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बुरी तहर हारा अमेरिका: वियतनाम की क्या थी रणनीति, कैसे शक्तिशाली देश को भागना पड़ा, आइए जानते हैं
America Vietnam War History: क्या आप जानते हैं कि विवादास्पद लड़ाइयों में से एक था वियतनाम युद्ध जब महाशक्ति अमेरिका एक छोटे, पिछड़े, लेकिन अत्यधिक संगठित देश वियतनाम से पराजय हार गया था।
America Vietnam War History and Intresting Facts
America Vietnam War History: 20वीं सदी की सबसे चर्चित और विवादास्पद लड़ाइयों में से एक थी वियतनाम युद्ध। यह केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि यह औपनिवेशिक विरासत, विचारधारात्मक टकराव (कम्युनिज़्म बनाम पूंजीवाद), और एक छोटे देश की साहसिक राष्ट्रवादी लड़ाई की कहानी भी थी। अमेरिका जैसी वैश्विक महाशक्ति को एक छोटे, पिछड़े, लेकिन अत्यधिक संगठित देश वियतनाम से पराजय का सामना करना पड़ा। यह लेख इसी ऐतिहासिक पराजय के कारणों, घटनाओं और रणनीतियों को विस्तार से प्रस्तुत करता है।
ऐतिहासिक महत्व
यह पहला युद्ध था जिसमें महाशक्ति को एक छोटे राष्ट्र से हार का सामना करना पड़ा।यह दिखाता है कि केवल संसाधन, हथियार और तकनीक से युद्ध नहीं जीता जा सकता।जनता की इच्छाशक्ति, भूगोल की समझ, और सही रणनीति अत्यंत निर्णायक होती है।
वियतनाम युद्ध केवल एक सैन्य पराजय नहीं थी, बल्कि यह अमेरिकी अहंकार, गलत कूटनीति, और जनसंघर्ष की ताकत के विरुद्ध एक करारा उत्तर था। वियतनाम ने यह सिद्ध किया कि जब एक राष्ट्र अपनी धरती, पहचान और स्वतंत्रता के लिए एकजुट होकर संघर्ष करता है, तो दुनिया की सबसे बड़ी ताकत भी उसे रोक नहीं सकती। यह युद्ध आधुनिक इतिहास की एक सीख है कि सैन्य बल के आगे भी रणनीति, संस्कृति, और जनता की भावना कितनी शक्तिशाली हो सकती है।
वियतनाम युद्ध की पृष्ठभूमि
वियतनाम कई सदियों तक चीनी प्रभाव में रहा, और फिर 19वीं सदी में फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासन में आ गया।1945 में जापान की हार के बाद वियतनामी नेता हो ची मिन्ह ने स्वतंत्रता की घोषणा की, लेकिन फ्रांस ने वियतनाम पर पुनः अधिकार जमाने का प्रयास किया।इससे फर्स्ट इंडोचाइना वॉर (1946-1954) शुरू हुआ, जिसमें वियतनामी राष्ट्रवादियों ने फ्रांस से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी।
जिनेवा संधि और वियतनाम का विभाजन
1954 में डियन बिएन फू की निर्णायक लड़ाई में फ्रांस की पराजय हुई।जिनेवा समझौते के तहत वियतनाम को अस्थायी रूप से दो भागों में बाँट दिया गया। उत्तर वियतनाम (कम्युनिस्ट शासन के अंतर्गत हो ची मिन्ह के नेतृत्व में). दक्षिण वियतनाम (गैर-समाजवादी शासन, अमेरिकी समर्थन के साथ)
अमेरिका की संलिप्तता
अमेरिका को डर था कि अगर वियतनाम कम्युनिस्ट हो गया, तो पूरे दक्षिण एशिया में कम्युनिज़्म फैल जाएगा (Domino Theory)।इस डर से अमेरिका ने दक्षिण वियतनाम को सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक सहायता देना शुरू कर दिया।1961 में जॉन एफ. कैनेडी के समय अमेरिका ने "मिलिट्री अडवाइजर्स" भेजे। 1964 में गल्फ ऑफ टोंकिन घटना के बाद, अमेरिका ने युद्ध में सीधी सैन्य संलिप्तता बढ़ा दी।1965 में अमेरिका ने बड़े पैमाने पर बमबारी अभियान शुरू किया जिसे ऑपरेशन रोलिंग थंडर कहा गया।
