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भारत-ईरान संबंधों पर संकट के बादल: रणनीतिक परियोजनाएं अनिश्चितता के दौर में

India-Iran Relations in Danger: जहाँ एक तरफ इज़राइल-ईरान संघर्ष तेज होता जा रहा है वहीँ दूसरी तरफ भारत और ईरान के संबंधों पर भी अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।

Newstrack Network
Published on: 20 Jun 2025 12:14 AM IST
India-Iran Relations in Danger
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 India-Iran Relations in Danger (Image Credit-Social Media)

नई दिल्ली। जैसे-जैसे इज़राइल-ईरान संघर्ष तेज होता जा रहा है, भारत और ईरान के लंबे समय से चले आ रहे संबंधों पर भी अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं। एक ओर जहाँ सुर्खियाँ “ऑपरेशन सिंधु” के तहत भारतीय नागरिकों की निकासी पर केंद्रित हैं, वहीं व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय संपर्क से जुड़े व्यापक प्रभाव अब केंद्रबिंदु में आ गए हैं।

मई 2024 में भारत ने चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन के लिए एक ऐतिहासिक 10-वर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यह बंदरगाह भारत की क्षेत्रीय रणनीतिक पहल का एक प्रमुख स्तंभ है और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का हिस्सा है। साथ ही, यह चीन-प्रबंधित पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का एक रणनीतिक विकल्प भी है। लेकिन ईरान-इज़राइल के बीच बढ़ते टकराव ने इन योजनाओं को खतरे में डाल दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी प्रतिबंधों और पर्शियन गल्फ में सुरक्षा जोखिमों के कारण इन परियोजनाओं में देरी हो सकती है या वे पूरी तरह ठप भी हो सकती हैं।

क ooit समय था जब भारत अपनी 10% से अधिक कच्चे तेल की जरूरत ईरान से पूरी करता था, लेकिन 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद यह आपूर्ति रुक गई। JCPOA (ईरान परमाणु समझौते) के तहत ईरान से फिर से तेल आयात शुरू करने की कूटनीतिक कोशिशें हो रही थीं, लेकिन बढ़ते तनाव ने एक बार फिर ईरान को अस्थिर स्रोत बना दिया है।


होर्मुज की खाड़ी, जहाँ से दुनिया का एक-तिहाई समुद्री तेल पार होता है, अब संकट की स्थिति में है। भारत ने इसका जवाब आपूर्ति के विविधीकरण से दिया है—पश्चिम अफ्रीका, अमेरिका और रूस से नए समझौते तलाशे जा रहे हैं। फिर भी, तेल की बढ़ती कीमतें (100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर) और रुपये का ऐतिहासिक रूप से कमजोर होना भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव बना रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि पश्चिम एशिया में हर युद्ध भारत की अर्थव्यवस्था को जरूर प्रभावित करता है। हालांकि आज भारत की ऊर्जा आपूर्ति पहले से संतुलित है, फिर भी ईरान की वापसी झटकों को कम करने में सहायक हो सकती थी।

व्यापार संबंध और प्रतिबंधों की मार

भारत-ईरान व्यापार 2018-19 में 17 अरब डॉलर से अधिक था, जो 2023-24 में घटकर सिर्फ 2.3 अरब डॉलर रह गया। भारत का मुख्य निर्यात फार्मास्युटिकल्स, कृषि उत्पाद और रसायन हैं, जबकि ईरान से आयात कच्चे तेल के बंद होने के बाद सीमित हो गए हैं। 2025 में अमेरिकी प्रतिबंधों का नया दौर, खासकर उन कंपनियों पर जो ईरान से व्यापार में सहायक हैं, ने भारतीय कंपनियों में सतर्कता बढ़ा दी है।

• बैंकिंग चैनल सीमित हैं और द्वितीयक प्रतिबंधों का डर बना हुआ है।

• इसके बावजूद, तेहरान भारतीय व्यापारियों को लुभाने की कोशिश कर रहा है।

• ईरान ने स्थानीय मुद्राओं (रुपया-रियाल) में व्यापार को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है, जैसे भारत-रूस के बीच चल रहा है।

कूटनीतिक संतुलन की चुनौती

भारत एक कठिन कूटनीतिक संतुलन साधने की स्थिति में है। एक ओर, इज़राइल के साथ गहरे रक्षा और तकनीकी संबंध हैं, वहीं ईरान मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक रणनीतिक पहुंच के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

• भारत ने अब तक तटस्थ रुख अपनाया है और सभी पक्षों से संयम और संवाद की अपील की है।

• सूत्रों के अनुसार, बैकचैनल कूटनीति जारी है ताकि संघर्ष चाबहार जैसे रणनीतिक प्रोजेक्ट्स और मध्य एशिया में व्यापार गलियारों को प्रभावित न करे।

• दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में ईरान ने कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश भी की थी, जिससे स्पष्ट होता है कि वह दक्षिण एशिया में अपनी कूटनीतिक भूमिका बढ़ाना चाहता है।

हालाँकि ईरान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी प्राथमिकता बनी हुई है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत अपने रणनीतिक निवेश, ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक संतुलन को इस अस्थिर क्षेत्र में बचाकर रख सकेगा। भारत की विदेश नीति की परीक्षा आने वाले हफ्तों में तब और कठिन होगी, जब उसे दोनों पक्षों के साथ संबंध बनाए रखते हुए ऊर्जा संकट और वैश्विक विभाजन से भी निपटना होगा।

ईरान में भारतीय नागरिक


हाल के अनुमानों के अनुसार, ईरान में 4,000 से 10,000 भारतीय नागरिक रहते हैं।

• विकिपीडिया के अनुसार 2025 की शुरुआत में इनकी संख्या लगभग 4,337 थी।

• भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने पहले यह संख्या करीब 10,000 बताई थी, लेकिन स्थानीय स्रोतों के अनुसार यह संख्या 4,000 से 5,000 के बीच हो सकती है।

इनमें से लगभग 2,000 छात्र हैं, जिनमें उर्मिया मेडिकल यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों में पढ़ने वाले शामिल हैं। शेष में डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर और छोटे व्यापारी शामिल हैं, जो तेहरान, जहेदान, अबादान और मशहद जैसे शहरों में रहते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ लोग शिपिंग और स्थानीय इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में भी कार्यरत हैं। भारत के लिए यह एक ऐसा मोड़ है जहाँ रणनीतिक धैर्य, व्यावसायिक विवेक और मानवीय संवेदनशीलता—तीनों की परीक्षा एक साथ हो रही है। भारत को अब यह तय करना होगा कि वह किस तरह दोनों मोर्चों को संभालते हुए अपने हितों को सुरक्षित रख सकता है।

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Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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