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ईरान के हाफिज शिराजी का क्या है इनका भारत कनेक्शन?

Manali Rastogi
Published on: 14 Jun 2018 12:23 PM IST
ईरान के हाफिज शिराजी का क्या है इनका भारत कनेक्शन?
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तेहरान: मैं मरने के बाद केवल यहीं तो रहूंगा,

फूलों व हवाओं में खूशबू की तरह बहूंगा।

हाफिज शिराजी एक विचारक व कवि थे जो अपनी गजलों के लिए जाने जाते हैं। उनकी गजलों का संग्रह ईरान के हर घर में मिलेगा। ईरान में लोग मजाक में कहते हैं,- कुरान व हाफिज के दीवान हर घर में मिल जाते हैं। एक सहेजने के लिए तो दूसरा पढ़ने के लिए।

हाफिज शिराजी का आविर्भाव सन् 1325 में हुआ था। बचपन मुफलिसी में बीता। मुफलिसी के कारण वो एक रोटी बनाने की दुकान पर काम करते थे ओर यहीं एक लड़की शाखे नाबात को देख उनके हृदय में प्रेम का प्रस्फुटन हुआ। प्यार एकतरफा था इसलिए परवान नहीं चढ़ा। हाफिज शिराज का दिल टूट गया और उनके मुंह से स्वत: हीं कविता की धारा बहने लगी। वे प्रेम गीत, भक्ति गीत रचने लगे।

हाफिज शिराजी की गजलों की एक किताब हुई काफी मकबूल

उन्होंने गजलों की एक किताब लिखी, जो काफी मकबूल हुई। आज 700 साल से ऊपर हो चुके हैं और इस किताब की मकबूलियत आज तक बरकरार है। फारसी में लिखी इन गजलों का एक एक मिसरा कहावतों का रूप ले चुका है, जो ईरानियों को एकता के सूत्र में पिरोता है। हाफिज शिराजी की गजलों की यह पुस्तक पूरे विश्व की भाषाओं में अनुदित हो चुकी है।

हाफिज शिराजी ने एक बियाबान जगह पर 60 फीट के दायरे का एक वृत खींचा। उसके केंद्र में बैठे रहे। 40 वें दिन वे अपने गुरू के पास पहुंचे। गुरू ने उन्हें एक प्याला शराब पीने को दिया। शराब पीने के बाद उनको अपने हृदय में प्रकाश का आभास हुआ । ऐसा हीं कुछ आभास ईशा से तकरीबन 500 वर्ष पहले गौतम बुद्ध को भी हुआ था , जब उन्होंने सुजाता नामक औरत के हाथ से खीर खाई थी। उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ।

हाफिज शिराजी की जिह्वा पर सरस्वती का वास

हाफिज की जिह्वा पर सरस्वती का वास हुआ और कविता की धारा प्रस्फुटित हुई। हाफिज चूंकि शिराज शहर में रहते थे , इसलिए उन्होंने अपना उपनाम शिराजी रख लिया था। जैसे भारतीय उप महाद्वीप में पैदा हुए महान शायर हाफिज जालंधरी ने किया था। हाफिज को शिराज शहर बहुत पसंद था इसलिए वे जीवन भर यहीं रहे।

केवल एक बार उन्हें कुछ दिनों के लिए राजनीतिक उठा पटक से बचने के लिए शिराज शहर छोड़ना पड़ा था। शिराज शहर की रातें बड़ी रौनक से भरपूर होती हैं। मशहूर शायर मजाज लखनवी ने कभी लिखा था -

हर शब है, शब-ए -शिराज यहां.

शिराज में यदि आपका परिचय एक भारतीय के रूप में होता है तो बस , टैक्सी , चाय वाले आपसे पैसे लेने में झिझकेंगे, कई पैसे भी नहीं लेगें। वे भारत के साथ अपनी सांझी सांस्कृतिक विरासत को याद करते हैं।

फारसी में पहली बार पंचतंत्र की कहानियां अनूदित की गईं थीं, जहां से पूरे योरोप में ये कहानियां पहुंची। महाभारत व रामायण आदि धार्मिक पुस्तकें भी फारसी में अनुवादित हो चुकी हैं। फारसी व हिंदी दोनों हिंद ईरानी भाषाएं हैं।

विश्व पटल पर तेजी से उभरा शिराज

शिराज शहर हाफिज शिराजी की तरह हीं एक उदार शहर होता जा रहा है। यहां पानी एक जीवन के रुप में देखा जाता है। सड़क के किनारे, पार्क में हर जगह पानी का इंतजाम होता है। हुसैन व उनका परिवार रेगिस्तान में तड़प तड़प कर पानी के बगैर मरे थे। शिराज वासियों का जीवन पानी का पर्याय बन चुका है।

शिराज "हाफिज शिराजी" का शहर होने के कारण विश्व पटल पर तेजी से उभरा। यह बागों व मकानों का शहर है। मकान बेहद ही खूबसूरत व मजबूत हैं। यहां की महिलाएं बुर्का पहनती हैं, पर मुंह नहीं ढकतीं। महिलाओं की साक्षरता दर पुरूषों से ज्यादा है। यहां की हर लड़की कम से कम ग्रेजुएट होती है और हर घर में अब एक हीं बच्चा पैदा करने का कंसेप्ट है। हालांकि धर्म गुरू आर्थिक सहायता की बात कर लोगों को और बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित जरूर कर रहे हैं लेकिन शिराज के लोग जानते कि उन्हें क्या करना है। शिराज के जवानों में हर धर्म को जानने की अब ललक बढ़ी है।

1389 में हुई मौत

इसी शिराज शहर में अजीम शायर हाफिज शिराजी की मौत सन् 1389 में हुई थी। उनकी कब्र में खूबसूरत टाइलें लगी हैं और चारों तरफ गुलाब के पौधे तथा खूबसूरत संतरों के पेड़ उगे हैं। प्रेमी जोड़े आते हैं और हाफिज की मजार पर श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं । अपने प्यार की कामयाबी की दुआ उस शायर से मांगते हैं, जिसने विफल प्रेमी होते हुए भी कभी प्रेम गीतों की रचना की थी , जो आज चिर निंद्रा में यहां सो रहा है।

उनकी एक रचना का हिंदी अनुवाद ...

मैं मरने के बाद केवल यहीं तो रहूंगा,

फूलों व हवाओं में खूशबू की तरह बहूंगा।



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