिता ने बनाया था रिकार्ड
राय जग मोहन सिंह के बाद उनके पुत्र उमेश्वर प्रताप सिंह ने उत्तराधिकार संभाला और समाज सेवा की ओर भी कदम बढ़ाया। तब जरवल रोड सहकारी गन्ना समिति में उन्हें डायरेक्टर और अध्यक्ष बनाया गया। उन्हीं के प्रयास से 1981 में भंभुआ में गन्ना समिति स्थापित हुई।
1974 में उन्हें कर्नलगंज का ब्लाक प्रमुख चुना गया। आपातकाल के बाद 1977 में हुए विधान सभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस का सिम्बल मिला लेकिन देश में जनता पार्टी की लहर के कारण वे मात्र 2200 मतों से चुनाव हार गए।
उन्होंने 1968 में तब के प्रसिद्ध वकील और कांग्रेस नेता राम लाल गुप्ता को हराकर जिला परिषद गोंडा के उपाध्यक्ष का पद हासिल कर लिया था। साल 1970 में जब तत्कालीन अध्यक्ष संत बख्श सिंह किसी मामले में जेल चले गए तो उन्हें जिला परिषद का अध्यक्ष बना दिया गया।
साल 1980 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर वे विधान सभा पहुंचे। 1984 के चुनाव में तो वे 72 हजार मतों से जीते और सर्वाधिक मतों से चुनाव जीतने वालों में प्रदेश में दूसरे नंबर पर थे। जबकि अमेठी के कांग्रेस प्रत्याशी संजय सिंह ने अपने प्रतिद्वंदी को 90 हजार मतों से हराया था। हालांकि बदली राजनीतिक परिस्थितियों में 1989 और 1990 में उमेश्वर प्रताप सिंह को हार का सामना करना पड़ा।
पत्नी रहीं जिला पंचायत अध्यक्ष
योगेश प्रताप सिंह की लोकप्रियता का ही परिणाम रहा कि साल 2011 में उनकी पत्नी विजय लक्ष्मी सिंह जिला पंचायत की अध्यक्ष चुनीं गईं। इससे पहले उनके अनुज कामेश प्रताप सिंह उर्फ राजू भैया 2005 में कर्नलगंज के ब्लाक प्रमुख बने। इसके बाद 2015 में भी वे पुनः प्रमुख बने।
पूर्व विधायक योगेश प्रताप सिंह के एक और अनुज चन्द्रेश प्रताप सिंह उर्फ ओजू भैया सहकारी गन्ना समिति कर्नलगंज के लगातार तीन बार अध्यक्ष रहे। वे वर्तमान में इसी क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य भी हैं।
राजनीति में न आते तो अफसर रहते
पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह कहते हैं कि राजनीति में न आते तो प्रशासनिक अफसर बनकर देश सेवा करते। वे कहते हैं कि जनता प्रतिनिधि बनने के लिए चुनावी जीत हार कोई मायने नहीं रखता। उन्होंने कहा कि चुनावों में जय पराजय समीकरणों के आधार पर होती है।
लेकिन समाजसेवा के माध्यम से कोई भी जनता के दिलों में स्थान बना सकता है। आज के दौर में तो धन और बाहुबल चुनावी परिणामों प्रभावित कर देता है। हालांकि धन और बाहुबल से चुनाव जीतने वालों को जनता अपना प्रतिनिधि का दर्जा नहीं देती।
कुछ लोग सिर्फ बहानेबाजी और झूठ के सहारे राजनीति करते हैं और कई बार चुनावी सफलता भी हासिल कर लेते हैं। किन्तु जनता जब जाग जाती है तो उन्हें तमाम मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है।
परिवार, खेती और व्यापार को देते हैं समय
पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह ने कहा कि राजनीति के काम से छुटकारा मिलने पर वे अपना पूरा समय परिवार, खेती और व्यापार में लगाते हैं। उन्हें अधिक से अधिक समय तक जनता के बीच काम करना अच्छा लगता है। इसीलिए वे 24 घंटे अपना फोन चालू रखते हैं।
मंत्री का दायित्व मिलने पर भी वे हर समय फ़ोन पर उपलब्ध रहते थे और आज जब विधायक या मंत्री के पद पर नहीं हैं तब भी जनता के लिए उनका फोन चालू रहता है। वे जनता की मदद के लिए चौबीस घण्टे तत्पर रहते हैं।
उनका कहना है कि जन अपेक्षाओं का बढ़ना राजनीति के लिए शुभ है। इससे जनप्रतिनिधियों को सही काम करने का मौका मिलता है। उन्होंने कहा जनता की सेवा करना ही मेरा सबसे बड़ा कार्य और धर्म है। जब तक जीवन रहेगा यह कार्य करते रहेंगे।
संस्कार सर्वाेच्च प्राथमिकता
