ढाका की सड़कों पर 'भिखारियों का गैंग'! पाकिस्तान से संबंध बनाना पड़ा भारी, पाई पाई हो गया मोहताज

Bangladesh Pakistan relations: ढाका की सड़कों पर भिखारियों की बढ़ती संख्या केवल एक दृश्य नहीं, बल्कि एक दर्दनाक हकीकत है। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्टें बताती हैं कि अब ये भिखारी अकेले नहीं, बल्कि 'गैंग' बनाकर भीख मांग रहे हैं। शहर के सभी सार्वजनिक स्थलों पर, चाहे वो बाज़ार हों, बस स्टैंड हों, रेलवे स्टेशन हों या व्यस्त सड़कें, हर जगह उनकी मौजूदगी देखी जा रही है।

Harsh Srivastava
Published on: 10 Jun 2025 4:11 PM IST
ढाका की सड़कों पर भिखारियों का गैंग! पाकिस्तान से संबंध बनाना पड़ा भारी, पाई पाई हो गया मोहताज
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Bangladesh Pakistan relations: ढाका की सड़कें, जो कभी विकास और प्रगति की गवाह थीं, आज एक नई और भयावह सच्चाई बयां कर रही हैं। यह सिर्फ आर्थिक बदहाली की कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसे मानवीय संकट की तस्वीर है, जिसने पूरे बांग्लादेश को हिला कर रख दिया है। इन दिनों राजधानी ढाका के चप्पे-चप्पे पर भिखारियों का सैलाब उमड़ पड़ा है। कभी इक्का-दुक्का दिखने वाले ये लोग अब समूह बनाकर, सड़कों, चौराहों और सार्वजनिक स्थलों पर हर आने-जाने वाले से मदद की गुहार लगाते दिख रहे हैं। उनकी संख्या इतनी तेजी से बढ़ी है कि ढाका के प्रशासन और आम लोगों की चिंताएं आसमान छू रही हैं। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय त्रासदी का संकेत है, जो बांग्लादेश के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। यह स्थिति तब और भी ज्यादा चौंकाने वाली हो जाती है, जब देश में एक नई सरकार सत्ता में है, जिसने बदलाव और बेहतर भविष्य का वादा किया था। आखिर क्या वजह है इस अचानक आई 'भिखारियों की बाढ़' की? क्या यह सिर्फ आर्थिक संकट का परिणाम है, या इसके पीछे कुछ गहरे राजनीतिक और सामाजिक कारण भी छिपे हैं?

ढाका की सड़कों पर 'भिखारियों का गैंग'

ढाका की सड़कों पर भिखारियों की बढ़ती संख्या केवल एक दृश्य नहीं, बल्कि एक दर्दनाक हकीकत है। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्टें बताती हैं कि अब ये भिखारी अकेले नहीं, बल्कि 'गैंग' बनाकर भीख मांग रहे हैं। शहर के सभी सार्वजनिक स्थलों पर, चाहे वो बाज़ार हों, बस स्टैंड हों, रेलवे स्टेशन हों या व्यस्त सड़कें, हर जगह उनकी मौजूदगी देखी जा रही है। इन 'गैंग्स' में महिलाएं सबसे आगे हैं। वे राहगीरों को रोकने के लिए अलग-अलग पैंतरे आजमाती हैं - कभी चोट का बहाना, कभी बीमारी का नाटक, तो कभी बच्चों की भूख का हवाला। उनकी आँखों में बेबसी और पेट की भूख साफ दिखती है, जो किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर सकती है। प्रशासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गई है, क्योंकि इतनी बड़ी संख्या को नियंत्रित करना और उन्हें मुख्यधारा में लाना आसान नहीं है। आम नागरिक भी असहज महसूस कर रहे हैं, क्योंकि हर तरफ फैला यह मंजर उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है।

पाकिस्तान से 'दोस्ती' का साया?

बांग्लादेश में भिखारियों की इस अप्रत्याशित वृद्धि का समय बेहद महत्वपूर्ण है। यह ऐसे वक्त में सामने आया है, जब नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार, जो नई-नई सत्ता में आई है, पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। यह एक ऐसा पहलू है, जिसने कई पर्यवेक्षकों को चौंका दिया है और एक सनसनीखेज सवाल खड़ा कर दिया है: क्या पाकिस्तान के साथ बढ़ती दोस्ती का असर है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर भीख मांगने के मामले में पाकिस्तानियों का एक लंबा और दुखद ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। पाकिस्तान में खुद कम से कम 2 करोड़ भिखारी हैं, जो दुनिया के कई देशों, खासकर खाड़ी देशों जैसे यूएई, कतर और सऊदी अरब में जाकर भीख मांगते हैं। ऐसे में, जब बांग्लादेश की नई सरकार पाकिस्तान से नज़दीकियां बढ़ा रही है, तो क्या यह एक 'अवांछित' प्रभाव है जो बांग्लादेश में भी दिख रहा है? यह एक गंभीर आरोप है, लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इस पर विचार करना ज़रूरी हो जाता है।

संख्याओं की कहानी: कितने और क्यों बढ़े?

