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हिल गयी सत्ता की कुर्सी! PM पाशियन ने क्यों छोड़ा 'ईसाई धर्म', चर्च में होंगे पेश... क्या होगा अब? भारत पर भी 'महा संकट'
Armenia PM Nikol Pashinyan: प्रधानमंत्री निकोल पाशियन पर एक पादरी ने सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने ईसाई धर्म छोड़ दिया है और यहूदी धर्म अपना लिया है।
Armenia PM Nikol Pashinyan
Armenia PM Nikol Pashinyan: कॉकेशियन देश आर्मेनिया में इन दिनों जबरदस्त सियासी हलचल मची हुई है। प्रधानमंत्री निकोल पाशियन पर एक पादरी ने सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने ईसाई धर्म छोड़ दिया है और यहूदी धर्म अपना लिया है। इस आरोप के बाद पूरे देश में खलबली मच गई है। विवादों से घिरे पीएम पाशियन ने चर्च के सामने खड़े होकर खुद को 'सच्चा ईसाई' साबित करने की पेशकश की है।
इस कारण उठाया ये बड़ा कदम
जानकारी के मुताबिक, पाशियन ने यह बड़ा कदम इसलिए उठाया क्योंकि यहूदी धर्म में इस्लाम की तरह पुरुषों का खतना एक परंपरा मानी जाती है। पाशियन अपने ऊपर लग रहे धर्म परिवर्तन के आरोपों को झूठा बताते हुए चर्च के सामने 'एक्सपोज' होने के लिए तैयार हैं।
इस विवाद के बीच पाशियन ने बड़ा कदम उठाया और कई पादरियों, विपक्षी नेताओं और बिजनेसमैन को तख्तापलट की साजिश रचने के आरोप में हिरासत में ले लिया है। उन पर देशद्रोह और आतंकवाद से सम्बंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। सरकार की इस कार्रवाई से जनता बेहद आक्रोशित हो गयी है। देश में हर-जगह विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं और पुलिस से झड़प की कई वारदात भी सामने आ रही हैं। इस बीच कुछ तस्वीरों में सुरक्षाबलों को चर्च में ज़बरदस्ती घुसते हुए देखा गया है।
इस घटना की सबसे बड़ी वजह ?
इस विवाद की जड़ उस घटना से सम्बंधित है, जब प्रधानमंत्री ने एक प्रमुख पादरी पर न सिर्फ धर्म विरोधी आचरण का आरोप लगाया, बल्कि यह भी दावा किया कि वह एक लड़की के पिता हैं। इस आरोप के बाद चर्च और सरकार के बीच बड़ी टक्कर देखी जा रही है।
गौरतलब है कि साल 2020 में आर्मेनिया और उसके पड़ोसी देश अजरबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर संघर्ष छिड़ गया था, जिसमें आर्मेनिया को असफलता मिली थी। उस समय से प्रधानमंत्री पाशियन की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है।
सियासी भूचाल आना भारत के लिए भी गंभीर चिंता का विषय
साल 2026 में होने वाले आम चुनावों से पहले देश में इस प्रकार सियासी भूचाल आना भारत के लिए भी गंभीर चिंता का विषय बन सकता है। बीते कुछ सालों में भारत और आर्मेनिया के संबंधों में मजबूती आई है, जबकि अजरबैजान पाकिस्तान और तुर्किए के साथ मिलकर भारत विरोधी रणनीतियों में शामिल रहा है। 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान आर्मेनिया ने भारत का समर्थन किया था, जो इस क्षेत्रीय समीकरण को और महत्वपूर्ण बना देता है।
बता दे, आर्मेनिया में धर्म और सत्ता को लेकर जारी संघर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गंभीर रूप से प्रभाव डाल सकता है। अब आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री पाशियन इन आरोपों से किस प्रकार निपटते हैं और आगामी चुनावों तक सत्ता में बने रहते हैं या नहीं।
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