योगेश प्रताप सिंह पर उनकेे पिता पूर्व विधायक एवं विख्यात समाजसेवी स्व. उमेश्वर प्रताप सिंह और बाबा राय जग मोहन सिंह के संस्कारों का प्रभाव है। पिता के प्रति स्नेह और आदर का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत करते हुए योगेश प्रताप सिंह ने राजनीति के माध्यम से ही समाज सेवा का संकल्प लिया।
वह विद्यार्थी जीवन से ही मेधावी, अनुशासित तथा चरित्रवान रहे हैं। अपने विनम्र व्यवहार से छात्र जीवन में ही वे मित्रों और सहपाठियों में काफी लोक प्रिय रहते थे। आज भी वह जीवन में अपने पूर्वजों के संस्कार और पुरातन परम्परा को सर्वाेच्च प्राथमिकता देते हैं और पूर्वजों की विरासत को संजोते हुए समाज को साथ लेकर निरंतर आगे बढ़ते हुए अपने पिता के संकल्प को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं।
वे कहते हैं कि कर्नलगंज क्षेत्र मेरा परिवार है और अपने इस परिवार में आने पर जो आनंद प्राप्त होता है वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। क्षेत्रीय जनता से अत्यंत आत्मीय लगाव के कारण ही सुरक्षा के तामझाम और वीआइपी कल्चर से इतर भंभुआ कोट स्थित उनके आवास जगमोहन महल का द्वार 24 घंटे जनता जनार्दन के लिए खुला रहता है।
इसी का परिणाम है कि चाहे मंत्री रहे या विधायक वे जब क्षेत्र में निकलते हैं तो अकेले ही होते हैं, लेकिन उनके साथ लोगों का काफिला अपने आप जुड़ता जाता है।
समाजवादी पार्टी में है पूर्ण लोकतंत्र
पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह ने कहा कि अन्य राजनीतिक दलों में लोकतंत्र हो या न हो लेकिन समाजवादी पार्टी में आज भी कायम है। यहां गरीब अमीर और ऊंच-नीच का भेद नहीं है। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी ने समाज के अंतिम पायदान पर खड़े अनेक लोगों को भी लोकसभा और विधान सभा तक पहुंचाया है। जबकि आज देश और प्रदेश की भाजपा सरकार लोकतंत्र और लोकतांत्रिक ढांचे को ही खत्म करने का प्रयास कर रही है।
मुद्दा विहीन चुनाव महंगाई का कारण
पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह ने बेबाकी से कहा कि चूंकि अब चुनाव मुद्दा विहीन होते हैं। चुनाव में धार्मिक और भावनात्मक मुद्दे हावी हो जाते हैं और धन और बाहुबल भी चुनाव को खूब प्रभावित करता है। लगातार बढ़ता चुनावी खर्च इसी का परिणाम है। लेकिन जो नेता जनता के बीच रहकर जनता का काम करेगा उसे ऐसी समस्या नहीं आती। उनके लिए जनता खुद चुनाव में लड़ती है।
धनबल और बाहुबल का प्रयोग वही प्रत्याशी करते हैं, जो सिर्फ चुनाव में अवतरित होते हैं और उसके बाद बहाने बाजी से पांच वर्ष बिता देते हैं। हालांकि अब चुनाव सुधार और आयोग की सख्ती से धनबल और बाहुबल का उपयोग करके चुनाव जीतने का हथकंडा अपनाने वालों की मुश्कििलें बढ़ेंगी।
सोशल, इलेक्ट्रानिक मीडिया पर अंकुश जरुरी
मुद्दा विहीन राजनीति के इस दौर में देश में सोशल मीडिया और इलेक्ट्रानिक चैनलों की बेजा सक्रियता पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मंत्री यांगेश प्रताप सिंह का कहना है कि चुनाव सुधार के क्रम आयोग को और सख्ती के साथ सोशल मीडिया तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया पर अंकुश लगाना होगा।
राजनीतिक बदलाव खतरनाक
समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव और अपने पिता उमेश्वर प्रताप सिंह को अपना आदर्श मानने वाले योगेश प्रताप सिंह ने राजनीति में बदलाव की चर्चा करते हुए कहा कि 2014 में केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने और नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में जो बदलाव हुआ है। उससे देश की पुरातन संस्कृति और साम्प्रदायिक सौहार्द को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