2023 में जब शेख हसीना की सरकार सत्ता में थी, तब बांग्लादेश में भिखारियों की संख्या को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े जारी किए गए थे। उस वक्त बताया गया था कि पूरे देश में करीब 7 लाख भिखारी हैं, जिनमें से अकेले ढाका में 40 लाख भिखारियों के होने की बात कही गई थी (यह आंकड़ा संभवतः ढाका की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है और यह एक टाइपो हो सकता है, लेकिन रिपोर्ट में यही है)। उस समय, शेख हसीना की सरकार ने भिखारियों को मुख्यधारा में लाने और उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा करने का वादा किया था। हालांकि, उनकी सरकार के सत्ता से हटने के बाद, यूनुस की अंतरिम सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर पूरी तरह 'साइलेंट' है। रिपोर्टों के अनुसार, ढाका में भिखारियों की संख्या अब पहले की तुलना में काफी ज्यादा बढ़ गई है। यह चुप्पी और बढ़ती संख्या, प्रशासन की उदासीनता या समस्या की विकरालता को दर्शाती है।

बेबसी की दास्तां: भिखारियों की जुबानी

ढाका ट्रिब्यून अखबार ने इस संकट की मानवीय परत को उजागर करने के लिए कुछ भिखारियों से सीधे बात की है। उनकी कहानियां रोंगटे खड़े करने वाली हैं और यह बताती हैं कि कैसे गरीबी और बेबसी इंसान को भीख मांगने पर मजबूर करती है। रशेदा (बदला हुआ नाम) नाम की एक महिला ने बताया कि वह बीमार है और काम नहीं कर सकती, इसलिए उसे भीख मांगने के लिए अपने गांव से ढाका आना पड़ा। उसके लिए बच्चों को पालने के लिए भीख मांगना मजबूरी है। रशेदा की कहानी बांग्लादेश में महिलाओं के लिए उपलब्ध 'सुविधाजनक काम' की कमी को उजागर करती है। वहीं, 16 साल की तंजेला की कहानी और भी मार्मिक है। उसने अखबार को बताया कि उसकी मां गृहिणी है और उसका भाई बीमार है। रोजी-रोजगार न होने की वजह से वह अपने भाई के इलाज के लिए पैसे नहीं जुटा पा रही थी, इसलिए अब वह भीख मांगकर उसका इलाज करा रही है। ये व्यक्तिगत कहानियां सिर्फ दो उदाहरण हैं, जो लाखों ऐसी ही अनकही दास्तानों को दर्शाती हैं, जहाँ लोग पेट भरने और अपने प्रियजनों को बचाने के लिए भीख मांगने को मजबूर हैं।

आर्थिक मोर्चे पर बढ़ती विफलता और सरकार की चुप्पी

हालिया आंकड़ों के अनुसार, बांग्लादेश में बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी हुई है। यह सीधे तौर पर भिखारियों की बढ़ती संख्या से जुड़ा हुआ है। जब लोगों के पास काम नहीं होगा, तो वे जीवित रहने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे। यूनुस की सरकार महंगाई पर भी अब तक नियंत्रण नहीं कर पाई है, जिससे आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। खाद्य पदार्थों और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए दो वक्त की रोटी कमाना मुश्किल हो गया है। ऐसे में, भीख मांगना ही कई लोगों के लिए एकमात्र विकल्प बचता है। सरकार की इस मामले पर चुप्पी और कोई ठोस कदम न उठाना, स्थिति को और गंभीर बना रहा है। क्या यूनुस सरकार इस मानवीय संकट को गंभीरता से ले रही है? क्या पाकिस्तान से बढ़ती दोस्ती के बीच वह अपने देश के भीतर बढ़ रही इस 'सामाजिक बीमारी' पर ध्यान दे पाएगी? ये वो सवाल हैं, जिनके जवाब बांग्लादेश की जनता बेसब्री से इंतजार कर रही है। यह स्थिति न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक और नैतिक संकट का संकेत है, जिसे तुरंत संबोधित करने की आवश्यकता है, वरना बांग्लादेश के भविष्य पर इसके गहरे और नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।

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Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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