वियतनाम की युद्ध रणनीति
वियतनाम के कम्युनिस्ट लड़ाके विएत कॉन्ग (Viet Cong) गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे।वे जंगलों में छिपे रहते, भूमिगत सुरंगों का उपयोग करते और अचानक हमले करके गायब हो जाते। स्थानीय समर्थन और राष्ट्रवाद- विएत कॉन्ग को ग्रामीण लोगों का जबरदस्त समर्थन प्राप्त था।अमेरिकी सेना को स्थानीय संस्कृति, भाषा और भौगोलिक ज्ञान की कमी थी।ग्रामीणों को ‘दिल और दिमाग’ से जीतने की अमेरिकी नीति विफल रही। हो ची मिन्ह ट्रेल- यह एक जटिल और गुप्त आपूर्ति मार्ग था जो उत्तर वियतनाम से दक्षिण वियतनाम तक फैला था।इस मार्ग से सैनिक, हथियार और राशन भेजे जाते थे।अमेरिका ने इसे नष्ट करने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रहा।
अमेरिका की विफलता के कारण
अमेरिका ने सोचा कि अत्यधिक बमबारी से वियतनामी झुक जाएंगे। लेकिन इसका विपरीत प्रभाव पड़ा।जनता और सैनिकों में हौसला और अधिक बढ़ा।अमेरिकी सेना पारंपरिक युद्ध में दक्ष थी, लेकिन गुरिल्ला युद्ध में असहाय साबित हुई।जंगलों में सैनिकों को दुश्मन और आम जनता में फर्क करना मुश्किल था।
अमेरिका में युद्ध के विरुद्ध जबरदस्त आंदोलन हुए – खासकर विश्वविद्यालयों और बुद्धिजीवियों में। टेलीविजन और समाचारों के माध्यम से लोग युद्ध की भयावहता को प्रत्यक्ष देख रहे थे।My Lai Massacre जैसी घटनाओं से अमेरिकी सेना की छवि खराब हुई।अमेरिका ने लगभग 58000 सैनिक खोए और अरबों डॉलर खर्च किए।युद्ध लंबा खिंचता चला गया, जिसका कोई स्पष्ट परिणाम नहीं दिख रहा था।
निर्णायक घटनाएँ
विएत कॉन्ग ने टेट त्यौहार के समय एक समन्वित हमला किया जिसमें कई शहरों पर कब्ज़ा कर लिया।सैन्य दृष्टि से अमेरिका ने हमले को नाकाम किया। लेकिन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह अमेरिका के लिए बहुत बड़ा झटका था।बढ़ते विरोध और असंतोष को देखते हुए राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने शांति वार्ता शुरू की।1973 में पेरिस शांति समझौता हुआ, जिसमें अमेरिका ने अपने सभी सैनिक वापस बुलाने का वादा किया।
अमेरिका के जाने के बाद उत्तर वियतनामी सेना ने जोरदार हमला किया।30 अप्रैल 1975 को साइगॉन (दक्षिण वियतनाम की राजधानी) पर कब्जा हुआ और देश एकीकृत होकर साम्यवादी वियतनाम बन गया।
युद्ध के परिणाम
लाखों नागरिक मारे गए, शहर और गाँव तबाह हो गए।युद्ध के बाद वियतनाम ने समाजवादी शासन को अपनाया और धीरे-धीरे पुनर्निर्माण शुरू किया।“वियतनाम सिंड्रोम” – भविष्य में किसी युद्ध में सीधी दखलंदाजी से बचने की प्रवृत्ति।विदेश नीति में आत्ममंथन शुरू हुआ।अमेरिकी सेना और सरकार की छवि को गहरा आघात पहुँचा।
अमेरिका ने घर के भीतर ही युद्ध हार दिया