कश्मीर में धारा 370 का खात्मा, नागरिकता संशोधन कानून विघटनकारी है। अनेकता में एकता पर चोट से भारत की दुनिया भर में बदनामी ही हुई है। नौकरशाही को अवसर शाही बताते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार में अफसरों ने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। अफसरशाही के प्रभाव में ही भाजपा सरकार में लोकतांत्रिक मर्यादाएं तार-तार हो रहीं हैं।
जनप्रतिनिधि को देना होगा हिसाब
एक सवाल के जवाब में पूर्व मंत्री कहते हैं कि मौजूदा विधायक द्वारा की जा रही उपेक्षा का जवाब क्षेत्र की जनता ही दे देगी। हर बार बहानेबाजी नहीं चलेगी। उनके द्वारा किए गए कामों का भी हिसाब चुनाव में होगा। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को जनता के सुख दुख में भागीदारी करना चाहिए।
महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान किसानों व क्षेत्रीय जनता की समस्याओं को सुनना चाहिए। उन्होंने कहा कि मौजूदा भाजपा सरकार में कोरोना संकट काल में स्वास्थ्य सेवाओं में अनियमितता व भ्रष्टाचार, सरकारी उत्पीड़न में वृद्धि, किसानों की बेहाली, बढ़ती बेरोज़गारी, विकास का कार्यों की अनदेखी, गरीबों के हक पर कुठाराघात और जुल्म ज्यादती से उत्तर प्रदेश की जनता परेशान है। इसका भी हिसाब आने वाले विधान सभा चुनाव में होगा।
खत्म कराया टोल टैक्स, बनवाया नगर पंचायत
अपने कार्यकाल में कराए गए उल्लेखनीय विकास कार्यों के क्रम में उन्होंने परसपुर ग्राम पंचायत को नगर पंचायत का दर्जा दिलाकर यहां के लोगों को बड़ी सौगात दी। वर्ष 2002 में पहली बार चुनाव जीतने के तत्काल बाद उन्होंने सालों से चल रही सरयू घाट पर वाहनों से वसूली बंद कराकर क्षेत्रीय जनमानस को बड़ी राहत दी।
बसपा सरकार में जब धर्मार्थ कार्य राज्यमंत्री बने तो वाराणसी में बाबा विश्वनाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण की पहल के साथ ही अपने गृहक्षेत्र कर्नलगंज में पसका स्थित वाराह भगवान मंदिर क्षेत्र के विकास का खाका तैयार किया।
बाढ़ से बचाव के लिए कराया बांधों का निर्माण
मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व बनी नई सरकार में योगेश प्रताप सिंह जब सिंचाई एवं बाढ़ कार्य राज्यमंत्री बने तो कर्नलगंज में 65 फीसदी बाढ़ प्रभावित क्षेत्र की आवश्यकता को महसूस करते हुए बाढ़ से बचाव के लिए उन्होंने 42 किमी लम्बा एल्गिन-चरसड़ी, 18 किमी लम्बा सकरौर-भिखारीपुर और 04 किमी लम्बे भौरीगंज रिंग बांध का निर्माण कराकर माझा क्षेत्र को बड़ी राहत प्रदान दिया।
इसके साथ ही सड़कों और पुलों के निर्माण में बडे़ कदम उठाए। क्षेत्र में आज भी उनके कार्य दिखाई दे रहे हैं। क्षेत्र में भौरीगंज, चंदहा नाला, भटपुरवा, चचरी, पसका घाट पर पुल, प्रतापपुर मार्ग तथा फत्तेपुर घाट और चन्दहा नाले पर अहेट पुल समेत डेढ़ दर्जन बड़े पुलों का निर्माण कराकर सरयू और घाघरा से घिरे कर्नलगंज क्षेत्र की जनता के लिए आवागमन का मार्ग प्रशस्त किया।
सरकार बदलते ही रुक गए काम
इसके साथ ही कर्नलगंज-बेलसर-नवाबगंज, बालपुर-परसपुर टूलेन मार्ग, डेहरास-कटहाघाट, डेहरास-पसका, दिवाकर नगर-तिवारी पुरवा मार्ग का निर्माण कराया। बहुप्रतीक्षित जरवल-लखनऊ मार्ग को फोरलेन बनाने की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भंभुआ में ही की थी।
परसपुर में बेलई नाले पर पुल निर्माण की स्वीकृति दिलाकर कार्य प्रारम्भ कराया लेकिन सरकार बदलते ही काम रुक गया। वर्ष 2016 में 18 करोड़ की लागत से सड़कों के निर्माण को स्वीकृति दिलाया। इसके अलावा उन्होंने अपने कार्यकाल में ही सभी गांव पंचायतों को सड़क मार्ग से जोड़वाया।
जिला पंचायत के माध्यम से 2011-2016 के दौरान पूरे क्षेत्र के सभी गांव को ग्राम सचिवालय, सात गांव में पेयजल परियोजना से पानी की टंकी का निर्माण कराकर विकास की नई मिसाल कायम की। साथ ही सरयू नदी के कटरा घाट पर स्नान घाट के साथ-साथ शवदाह गृह और प्रतीक्षालय तथा पसका घाट पर स्नान के लिए घाट का निर्माण कराया।
पांच बड़े शैक्षिक संस्थानों की स्थापना
प्राविधिक व कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बनने के बाद जिला मुख्यालय पर इंजीनियरिंग कालेज, 2005 में कर्नलगंज में मत्स्यिकी शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, 2008 में कर्नलगंज क्षेत्र के सुसुंडा गांव में आटीआई, कर्नलगंज में महर्षि पतंजलि आईटीबेस पालीटेक्निक, कृषि महाविद्यालय समेत कई बड़े सरकारी बड़े संस्थानों के स्थापना ने क्षेत्र को ही नहीं जिले को नया मुकाम दिया।
वर्ष 2012 के विस चुनाव के बाद सरकार में बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री बने तो शिक्षकों की समस्याओं को जहां दूर किया। एक ओर जहां पदोन्नति की प्रक्रिया निमित हुई तो वहीं बड़े पैमाने पर शिक्षकों की भर्ती भी हुई। इसी क्रम में क्षेत्र में दुग्ध उत्पादन की प्रचुरता को देखते हुए माझाा क्षेत्र के घरकुंइयां गांव में 16 करोड़ की लागत से मिनी डेयरी का निर्माण कराकर उन्होंने दुग्ध उत्पादकों को बड़ी सौगात दी।
अस्पतालों, विद्युत उपकेन्द्रों का निर्माण
क्षेत्र वासियों को बेहतर स्वाथ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए अभूतपूर्व कार्य करते हुए योगेश प्रताप सिंह ने जहां 2005 में कर्नलगंज स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को जिला अस्पताल, परसपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का दर्जा दिलाया तो वहीं कंजेमऊ, चकरौत, भौरीगंज, तिवारी पुरवा और माधवपुर में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का निर्माण कराया।
इसी प्रकार क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति की समसया को दूर करने के लिए उन्होंने कर्नलगंज में 132 केवी का बड़ा उपकेन्द्र, भंभुआ बाजार में 33/11 केवी का उपकेन्द्र का निर्माण कराया। इसके अलावा शाहपुर और सुसुंडा में विद्युत उपकेन्द्र निर्माण को हरी झंडी दिलाकर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।
अधूरे काम होंगे पूरे, संस्थानों में होगी पढ़ाई
प्रदेश के पूर्व मंत्री और कर्नलगंज के पूर्व विधायक योगेश प्रताप सिंह ने बताया कि 2022 में होने वाले चुनाव में जीतने पर इंजीनियरिंग कालेज, मत्स्यिकी शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, कर्नलगंज क्षेत्र के सुसुंडा गांव में आटीआई, कर्नलगंज में महर्षि पतंजलि आईटीबेस पालीटेक्निक, कृषि महाविद्यालय जैसे सभी बड़े संस्थानों में शिक्षण कार्य कराना उनकी पहली प्राथमिकता होगी।
इसे भी पढ़ें जमानिया विधायक सुनीता सिंहः राजनीति में न आती तो वृक्षारोपण करती
युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए कोई बड़ा उद्योग भी लगवाया जाएगा। क्षेत्र में अधूरे विद्युतीकरण को पूरा कराएंगे और चार नए विद्युत उपकेन्द्रों की स्थापना भी उनका लक्ष्य है। इसके अलावा क्षेत्र में अछूते मजरों को भी सम्पर्क मार्ग से जोड़ा जाएगा। क्षेत्र के विकास के लिए जो बिजली, पानी, सड़क, पुल और कानून व्यवस्था को पटरी पर लाना उनकी प्राथमिकता होगी।
आस्ट्रेलिया और फ्रांस की संसद को किया सम्बोधित
विधायक व मंत्री रहे योगेश प्रताप सिंह ने इंग्लैंड,आस्ट्रेलिया,नीदरलैंड्स, बेल्जियम,फ़्रांस ,जापान. चीन,ग्रीस तुर्की,सिंगापुर,मलेशिया,न्यू ज़ीलैंड,यु ए ई , बहरीन थाइलैंड आदि एक दर्जन देशों की यात्रा उ . प्र सरकार के प्रतिनिधि मंडल के रूप में की और फ़्रांस एवं आस्ट्रेलिया की संसद में संबोधन किया ।
खेल में रहा अच्छा प्रदर्शन
योगेश प्रताप सिंह की खेल में शुरू से रूचि थी । वे क्रिकेट, फुटबॉल बास्केटबॉल ,वालीबाल ,हाकी .बैडमिंटन के अच्छे खिलाड़ी थे। उन्होंने क्रिकेट में अवध विश्वविद्यालय फ़ैज़ाबाद का प्रतिनिधित्व आल इंडिया ईस्ट ज़ोन में सागर मध्यप्रदेश में किया और एल बी एस महाविद्यालय की वालीबाल टीम के कैप्टन रहे ।