वियतनाम युद्ध को अक्सर "पहला टेलीविजन युद्ध" कहा जाता है क्योंकि इस संघर्ष के दौरान मीडिया कवरेज पहले से कहीं अधिक व्यापक और तत्काल थी। 1966 तक अमेरिका के 93% घरों में टेलीविजन सेट मौजूद थे, और दर्शक जो फुटेज देख रहे थे वे काफी हद तक असंपादित और वास्तविक थे।
जब पतझड़ के मौसम में वियतकॉन्ग ने साइगॉन में अमेरिकी दूतावास के पास हमला किया, तब की लाइव और बेहद करीबी फुटेज ने अमेरिका के घरों में बैठी जनता को सीधे युद्ध का अनुभव कराया। इसने युद्ध को केवल दक्षिण वियतनाम तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि अमेरिकी लोगों के बेडरूम तक ला दिया।
मीडिया का रुख बदला और युद्ध विरोधी माहौल बना
1968 के बाद टीवी और अखबारों में युद्ध के खिलाफ माहौल बनने लगा। निर्दोष नागरिकों की हत्या, घायल होने और प्रताड़ना की भयावह तस्वीरें मीडिया में दिखने लगीं, जिससे अमेरिकी नागरिकों में असंतोष फैल गया। इस असंतोष ने पूरे देश में युद्ध-विरोधी आंदोलनों को जन्म दिया। 4 मई, 1970 को ओहायो स्थित केंट स्टेट यूनिवर्सिटी में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे चार छात्रों को नेशनल गार्ड्स द्वारा गोली मार दी गई। यह घटना "केंट स्टेट नरसंहार" के नाम से प्रसिद्ध हुई और इसने युद्ध विरोधी भावना को और तेज कर दिया।
युवा भर्ती और ताबूतों की तस्वीरों ने बढ़ाई पीड़ा
जब जबरन युवाओं की सेना में भर्ती की गई और वियतनाम से लौटते ताबूतों की तस्वीरें टीवी पर दिखाई जाने लगीं, तो जनता का मनोबल और भी गिरने लगा। इस युद्ध में कुल मिलाकर लगभग 58,000 अमेरिकी सैनिक मारे गए या लापता हुए।
वियतनामी इतिहासकार प्रो. वू का मानना है कि उत्तर वियतनाम की सबसे बड़ी ताकत यही थी कि वहां की सरकार मीडिया पर पूर्ण नियंत्रण रखती थी और जनता तक केवल अपनी पसंद की जानकारी पहुँचाती थी। उन्होंने सीमाएँ बंद कर दीं और विरोध को कठोरता से कुचल दिया।
अमेरिका दक्षिण वियतनाम में भी हार गया दिलों और दिमागों की जंग
यह युद्ध बेहद क्रूर था जिसमें अमेरिका ने कई घातक हथियारों का इस्तेमाल किया। ‘नापाल्म’ जैसे ज्वलनशील रसायनों ने हर चीज को भस्म कर दिया, वहीं ‘एजेंट ऑरेंज’ ने वियतनाम के खेतों और जंगलों को नष्ट कर डाला, जिससे स्थानीय लोगों को भुखमरी झेलनी पड़ी।
इन दोनों हथियारों ने ग्रामीण जनता के बीच अमेरिका की छवि को बेहद नकारात्मक बना दिया। इसके अलावा ‘सर्च एंड डेस्ट्रॉय’ अभियानों में कई निर्दोष नागरिकों की जान चली गई। सबसे भयानक उदाहरण 1968 का ‘माई लाइ नरसंहार’ था, जिसमें सैकड़ों नागरिकों की हत्या कर दी गई थी।
दक्षिण वियतनाम की अधिकतर आबादी कम्युनिस्ट विचारधारा से सहमत नहीं थी; वे केवल अपनी जान बचाकर जीवन जीना चाहते थे। लेकिन अमेरिकी कार्रवाइयों ने उन्हें वियतकॉन्ग की ओर धकेल दिया।
प्रो. वू मानते हैं कि अमेरिका स्थानीय लोगों का दिल और विश्वास जीतने में पूरी तरह असफल रहा। वे कहते हैं, "किसी विदेशी सेना के लिए स्थानीय जनता के बीच स्नेह और समर्थन प्राप्त करना हमेशा कठिन होता है। यह स्वाभाविक है कि विदेशी सैनिकों को शक की नज़र से देखा जाएगा, न कि आदर की दृष्टि से।"